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समय हो....तभी पढ़ना🤘💖
सभी जज़्बात काल्पनिक हैं.......जिनका किसी भी जीव... read more
कैद में हम भी हैं
तुम भी हो
हम बता सके
कि हम हैं
तुम छिपा रहे
कि तुम नहीं
साहस
कि तुम छिपा सके
दुःसाहस
कि हम छिपाते नहीं-
अपने सभी भावों को व्यक्त कर देना - बचपन है
सभी को छुपा लेना - बुढ़ापा
इसलिये , "नौजवान" बने रहें 😎-
छटे बादल - धूप खिले
पंछी सब पेड़ो से आ मिले
आसमान अब खाली है
अनुपम छटा निराली है
एक-एक कर मारे गये
तम के सेनापति सारे
पीछे के दरवाजे से भागे
संशय , भय , शोक बेचारे
सूर्य उदित होगा ही एक दिन
मरे न थे उनके विश्वास
देख...कैसी रौशनी छायी है !
बड़े दिनों के बाद-
मंच से क्या ! मंत्रमुग्ध
करते नेता जी
विपक्ष के शासन-संकट
पर जब भी बकते नेता जी
न थमते - न थकते , नेता जी
भुखमरी के आँकड़े
गणितीय प्रमेयों पर
गरीबी को तराजू से
तौलते , नेता जी
हिन्दू-मुस्लिम , यादव-पण्डित
जब भी करते नेता जी
राम-मोहम्मद-साहिब जपते
गिरगिट-सहोदर सदृश्य उभरते नेता जी-
नैतिक होना अच्छी बात है
मगर शक्ति हो
ये और बात है
यदि हो शक्ति
नैतिकता के साथ-साथ
फिर , क्या बात है !...
क्या बात है !-
मैं नहीं जानता अँधेरा क्या है
बन्द आँखें या
खुली आँखों की बेमतलबी
मैं नहीं जानता अँधेरा कहाँ है
चिरागों तले या
चिरागों में ही कहीं
मैं नहीं जानता अँधेरा क्यों है
कारण रौशन जग या
उजालों का प्रयोजन कोई
मगर है अँधेरा ये है खबर
बेखबर अब हम भी नहीं-
कबीर का कुत्ता
सत्ता भोगी बैठे
दिल्ली के ताजोतख़्त पर
विपक्षी चीखते
हाय - हाय महंगाई
पन्नों को सोखकर
कबीर का कुत्ता
न सोये अब भी चैन से
करे है गाँव की पहरी
निकम्मों को सोचकर-
विचारों की चिल्लपों में "मिस्टर सत्य" छिपकर
'आडम्बर ' के भय से दहाड़ें मारकर रोये जा रहे थे।
तभी दरोगा "असत्य बाबू " धड़धड़ाते सत्य का कॉलर पकड़ मिथ्या के चौखट तक खींच लाये।
फिर , 2 गांधीवादी थप्पड़ जड़ते बोले...
" आजादी के 75 वर्ष होने को हैं
और तेरा रोना है कि रुकता ही नहीं ,
चल ले चलता हूँ तुझे आडम्बर के पास "
सूत्रों के हवाले से खबर है कि अब 'आडम्बर' और "मिस्टर सत्य" के बीच बहुत बारीक रेखा ही बची रह गयी है ।
( क्या आपने कहीं " मिस्टर सत्य " को देखा है ? )-
नारी ! तुम न केवल श्रद्धा हो
प्रेम ताल की नलिन मात्र क्यों
क्यों सागर की शक्ति नहीं
लज्जा की अमर छाप क्यों
क्यों चंचलता - प्रदीप्ति नहीं-