चंद फ़ुर्सत सहेजे थे जीवन के
कुछ जमा पूंजी भी वारी थीं
झमेले वाली ज़िन्दगी से या रब
जो लम्हा बटोरा क्या मौत की तैयारी थी?
नए ख़्वाब सजाने निकले थे
तन चहका और मन में ख़ुमारी थी
ले हाथ पकड़ थे संग चले जिसके
अब उसे विदा करने की बारी थी
ख़ूबसूरती की कोई बात न करना
देह में वादियों की सिहरन भारी थी
ठंडक माँगी थी उन वादी-ए-बर्फ़ से
अब बदन उसकी ही सवारी थी
फ़िर से वादी पे चद्दर लाल बिछी
आँखों में मंज़र की ख़ौफ़ तारी थी
याद बने जो याद बनाने आएँ थें
जो जी गए हर साँस सोगवारी थी-
जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमले के कारण दिल बहुत उदास है आज पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों के मारे जाने का अनुमान है मरने वालों के लिए दिल की गहराइयों से संवेदनाएं।👏
भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।👏@अशोक-
हर कहानी में कई तरह के किरदार होते हैं। सबके मनोभाव, संवाद , शैली अलग होती है। कोई अप्रिय घटना घटित होती है तो सामाजिक मंथन होता है और मंथन का परिणाम तो हम सब जानते ही हैं।
लहरें हमेशा एक जैसी नहीं होती। लोगों को अपनी भावना व्यक्त करने देना चाहिये। कोई गोली चलाकर चला जाये और कोई कलम भी न चलाये ?
आप अपना पक्ष चुनने के लिये स्वतंत्र हैं परन्तु दूसरे को जाने समझे बिना उस पर उंगली उठा कर क्या होगा? आपका निजी है तो आप उसे समझा सकते हैं।-
गंगा-जमुना.. रूमाली रोटी.. भाई चारा इन सब में विश्वास रखने वालों को पहलगाम घूम आना चाहिए ।
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इस सुहागन के सुहाग को उजाड़ने वाले आतंकवादी,
सुन तू अपनी मजहब को और कितना गंदा करेगा,,
तेरी मां बहन के भीतर भी उसी ख़ुदा का नूर है,
क्या ऐसे ही तू उन्हें भी विधवा और बेवा करेगा,,
💔✍️
— नीलू सिंह-
हुंकार भरो।
दर्द है तो चिल्लाओ इतना कि सत्ता के गलियारे जाग उठें।
मदहोशी की नींद में सोएं , ये नींद के मारे जाग उठें।।
उठो बहुत पी चुके हलाहल जीवन का,अब मौत की बारी है।
पत्थरों की मोहब्बत में पड़े ये गली-मोहल्ले-ओसारे जाग उठें।।
नदी छोड़ बैठी है लकीर पुरानी,अब रास्ते नए तलाशती है।
हुंकार भरो जो तुम साथी दरिया -पर्वत ये सारे जाग उठें।।
हाथ में देकर हथियार कहते हैं ख़ुदा बचाओ अपने- अपने।
आग लगा सेंकते रोटी,ऐसों के दुर्दिन के सितारे जाग उठें।।
आवाज़ दे कहो कि 'जागो ओ तख्त- ओ- ताज के दीवानों'।
ख़ास उन दीवार-दर-दरीचों के मखमली किनारे जाग उठें।।-
धर्म की ले बंदूक हाथ में
धर्म पूछते हत्यारे
आतंकी का धर्म नहीं
फिर कहने लगे धर्मी सारे
धर्म को इतना ऊंचा कर दो
मानव छोटा पड़ जाए
पढ़ ना पाए अगर वो कलमा
जान गंवानी पड़ जाए
मज़हब वाले पानीपत में
कुरुक्षेत्र तो बौना है
जात पात की धम्मा चौकड़ी
आखिर सबको रोना है
काशमीर की घाटी में
पुलवामा हो या पहलगाम
आतंकवाद की भेंट चढ़ रहे
अल्लाह हो या चाहे राम
राजनीति की धर्म सभा में
राष्ट्रवाद का नारा दो
काशमीर की हर एक घर पर
अपना तिरंगा लहरा दो.....-
कुछ आतंकवादियों ने, 28 निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया
हटाया सरकार ने सेना को, तभी तो आतंकियों ने प्रहार किया
गलती किसकी कौन है दोषी, इस पर ना किसी ने विचार किया
अपनी राजनीतिक रोटी सेकने को, हिंदू-मुस्लिम परिवार किया
आतंकवाद, आतंकवाद है होता, होता उसका कोई धर्म नहीं
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, खाता किसी पर रहम नहीं
उद्दंड अत्याचारियों ने, फिर से मर्यादाओं को लांघ दिया
भारत मांँ के दामन में ही, उसकी संतानों को मार दिया
उठो देश के वीर सपूतों, सोने का अब वक्त नहीं
आतंकवाद को मिटा दो धरती से, हो जाए ना देर कहीं
सबक सिखा दो उनको ऐसा , पूस्ते उनकी ना भूल पाएंगी
हिंदुस्तान के वीरों की गाथा, इतिहास में लिखी जाएगी
✍️सरिता महिवाल-
पहलगाम
ह्रदय विर्दीण है
घाव गहरा है
धर्म पूछकर मारा है
चाहते वो बँटवारा है
भारत राष्ट्र मगर एक है
इरादा हमारा नेक है
औक़ात तुमको तुम्हारी दिखाएंगे
पीढ़ियाँ काँपेगी ऐसा दर्द पहुंचाएंगे|-
“आतंकवादी सफाया”
मिलेगी उसी दिन कलेजे को ठंडक,
जिस दिन आतंकवाद का होगा सफाया।
कितने मासूमों ने खाई है गोली,
कितनों के घर का बुझा है दीया,
फिर से मनेगी अब उसी दिन दीवाली,
जिस दिन आतंकवाद का होगा सफाया।
हम तो हैं ऐसे वतन के वाशिंदे,
जो देते जबाब ईंटों का पत्थर से हरदम,
खेलेंगे अब तो उसी दिन हम होली,
जिस दिन आतंकवाद का होगा सफाया।
न डरते हैं तूफ़ां से हैं क़लम के सिपाही,
चाहे तो हमको जब आजमा लो,
ये रुकेगी झुकेगी उसी दिन लेखनी,
जिस दिन आतंकवाद का होगा सफाया।
पूनम ‘प्रियश्री’ ✍️
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