निगाहों को तुमने ओ मेरी जान-ए-तमन्ना झुकाया है दिल से।
देखकर ये अदाएँ हमने ख़ुदको संभाला है बड़ी मुश्किल से।
कोई नज़र न लगा दे तुम्हारे चाँद से चेहरे को जान-ए-ज़िगर।
अब तक नाम-ओ-चेहरे को तेरे छिपाके रखा है महफ़िल से।
कोई ख़ास वज़ह होगी तभी तो अब तक हम तुम एक न हुए।
इसलिए तो मुक़द्दर को अधूरा बनाके रखा है मुझ क़ाबिल से।
आप अपना कर्म करते जाओ, प्रतिक्षण राम नाम जपते जाओ।
देखना आपका कर्म छीन लेगा सफलता को मुस्तकबिल से।
ये आज का भारत है साहब ये घर है घूस कर दौड़ाकर मारेगा।
वीर बाँकुरे जानते हैं कैसे निकाला जाता हैं चूहों को बिल से।
मासूम लोगों को मारने वाले क़ातिल ज्यादा दिन नहीं बचते हैं।
झूठी वाहवाही के बाद फिर मौत ही बचता है इसके हासिल से।
वो जो धर्म और जातिवाद के नाम पर मासूमों की जान लेते हैं।
वैसों की ही हलक से साँस खींच ली जाती हैं जीवन साहिल से।
हमें न सिखाइए आपसे मेल मिलाप और भाईचारा क्या होता हैं।
हमें इंसानियत नहीं सीखनी है ऐसे ना"पाक" फरेबी संगदिल से।
किसीकी मेहंदी उजाड़ी किसीका सुहाग छीना और अनाथ किया।
मुझे बताओ कि तुम्हारे साथ कौन है? ऐसी हरकतों के क़ामिल से।
इंसान को इंसान नहीं समझे वो बर्बर, जंगली, ज़ाहिल लोग "अभि"।
अंत अब ज़्यादा दूर नहीं है इंसानियत के बैरी जीने में नाक़ाबिल से।-
धिक्कार है
एक सैनिक की नवी नवेली सधवा
बनी एक शहीद की विधवा
शोकाकुल परिजन, परिवार, मोहल्ला, शहर
भावमग्न, व्याकुल, अश्रुपूर्ण चहु-ओर हर नजर
उसके उलट, कुछ पथभ्रष्ट, भावहीन
विवेकहीन, विचारहीन, संवेदनाहीन
निर्लज्ज पशुओं, असुरों का व्यवहार
मानवता को कर रहा शर्मसार
ऐसे पाषाणहृदय, मानवता के परम कलंक
जो सोशल मीडिया की नालियों में पनपते हैं
अवांछित घृणा की आग में व्यर्थ धधकते हैं
धिक्कार है उनपर, धिक्कार है, धिक्कार है
जिन आतंकी हैवानों ने जघन्य हत्या को अंजाम दिया
वो उनके मालिक मददगार तो जलेंगे जहन्नुम की आग में
किन्तु उन कुत्सित विष उगलने वाले अमानुषों पर
धिक्कार है, धिक्कार है, धिक्कार है।-
चंद फ़ुर्सत सहेजे थे जीवन के
कुछ जमा पूंजी भी वारी थीं
झमेले वाली ज़िन्दगी से या रब
जो लम्हा बटोरा क्या मौत की तैयारी थी?
नए ख़्वाब सजाने निकले थे
तन चहका और मन में ख़ुमारी थी
ले हाथ पकड़ थे संग चले जिसके
अब उसे विदा करने की बारी थी
ख़ूबसूरती की कोई बात न करना
देह में वादियों की सिहरन भारी थी
ठंडक माँगी थी उन वादी-ए-बर्फ़ से
अब बदन उसकी ही सवारी थी
फ़िर से वादी पे चद्दर लाल बिछी
आँखों में मंज़र की ख़ौफ़ तारी थी
याद बने जो याद बनाने आएँ थें
जो जी गए हर साँस सोगवारी थी-
जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमले के कारण दिल बहुत उदास है आज पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों के मारे जाने का अनुमान है मरने वालों के लिए दिल की गहराइयों से संवेदनाएं।👏
भगवान इनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।👏@अशोक-
दुश्मन ने सर उठाया है ।
पैग़ाम ऐसा आया है ।।
उजाले कहाँ गये आख़िर ।
गहरा अँधेरा छाया है ।।
मिटा दो हस्तियां उसकी ।
जिसने हमें सताया है ।।
ख़ामोश हम करेंगे अब ।
तुमने बिगुल बजाया है ।।
ट्रेलर है ये सुधर जाओ ।
पिक्चर अभी बक़ाया है ।।
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हर कहानी में कई तरह के किरदार होते हैं। सबके मनोभाव, संवाद , शैली अलग होती है। कोई अप्रिय घटना घटित होती है तो सामाजिक मंथन होता है और मंथन का परिणाम तो हम सब जानते ही हैं।
लहरें हमेशा एक जैसी नहीं होती। लोगों को अपनी भावना व्यक्त करने देना चाहिये। कोई गोली चलाकर चला जाये और कोई कलम भी न चलाये ?
आप अपना पक्ष चुनने के लिये स्वतंत्र हैं परन्तु दूसरे को जाने समझे बिना उस पर उंगली उठा कर क्या होगा? आपका निजी है तो आप उसे समझा सकते हैं।-
गंगा-जमुना.. रूमाली रोटी.. भाई चारा इन सब में विश्वास रखने वालों को पहलगाम घूम आना चाहिए ।
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इस सुहागन के सुहाग को उजाड़ने वाले आतंकवादी,
सुन तू अपनी मजहब को और कितना गंदा करेगा,,
तेरी मां बहन के भीतर भी उसी ख़ुदा का नूर है,
क्या ऐसे ही तू उन्हें भी विधवा और बेवा करेगा,,
💔✍️
— नीलू सिंह-