चंद फ़ुर्सत सहेजे थे जीवन के
कुछ जमा पूंजी भी वारी थीं
झमेले वाली ज़िन्दगी से या रब
जो लम्हा बटोरा क्या मौत की तैयारी थी?
नए ख़्वाब सजाने निकले थे
तन चहका और मन में ख़ुमारी थी
ले हाथ पकड़ थे संग चले जिसके
अब उसे विदा करने की बारी थी
ख़ूबसूरती की कोई बात न करना
देह में वादियों की सिहरन भारी थी
ठंडक माँगी थी उन वादी-ए-बर्फ़ से
अब बदन उसकी ही सवारी थी
फ़िर से वादी पे चद्दर लाल बिछी
आँखों में मंज़र की ख़ौफ़ तारी थी
याद बने जो याद बनाने आएँ थें
जो जी गए हर साँस सोगवारी थी-
🐾नज़र की नज़र से 🌼
🐾लखनऊ 🌼
🐾Insaano Se Zyada Jaanwaro Se Py... read more
क़रार मिला, जब हर उलझे सवालों का तुम्हें जवाब कर लिया
तुम्हें इक रोज़ देखा हकीकत में और चश्म-ए-ख़्वाब कर लिया
एक उम्र गुज़ारी यहाँ, फ़िर भी चेहरा पढ़ने का शु'ऊर न आया
तुमसे मुख़ातिब हुए, लब ने हँसी ओढ़ी आँख ने आब भर लिया
कहतें हैं बेक़रार-ए-मोहब्बत किसे ये हमने जाना ही कब था
तुम जो चले,रुके और पलटे,हमने इसे ही इज़्तिराब कर लिया
के मालूम है मुझे तुम पढ़ने का शौक रखते हो,सुनने का नहीं
जब जब तुम्हारी नज़र पड़ी मुझपे,ख़ुद को किताब कर लिया
सराबोर है अब भी मेरा आफ़ाक़ डायरी में पड़े सूखे ग़ुलाब से
तुम्हें याद किया बेहिसाब और यादों में सूखा ग़ुलाब भर लिया-
दिल में हलचल कर उफान लाते, उल्फ़त की तुम्हें हासिल सारी अदा है
महसूस होते हर सम्त,हर ज़र्रा-ए-जहाँ तुम, क्या तुम्हारा ही नाम हवा है
के मोहब्बत से ही तुम्हारे श्रृंगार करुँ, हुस्न-ओ-इश्क़ मेरा परवान चढ़े
सुबह की उमंग,शाम की तरंग हो, तुम्हारा चेहरा मेरे हर मर्ज़ की दवा है
लबों ने मुस्कुराहट ओढ़ी, हंगाम में इश्क़ घुला, नशा सा मुझपे चढ़ा है
हर नफ़स जियूँ इश्क़ में,किसी एक दिन का मोहताज़ मेरा इश्क़ कहाँ है
तलबग़ार तुम्हारा दिल, तुमपर इक़्तिदार मेरा, इख़्तियार मैं करुँ कैसे?
एक ग़ुलाब से ही महका देते हो रूह,उस महक से ही मोहब्बत जवाँ है
हाँ मुझे तुमसे बेहद है मोहब्बत के ये ऐलान-ए-उल्फ़त मेरा बरमला है
हर मसर्रत का तुम्हें ज़रिया माना,अब क्या करुँ जो दिल हुआ शादमाँ है-
गले लगकर उससे मोहब्बत
का ऐसा एहसास पाया,
के जितने थे बेरंग लम्हें
सभी रुमानी ग़ज़ल हो गए।-
है दिल की रज़ा क्या, तुझे मैं बताऊँ
मेरे हसरत-ओ-अरमाँ तुझ पे लुटाऊँ
मोहब्बत का मौसम शुरू हो गया है
तू कहदे तो मैं भी मोहब्बत बन जाऊँ
के चेहरे तेरे से ही जीवन मेरा रौशन
तू खिलके जो चहके मैं गाऊँ मुस्कुराऊँ
ये ख़ामोशी जो फैली चलो दूर करदें
तू कंगन बजा दे मैं धड़कन सुनाऊँ
इन नज़रों को भाए न कोई नज़ारा
है बाँहो में तेरी जहाँ,इसीको घर बनाऊँ-
यूँ तो ताउम्र चले ख़ारों पे, आज ग़ुलाब ख़ुद को इक़राम किया
रक्खी न तमन्ना गैरों से, हर दिल-ए-अफ़्सुर्दा से ख़िराम किया
इज़हार-ए-हाल किया ख़ुद को ख़ुद का, माँ जैसा दुलार किया
हँसकर पोंछे अपने आँसू, मैने ख़ुद का आज एहतिराम किया
जो गिरकर लड़खड़ाकर भी चलती रही, अदा ये भी तो ख़ूब रही
एक मीठी सी चाय का संग और ख़ुद को हवाले हसीं शाम किया
इसकी उसकी सबकी मसर्रत का दिल ने ठेका लेकर रक्खा था
रखकर ख़ुद को सबसे ऊपर, इक ये तोहफ़ा ख़ुद के नाम किया
कर वादा ख़ुद से वफ़ाई का, ले आँखों में हसरत-ए-परवाज़ नए
जाने वाली तन्हा शाम को अलविदा,सुब्हा नई को सलाम किया
ख़ुद से बेहतर कोई यार नहीं,जो तन्हा हो ख़ुद को ले बाँहो में झूम
नर्मी रखले ख़ुद से भी,क्या किया जो ख़ुद का न एहतिमाम किया
चूम ली मैने मुस्कुराहट अपनी,अब आख़िर तक इससे प्यार करुँ
अपनी नज़रों से जो देखा ख़ुद को, दूर बलाएँ सब तमाम किया
जो सहेज के रक्खी थी मोहब्बत सारी, ज़रा उढ़ेल के ख़ुद पे सभी
मैंने मोहब्बत से भर लीं राहें मेरी, ज़िन्दगानी को गुलफ़ाम किया-
देखकर मुझको तेरा मुँह फेर लेना मुहाल रहेगा
तू शिकायत करना, मुझपर न कोई वबाल रहेगा
तोड़ कर चुप्पी, कर लेना मुद्दत का हिसाब सारा
दिल में सवालों का तूफ़ाँ रहेगा तो मलाल रहेगा
एक मेरे ही आगे तू हँसा रोया, खिला बिख़रा है
क़रीब मैं इतना हूँ तो दर्द ताउम्र फ़िलहाल रहेगा
मुड़कर मत देखना इस फ़ुज़ूल-ए-मोहब्बत को
दामन छुड़ाने का मुझसे ये भी एक मजाल रहेगा
हर किसी उड़ती ज़ुल्फ़,मुस्कुराते चेहरे में तू होगा
तू दिखेगा और प्यार तेरा मेरा ला-जवाल रहेगा-
बेपनाह मोहब्बत है तुमसे, मेरा एतिबार करो
निहाँ न रखो चाहत, है जो भी आश्कार करो
यादों की जंज़ीर से रिहा कर बांहो में गिरफ़्तार
चलाकर मनमर्ज़ियाँ, मुझपर इख़्तियार करो
शोर के मानिंद जीस्त,और तुम सुकून-ए-दिल
दिल तो तुम्हारा ही है, न इसको बे-क़रार करो
हर फ़साद का मसला मुहब्बत, करो ग़ौर ज़रा
इस इश्क़ इबादत पर कुछ तो इफ़्तिख़ार करो
जीवन श्रृंगार तुम्हीं हो,है काजल सियाह तुमसे
शब फ़ुर्क़त में न गुज़रे, मंज़िल कू-ए-यार करो-
बेनाम रिश्ता है ये, बेनाम इसको रहने दो
ग़र नाम दे दिया तो सवाल ख़ूब उठेंगे
पहचान तुम ये मेरी, ग़ुमनाम रहने दो अब
महफ़िल में आ गई तो बवाल ख़ूब उठेंगे
तोहमत तमाम लगाई, सर आँखों पे ली मैंने
आँचल हुआ है मैला, दुश्मन झूम उठेंगे
तुम थोड़ा दूर ही रहना, मुश्किल में मैं घिरी हूँ
जब ख़ुशनुमा हो मौसम, तब तुमसे हम मिलेंगे
क्या समझे कोई मुझको,नासूत ने कब ही समझा
यारी है अब क़लम से, पन्नों से दुख कहेंगे
आज़मा लो सब्र मेरा, मैं टूटती नहीं हूँ
खंज़र से न मरूं मैं, अब हर्फ़ ही दम लेंगे-
के जो उफ़ न करोगे तो आह कौन समझेगा
तेरे दर्द को तो हंगाम अफ़्वाह मौन समझेगा-