SUMAN SHARMA   (सुमन की कलम)
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Joined 8 December 2022


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22 HOURS AGO

मैं हूं कली ...
तेरे आंगन की।

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22 HOURS AGO

उसे याद आने से बेहतर...
मुझे उसे भूल जाना लगा।

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YESTERDAY AT 20:50

जो प्रेम कहानियां अधूरी रह जाती हैं...
उनकी कसक अक्सर ....
इज्जत के बोझ में दबी रह जाती हैं।

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YESTERDAY AT 20:11

मैं उससे मिलने की दूरियां तय करती हूं ,
फिर वह बताता है मुझे ...
कि मुलाकात होगी या नही।

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22 JUN AT 23:02

तेरे साथ ...
एक हसीन मुलाकात.. !

(अनुशीर्षक में पढ़ें )

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17 JUN AT 17:25

अब ना कुछ लिखने का दिल करता है
न कुछ सोचने का ,
ना किसी को याद करने का दिल करता है
न किसी भावनाओं में बहने का।

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17 JUN AT 15:30

किसी के तुम्हें आवाज देने पर
उसकी बात का उत्तर जरुर देना,
कभी यह ना हो कि कभी तुम्हें उसकी जरूरत हो ,
तुम उसे बार बार आवाज दो...
और वह जानबूझकर तुम्हें अनसुना कर दे।
यह समय का चक्र है साहब ...
घूम कर वापिस जरूर आता है ।

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16 JUN AT 6:44

वह मुझे अपनी मौजूदगी का एहसास तो कराता है ,
मगर प्रत्यक्ष कभी मिलता नही ।
कहीं वह खुद को ईश्वर तो नही समझने लगा है।

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16 JUN AT 0:49

मैं तुम्हारे शब्दों में जाकर...
उनमें खुद को रोज़ ढूंढती हूं ,
तुम जितना दूर जाते हो मुझसे,
मैं उतना ही तुम्हारे करीब लौट आती हूं।

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13 JUN AT 21:32

मैं चली थी सुकून ढूंढने...
और मैंने उसे खुद मे ही पाया।

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