दुखों का पहाड़ आसमां से भी आगे है
जो चाह कर भी खत्म नही होता
सुकून की छाया जल्दी मिलती कहा है
और ये तपन सहन नहीं होता
— नीलू सिंह ✍️
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शिक्षा के आयाम किताबों के अलावा भी है।
ये संस्कार और संस्कृति से भी तृप्त है।
मूक भी इशारों को समझता है ये बात गौर की है।
और कही कही विद्वान् भी मौन है ये स्मृत है।
दंभ में मत फूलों विद्वता के दुनिया में और भी है।
जो शिक्षा को स्थापित करता है वह गुण प्राकृत है।
किताबों से निकलकर बाहर देखो दुनिया को,
ज़माने में बहुत है आयाम शिक्षा के जो आकृत है।
— नीलू सिंह ✍️
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इंकलाब ज़िंदाबाद
अब स्वार्थ का बड़ा अनुप्रास बन गया है इंसान
सिर्फ़ मैं ,मेरा में बंध के रह गया है इंसान
ख़ुद की सोच में बहुत स्मार्ट बन गया है इंसान
उसे कहा पता है नैतिकता से भटक गया है इंसान
पैसा देकर मौत खरीदता ऐसा लगता है इंसान
फिल्मी हीरोज को भगवान बनाता है इंसान
अपना वक्त बर्बाद कर के उन्हें देखता है इंसान
मां बाप को पीछे छोड़ कर भगदड़ में मरता है इंसान
चूम कर फांसी के फंदे को जो गले लगा लिया, उस
महान क्रांतिकारियों को आज भुला दिया है इंसान
भगत सिंह राजगुरु चंद्रशेखर को भूलता है इंसान
शहीदों को कुछ और नही बस गरजू समझता है इंसान
अब कौन कहा कही इंकलाब का नारा देता है इंसान
देश को बस टुकड़ों में बांटना चाहता है इंसान
— नीलू सिंह ✍️
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गुज़रे हुए वो लम्हे यादों का आईना है
छुपा रखा है धड़कनों में जिसे वो गहना है
वक्त की तंगी ने तो हमें ग़रीब बना ही दिया
शुक्र है उन लम्हों की जो मुझको ज़िला दिया
आरज़ू है की बचपन फ़िर लौटे इस जीवन में
चंदा मामा से मैं बातें करूं अपने घर के आंगन में
तारों के शहर में अपना भी मकान होता था
आसमां की चांदनी से बड़ा लगाव रहता था
नील" मां की आंचल में छुप कर सुकून मिलता था
सुन ले ये ज़माना बीते लम्हों में ऐसा ही होता था
— नीलू सिंह ✍️
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ये प्राथना है ईश्वर से तुम स्वस्थ और संस्कार युक्त रहो
हर बाधाओं और मुश्किलों से सदा मुक्त और दूर रहो
जीवन के प्रत्येक क्षण में ऊर्जा और खुशियों से प्रयुक्त रहो
ईमानदारी और सदाचरण से सदा ही तुम संयुक्त रहो
मुश्किल कुछ भी नही अगर लक्ष्य को ध्यान में रखा जाए तो
मंज़िल तो हासिल ही है गर दृढ़ता से क़दम बढ़ाए जाए तो
श्रीजी सदा तुम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखे
जन्मदिवस की हार्दिक बधाई और अनंतानंत शुभकामनाएं शिवम्
❤️🎉💐
तुम्हारी मां
— नीलू सिंह ✍️-
इस मृत्युलोक में हम अमरत्व की खोज करते है
बड़े आश्चर्य की बात है, जिंदगी कुछ दिन की सौगात है, और हम बरसों की बात करते है।
सजा कर इस हार मास के पुतले को , विशेष सौंदर्य के अनुरूप बनाते है।
इस जीवन के षोडश संस्कारों का सार है बस अंतिम संस्कार, जिसकी चिताओं की लपटों को हम भूल जाते है।
यह संसार सिर्फ़ दुःखाआलय है जिसका हम अनुभव करते नही है, बस माया के गुलाम बन कर रह जाते है।-
कितने ज़ख्मों को मैं बार बार सिला करू
रूह को छेद कर और कितने ज़ख्म नया करू
कोई लकीर तो आखिरी होगी
उम्मीद को और कितना बड़ा करू-
स्वीकार है हमें तुम्हारा दिया ये हर उपहार
ज़ख्मों में चाहे क्यों न हो अश्कों की बरसात ,,
तुम मेरे पास ना सही घनश्याम पर
दूर से ही सही कभी ना छोड़ना मेरा साथ ,,
—नीलू सिंह ✍️
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माता के चरणों में सुमिरन है हम बच्चों की
ममता के भंडार की कृपा की बरसात की
आंचल की छांव की सृष्टि के उधार की
स्वीकार करो मां ये विनती हम नादान की-
अधिकार है हर इंसान को स्वावलंबी बनने का
परतंत्रता की जंजीरों को तोड़ कर आगे बढ़ने का
दूर से प्रणाम है उस सोच को जो कैद करती है
विश्वास अंधकार में आशा की दीप बुझाने का
कोई भी संबंध स्वीकार नही जो स्वार्थी हो
खुदगर्ज़ी सोच वाले चेहरों से नक़ाब हटाने का
इन उलझन भरे रिश्तों में क्यों उलझने का
बेफिक्री में फकीरी सी जिंदगी सदा जीने का
नील" हर इंसान को अधिकार है स्वेच्छा से
जिंदगी में स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने का
— नीलू सिंह ✍️
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