Nilu singh   (नीलू सिंह)
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Joined 11 February 2024


Joined 11 February 2024
22 HOURS AGO

अपने अधिकार के लिए

हर क़दम पर जंग है हर इंसान तंग है
जाने क्यों बेइमानी का इतना संग है

किसी और के अधिकारों को छीन लेना
ये कब और कहा तक न्यायसंगत है

एक ही जिंदगी सब को मिला है फ़िर
क्यों छीनने की प्रवृति इतनी घनी है

ये मौन की तलवार से अब क्या होगा
अब शोर के संग जरूर संग्राम होगा

कलम उठेगी और जुबां भी बोलेगी
सच की लौ हर कोने में गूंजेगी ...✍️

— नीलू सिंह


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23 HOURS AGO

बात जगजाहिर है वो जानते है सारी

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YESTERDAY AT 13:48

हर लम्हा में वो शामिल है संग मेरे
उन्हें क्या कहूं मैं वो कौन है मेरे...✍️

— नीलू सिंह

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YESTERDAY AT 11:12

आज के हालात बहुत गंभीर है
हर दिल में कोई ज़ख्म मौजूद है

जाने कैसा ये दौर है अब यहां
हर राह में ख़ौफ का माहौल है

अब भीड़ बहुत है इस ज़माने में
दिल तन्हा है हूजूम के जमाने में

क्या शिकवा करे हम उस ख़ुदा से
वो भी मजबूर है अपनी खुदाई से

— नीलू सिंह




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YESTERDAY AT 9:03

क्या ध्यान करना उन रास्तों का जो मंज़िल तक न पहुंचा पाए
क्या साथ निभाना उन रिश्तों का जो तुम्हारा साथ न दे पाए
🤍✍️

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24 JUN AT 23:39

कुछ मेरी कुछ तुम्हारी चलती है अपनी यारी में
ऐसे मिलजुल कर हम चलते है जीवन की गाड़ी में

नही कुछ अपना पूरा यहां स्वार्थी दुनिया दारी में
हमें कभी नही पड़ना ऐसे लोगों की रिश्तेदारी में

एक तू और एक मैं हम काफ़ी है अपने जीवन में
चापलूसी के बाज़ार में क्यों जाना ऐसे मुफ़्त के सरकारी में

सदा ही महफूज़ है हम एक दूजे के निगरानी में
अच्छा है यह सौदा दोनों के हिस्सेदारी में

— नीलू सिंह




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24 JUN AT 19:14

मैं बूंद हूं तुम्हारे सागर की मुझे यू न भूलों साहिब जी
तुम पूछो इन साहिलों से मैं कैसे उजड़ी हूं लहरों से

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24 JUN AT 12:16

हर एक सांस के आखिरी तक निभाने का नाम , वफ़ा है

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23 JUN AT 15:03

वो पुरानी तीखी धूप अब शीतलता दे जाती है
कल की वो न्यूनता ही आज पूर्णता दे जाती है
वो तू तू मैं मैं वाली पुरानी झगड़ती गलियां
इन उबाऊ रिश्तों में अब ठंडक दे जाती है

वो रिश्ता में रिश्ता जोड़ कर रिश्तेदारी निभाना
अब तो वो बातें किताबी जान पड़ती है
नोटों की गड्डियां भी अब रास नही आती
यादें पुरानी चवन्नी की ही खुशियां दे जाती है

महल और हवेली की बात बेमानी सी लगती है
वो फूस की मड़ई ही यादों को महका जाती है
वो छत के आसमां के सारे तारे अपने ही थे
अब तो जमीं भी फर्श में ही लिपटी मिलती है

ब्रांडेड फैशनेबल कपड़ों की आज लाइन लगी है
पर खुशबू तो वो दशहरा और होली के कपड़ों की
ही आती है

— नीलू सिंह






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23 JUN AT 8:53

भय और द्वंद के अंधकार में यह मन शिथिल हो रहा है,
हे श्याम हमें रौशनी दो 😔🙏
जीवन का यह रास्ता धूमिल हो रहा है,,

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