अपने अधिकार के लिए
हर क़दम पर जंग है हर इंसान तंग है
जाने क्यों बेइमानी का इतना संग है
किसी और के अधिकारों को छीन लेना
ये कब और कहा तक न्यायसंगत है
एक ही जिंदगी सब को मिला है फ़िर
क्यों छीनने की प्रवृति इतनी घनी है
ये मौन की तलवार से अब क्या होगा
अब शोर के संग जरूर संग्राम होगा
कलम उठेगी और जुबां भी बोलेगी
सच की लौ हर कोने में गूंजेगी ...✍️
— नीलू सिंह
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हर लम्हा में वो शामिल है संग मेरे
उन्हें क्या कहूं मैं वो कौन है मेरे...✍️
— नीलू सिंह
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आज के हालात बहुत गंभीर है
हर दिल में कोई ज़ख्म मौजूद है
जाने कैसा ये दौर है अब यहां
हर राह में ख़ौफ का माहौल है
अब भीड़ बहुत है इस ज़माने में
दिल तन्हा है हूजूम के जमाने में
क्या शिकवा करे हम उस ख़ुदा से
वो भी मजबूर है अपनी खुदाई से
— नीलू सिंह
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क्या ध्यान करना उन रास्तों का जो मंज़िल तक न पहुंचा पाए
क्या साथ निभाना उन रिश्तों का जो तुम्हारा साथ न दे पाए
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कुछ मेरी कुछ तुम्हारी चलती है अपनी यारी में
ऐसे मिलजुल कर हम चलते है जीवन की गाड़ी में
नही कुछ अपना पूरा यहां स्वार्थी दुनिया दारी में
हमें कभी नही पड़ना ऐसे लोगों की रिश्तेदारी में
एक तू और एक मैं हम काफ़ी है अपने जीवन में
चापलूसी के बाज़ार में क्यों जाना ऐसे मुफ़्त के सरकारी में
सदा ही महफूज़ है हम एक दूजे के निगरानी में
अच्छा है यह सौदा दोनों के हिस्सेदारी में
— नीलू सिंह
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मैं बूंद हूं तुम्हारे सागर की मुझे यू न भूलों साहिब जी
तुम पूछो इन साहिलों से मैं कैसे उजड़ी हूं लहरों से-
वो पुरानी तीखी धूप अब शीतलता दे जाती है
कल की वो न्यूनता ही आज पूर्णता दे जाती है
वो तू तू मैं मैं वाली पुरानी झगड़ती गलियां
इन उबाऊ रिश्तों में अब ठंडक दे जाती है
वो रिश्ता में रिश्ता जोड़ कर रिश्तेदारी निभाना
अब तो वो बातें किताबी जान पड़ती है
नोटों की गड्डियां भी अब रास नही आती
यादें पुरानी चवन्नी की ही खुशियां दे जाती है
महल और हवेली की बात बेमानी सी लगती है
वो फूस की मड़ई ही यादों को महका जाती है
वो छत के आसमां के सारे तारे अपने ही थे
अब तो जमीं भी फर्श में ही लिपटी मिलती है
ब्रांडेड फैशनेबल कपड़ों की आज लाइन लगी है
पर खुशबू तो वो दशहरा और होली के कपड़ों की
ही आती है
— नीलू सिंह
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भय और द्वंद के अंधकार में यह मन शिथिल हो रहा है,
हे श्याम हमें रौशनी दो 😔🙏
जीवन का यह रास्ता धूमिल हो रहा है,,-