नन्ही सी जिंदगी को बोझ से दबा दिया लोगो ने ,,अपने रिस्तो का गुलाम बनाया लोगो ने ,,इस जिंदगी को उंगली पे नचाना अपना ईमान बनाया लोगो ने ,,खुद के लिए मुझें कायर बनाया लोगो ने ,,बचपन में माँ से बिछड़ी ,,जवानी से पहले शादी हुई ,,दस भाई - बहनों में बड़ी बहू बन कर आई ,,अपमान ,तिरस्कार उपहार में पाई ,,अपनापन पाने को यहाँ अपना खुद को लुटाती रही,,एक बेबस जिंदगी जीती रही ,,
एक नॉकरी के बल पर ये जिंदगी कुर्बान हुई ,, और फिर भी एक निवाले को मोहताज हुई ,, स्त्री धन भी छीन ली गई ,,
बच्चों की जिंदगी भी बर्बाद हुई ,,अब कोई अपना यहाँ नही ,,कंधे थके हैं जिमेदारी के बोझ से ,,जिंदगी सदमे में पड़ी अपनों की उपेक्षा से ,,हर रिस्तो का परित्याग करती हूं ,,आज मौत से सगाई करती हूं ,,भरोसे का खून होते देखी हूं ,,कैसे कोई बर्बाद होता हैं,,अपनी बर्बादी खुद की आँखों से देखी हूं,,
- नीलू सिंह
-