के तू काश मुझसे मिला ही न होता ....!
ख़ुदा की क़सम कुछ गिला ही न होता ....!!-
Office Superintendent
W.C. Railway BHOPAL
योम-ए-पैदाइश -15 February
किसी ने पूछा कि जन्नत की कितनी क़ीमत है ..?
तो मुस्तफ़ा ने कहा लाइलाहा इल्लल्लाह.........-
सजा दो अपने हाथों से मुझे तुम ऐ मिरे सजना ।
मुझे अच्छा लगे सजना तिरे हाथों मिरे सजना ।।-
उड़ जाना बुलबुलों का कहकर ये लाज़मी था ,
गुलशन - ए - तख़रीब में परिन्दे नहीं रहते ।-
नहीं काबू में अब मेरे मग़ज़, दिल-व-दिमाग़ है ।
बुझती ही नहीं ज़ालिम कैसी ये आग है ।।-
बहारें हैं, ख़ुशबू,मकां हैं,ज़मीं है ,
लगता है सारा ज़माना यहीं है ।
सब कुछ तो है इतना सारा मगर ,
तेरी बस तिरी,तेरी बस कमीं है ।।
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सफ़र ज़िन्दगी का था चलता रहा ,
दुश्मन भी करवट बदलता रहा ।
वक़्त पर ही किए काम मैंने सभी ,
देखकर वक़्त भी हाथ मलता रहा ।।-
नज़रों से मुझसे नज़रें मिला कर चला गया ,
जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा कर चला गया ।
बुझती ही नहीं ज़ालिम भड़कती है और ये ,
वो आग मोहब्बत की लगा कर चला गया ।।-
माना कि मैं हार गया, इक दिन पर---सच जीतेगा ,
अफ़सोस यही है कि उस दिन ,हम होंगे न तुम ...!-