ऐ परेशानी...
कुछ अजीब सा रिश्ता ही है,,..
जिन्दगी का साथ तुम्हारे......,
कभी तुम किसी के लिए छोटी, कभी बड़ी,,, कभी आफत, तो कभी ... बहुत कुछ सिखाने के लिए हो जाती खड़ी ..,
आने से तुम्हारे जिन्दगी में हलचल होती ...
कोई बिखर,, तो कोई संभलना सीख जाता है...
अजीब है न..,किसी के लिए हम परेशानी, तो कोई हमारे लिए परेशान..,
अजीब है न,... कल की परेशानी को कम करने के लिए लोग आज है परेशान..
तय ये भी नहीं कल परेशानी हो जाएगी खत्म...,
क्या पता नया रूप बन जाएगी कल...,
अजीब है न,, तेरे बिन कोई जिंदगी नहीं.., और जहां तू नहीं वहां जिंदगी नहीं....,-
इश्क़ कमसीन हसीना से पूछिए
उम्र ऐ नादानी में जरा गुस्ताख़ी तो कीजिये-
परेशानियों से बिछड़ कर
मैं सुकून की हो जाती हूँ...
जब भी तेरे चेहरे पर वो
बेपरवाह सी मुस्कुराहट पाती हूँ...-
अगर तुम थककर हार नहीं मानते
और अगर लाती जोश हैं परेशानी
तो सच मानो दुश्मन नहीं दोस्त है परेशानी
हर हाल में आगे बढ़ना हो थानते
ऐसी अगर देती होश हैं परेशानी
तो एक सीख ना की अफसोस है परेशानी-
परेश़ानियों में हम भगवान का नाम लेते हैं
ज़रूरत पर हम चोरों का हाथ थाम लेते हैं
माँ - बाप की उम्र की अब कोई फ़िक्र नहीं
उनकी झूठी कसम हम सुबह-श़ाम लेते हैं
सारी दुनिया को नसीहत देने से नहीं चूकते
सफ़र में अन्जानों के साथ भी जाम लेते हैं
अपने बच्चों की अच्छी सीरत चाहिए हमें
बाहर जाकर गाली तो हम सरे-आम लेते हैं
भाई तू तो मेरी जान है मेरे दोस्त ऐसी बातें
उसके बदले हम तो धोखे से ही काम लेते हैं
मिलना-जुलना भी है एक मतलब के लिए
पीठ पीछे उसके नाम से क़त्ले-आम लेते हैं
इस दुनिया में कोई किसी का नहीं "आरिफ़"
सब अपना अलग - अलग अन्जाम लेते हैं
लोग भी अब "कोरा काग़ज़" बनकर रह गये
कलम जिसपर चली बस वही राम-राम लेते हैं-
कमाल की बात है ना के
रिश्ते, खुशी, गम, परेशानियां
इन थोड़े से शब्दो के इर्दगिर्द ही सबकी जिंदगी घूमती है
पर कहानी पढ़े तो सबकी अलग ही होती है !-
न जाने क्यों अब रूठ जाने को दिल चाहता है....
मनाने वाला अब कोई है नही फिर भी मान जाने को दिल चाहता है....
हज़ार उलझनों ने सवाल कई पैदा किये....
उन सब का जवाब पाने को दिल चाहता है.....
इन वक़्त की गांठों ने परेशान कर दिया है मुझे.....
इन गांठों में उलझ जाने को दिल चाहता है......
दिल चाहता है बनने को फिर वो मासूम बच्चा....
उस बचपने को जी जाने को फिर दिल चाहता है....
रिश्तों की भीड़ न जाने क्यों बढ़ आयी है....
इस भीड़ से निकल जाने को फिर दिल चाहता है....
समझता है सबकुछ फिर भी समझता नहीं....
फिर से न समझ बन जाने को दिल चाहता है...
उम्र बढ़ रही है बाल हो रहे है सफ़ेद....
इस जिंदगी को मुझसे है क्यों इतने खेद . .
नौकरी चाकरी....ने परेशान कर दिया है...
इन परेशानियों से मुक्त हो जाने को दिल चाहता है
क्योंकि मुझे फिर से रूठ जाने को दिल चाहता है...
-
पूरी दुनिया तुझसे परेशान है
तू कभी जाति ही नहीं हम तो इसे हेरान है-
ऐ परेशानी!!!
तू सुन रही है न?
मेरी राहों के दुश्मन चुन रही है न?
देख रुक न जाना अपनी इतनी मेहनत के बाद,
क्यों न कर दे तू मेरे कितने जटिल हालत।
मेरी पिछली हार से तू मुस्कुरा रही है क्या?
हारा हुआ हूं,
ये खुद को समझा रही क्या?
मेरे आगाज़ की आवाज़ सुन रही है न?
अपने गिनती के दिन गिन रही है न?
ऐ परेशानी!!!
तू सुन रही है न?
Penned by Utkarsh-
अमा यार! क्या बात करते हो 'अभि' परेशानी का डर
तो इस दो पल की जिंदगानी में हमें कभी लगा ही नहीं|1|
बस डर तो कमबख्त के इन पल भर की खुशियों से लगता
हैं जिन्होंने कभी चार कदम से ज़्यादा साथ दिया ही नहीं|2|-