पल दो पल के उन्मादित पलों को,
अनुराग समझ परिहास बनी,
कोमल एहसासों को अपने पाषाण में तराश रही,
क्षणभंगुर जगत में अमरता मैं तलाश रही,
प्रेम -विरह की पीड़ा जीवन में अवसाद बनी,
कुसुमित एहसासों के पल,
है मुझ पर अब भार बनी,
सोते -जगते नयनो में,
सपने जो जगमग दिन-रात करें,
जुगनू बन भ्रमण करें,
अब उनका रस्ता मैं ताक रही,
छिन्न हुए हालातों को कब से हँस-हँस कर,
मैं टाल रही,
अवसादो से भरे पलों को जीवन में ढाल रही,
तन्मयता अमिट प्रेम की जीवन से मैं हार चली,
पल दो पल के उन्मादित पलों को,
अनुराग समझ परिहास बनी ।।
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