विवादों में घिरी उस की विवादास्पद आँखें,
जाने किस अपराध की सज़ा भुगत रही थी,
जो स्नेहास्पद होते हुए भी संदेहास्पद हो गई।-
*Its not necessary that if i like or comment your quote, then you hav... read more
क्षण-क्षण क्षीण क्षणिकाएँ,
क्षणभंगुर क्षतिग्रस्त क्षमताएँ,
संकुचित करती यों धारणाएँ,
जीवन विस्तृत कैसे हो पाए?
विस्तार हो जीवन का तब,
त्रिदेव जब त्रुटिहीन कराएँ।
बनें ऐसी यों भाव-भंगिमाएँ,
शत्रु ही शत्रुघ्न जैसे हो जाए।-
ग्रीष्म की तपती दुपहरी में
मोम की तरह पिघली मैं
अस्तित्वहीन हो गई मैं की जगह तुम
मग़र नहीं चाहती मैं कि तुम
खो दो बूँद की भाँति अपना अस्तित्व।
चाहती हूँ मैं बस इतना हम रहें हम में
और स्वयं पहचानें अपना अपना व्यक्तित्व।
प्रेमपाश में जकड़े जाने पर भी निभाए अपना उत्तरदायित्व,
स्वामित्व की अपेक्षा बनाए रखें बस स्थायित्व।-
हलक से हर इल्ज़ाम यों उतर जाना ज़रूरी तो नहीं,
और हर इल्ज़ाम सज़ा के लायक हो,ज़रूरी तो नहीं,
.....
.....
लोग तो बिन सोचे समझे भी कुछ कह दिया करते हैं।-
सुना है गंगा नदी पवित्र कर देती है सब को हर इल्ज़ाम से,
यों ही तो नहीं बनारस पवित्र हो गया पापों के आयाम से।
पान भाने लगा जब देखे बनारसी पान में प्रिय के पयाम से,
पा जाती है आदर यों तुच्छता भी पवित्रता के एहतराम से।-
काला काजल,गहराता तिमिर,
कृत्रिम कृतिका,रही यों बिफर।
कटार किरण,हैं लोचन कौंधिर,
कलंकित कृत्य,कैसे न शिविर।-
Victory is kind of real happiness,
After rolling over all our sadness,
None could take advantage our weakness.-
ख़्वाहिशें बढ़ जाती हैं,
दोस्ती जब हो जाती है।
किरदार बदल जाता है,
कड़वाहटें आ जाती हैं।
न पूरी हो जब मुलाकातें,
बातें अधूरी रह जाती हैं।
मलाल तब ज़रूरी ही है,
टीस दिल में रह जाती है।
किरदार तो बदलेंगे ही,
दोस्ती कहाँ ही टिकती हैं।
व्यवहार बदलते जाते हैं,
ख़्वाहिशें ढेर हो जाती हैं।-
काश! बारिश में भी तुम मेरे अश्क़ देख पाते,
मेरी ख़ामोशी की भी तुम आवाज़ ही बन पाते,
...
...
...
तो शायद नज़दीकियों में फ़ासले ही न होते।-