कई रिश्तो से मिलकर बनता है परिवार
परिवार है अच्छे जीवन का आधार
परिवार मे समाहित सबकी परवाह व प्यार
सुख-दुःख मे सबके काम आता है परिवार
हर रिश्ते का अलग-अलग महत्व है परिवार मे
परिवार के बिना सूना लगता है संसार
माँ की ममता पिता की परवाह है परिवार मे
भाई-बहन कभी झगड़ते कभी हँसते हैै साथ मे
दादा-दादी हो या नाना-नानी करते कितना दुलार
गलती पर पापा डाँटे तो बुआ लेती है पुचकार
मासी होती माँ जैसी कितना स्नेह लूटाती है
मामा आशिर्वाद संग लाते कितने सारे उपहार
परिवार मे समाहित सबकी परवाह और प्यार
कई रिश्तो से मिलकर बनता है परिवार-
जैसे बसंत के मौसम को पतझड़ की *बहार* चाहिए
वैसे जीवन रूपी प्रश्न को उत्तर एकमात्र *परिवार* चाहिए
जैसे मूरत ईश्वर की बनने को कुम्हार के हाथों *आकार* चाहिए।
वैसे जीवन रूपी महल को सुदृढ़ एक नींव *परिवार* चाहिए
जैसे पौधे को वृक्ष होने में शुद्ध श्वसन के *आधार* चाहिए
वैसे जीवन रूपी पादप को जल रूपी *परिवार* चाहिए
जैसे स्वर्णिम इतिहास लिखने को अद्वितीय एक *विचार* चाहिए
वैसे जीवन को जीवन बनाने की एक औषधि अचूक *परिवार* चाहिए
जैसे उठाने बेटी की डोली को उस पिता को एक *कहार* चाहिए
वैसे जीवन की नैय्या खेने को परिवार रूपी *पतवार* चाहिए
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नहीं होती रखवाली,
जंग लगा ताला अब बेजान है
घर तो नहीं है,
बस यादो का एक मकान है-
व को क्या से क्या बना देता है
अपनों को अपनों का दुश्मन बन देता है-
" सास बहु बनी सहेली "
आसाँ नहीं होता ,
सास से "सासू माँ" बन पाना,
घर में आई "बहुरूपी",
एक प्यारी सी ,
कोमल सी "कली" को,
सहेज के ,प्यार से ,
एक *मजबूत औरत* बनाना |
आसाँ नहीं होता ,
"सास" से"सहेली" बन पाना,
बहु के हिसाब से,
खुद को "मॉडर्न" बनाना,
खुद के हिसाब से,
उसे "ट्रेडीशन" सिखाना,
आसाँ नहीं होता "पास्ते",
"परांठे" को मिक्सकर,
* परास्ते *बनाना |
आसाँ नहीं होता ,
धीमे-धीमे अपने रिश्ते को ,
प्रगाढ़कर"सास बहू" से ,
"माँ बेटी" बन जाना,
आसाँ नहीं होता,
"अचार" और "मॉडन विचार",
को मिक्स कर , शिल्पी मेहरोत्रा
*खुशहाल परिवार* बनाना ||
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परिवार तो एक ऐसी पूँजी अनमोल,
जिसकी न कोई कीमत लगा सका न कोई मोल ।
ईटों से बनी चारदीवारी कहलाती सिर्फ मकान,
मकान को घर बनाए उसमें रहने वाले बच्चे, बूढ़े और जवान।
बच्चे, बूढ़े और जवान इनसें जगमग रिश्तों की अनोखी ज्योति,
चाहे हो दादा-दादी, माता-पिता या हो पोता-पोती।
जैसे मोतियां जुड़ी होती एक धागे की जकड़न से,
वैसे प्रत्येक रिश्ता बंधा है अटूट प्यार के बंधन से।।-
और कहना मस्त हूँ मैं
कातने में व्यस्त हूँ मैं
वजन सत्तर सेर मेरा
और भोजन ढेर मेरा
कूदता हूँ, खेलता हूँ
दुख डट कर झेलता हूँ
और कहना मस्त हूँ मैं
यों न कहना अस्त हूँ मैं-
लाश को मैंने अपनों के लिए इंतज़ार करते देखा है,
यकीन मानो, हस्ते खिलते परिवार को मैंने
टूटते, बिखरते देखा है..!-
जब कहीं
नई बहू आती है
🛵
तो
पूरी फैमिली 1-2 महीना के लय
बहुतइ सभ्य & सुशील बन जाती है 😊-
बीवी को गुलाब और बच्चों को चॉकलेट से मनाता हूँ
अनजाने में मैं अपने परिवार को भ्रष्ट बनाता हूँ
आगे चल के ऐसे ही लोग सरकार बनाते हैं
भ्रष्टाचार को हम ही शिष्टाचार बताते हैं-