खासा वक़्त बिताया जानने में मैंने, कि ऐसी हूँ नही मैं,
परिचय में मेरे फिर भी मैं सुनाती रही कुछ सुनी बातें ।।-
जिंदगी जीने के तरीके कई जानता हूं,
अपनों से उम्मीद कुछ खास नहीं रखता हूं,
रहोगे परेशानी में तो याद करना, अपनो की मदद मैं खासकर करता हूं,
दोस्त कम दुश्मन ज्यादा रखता हूं,
सही को सही,गलत को गलत सामने बताता हूं,
पीठ पीछे बुराई करने की सोच नहीं रखता हूं,
तम्हें भी छोड़ के जाना है,जा सकते हो,
अपनी अच्छाई तुम्हें बताना जरुरी नहीं समझता हूं,
जिसे मैं अच्छा लगता हूं,उसे मेरी बुराई क्यूं नहीं दिखाई देता है,
अच्छा हूं,या बुरा हूं,मैं नहीं जानता हूं,
किसी और के लिये मैं खुद को बदल नहीं सकता हूं,
कोशिश में रहता हूं,कोई अपना मुझसे ना रुठे,
तम्हें फिर भी रूठना है,रूठो ना मना कौन करता है,
मेरी किस बात से तम्हें हुई है तकलीफ़,ये बात अब भी नहीं जान पाया हूं,
सच कहूँ,बहुत जटिल हो तुम,तुमको समझ नहीं पाया हूं।
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और, थोड़ा और, आओ पास
मत कहो अपना कठिन इतिहास
मत सुनो अनुरोध, बस चुप रहो
कहेंगे सब कुछ तुम्हारे श्वास
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क्यों कहते हो लिखने को, पढ़ लो आँखों में सहृदय।
मेरी सब मौन व्यथाएं, मेरी पीड़ा का परिचय॥-
😊थोड़ा सा जानिए मुझे....!!
चलिए,
आज बता देता हूँ कुछ
अपने बारे में।
【अनुशीर्षक में】
"पढ़ें तो लाइक करें"-
चपल, चंचल, चिंतामणि, जिसकी लेखनी न शर्माती ।
इलाहाबाद में बीता बचपन, जयपुर में अल्हड़ घूमें ।
पुणे में इंसान बने, परदेस में साहब हुए ।
दूर रहकर मिट्टी से थोड़ा कुछ जो सीखा,
पन्नों में ही रह जाता था सरीखा ।
कॉमिक और फिल्मों का प्यार न छूटा,
फिर एक दिन YQ का छींका फूटा ।
सोते शायर ने करवट ली ।
लेखनी फिर बोल पड़ी ।
आज कुछ महीने हो चले हैं ।
अभी भी हम तो बस कह रहे हैं ।।-
ख़्वाबों के बोझ से बोझिल नींद है दबी हुई
ये श्वाँस मृत्यु-शैय्या पे, कब से है पड़ी हुई !
फ़िर भी न जाने मेरा मन, खोज किसकी करता है !
माया-जगत चराचर है, आस किसकी करता है !
विश्राम को भुला बैठा,
संग्राम खोजता है !
जो भेजा कभी गया नहीं,
वो पैग़ाम खोजता है !
मिल जाए वो तो होगी, फिर नहीं कभी अशान्ति !
चिरकाल के सभी स्वप्न, बन जाएँ कभी न भ्रान्ति !
किसके समक्ष उभरी, किसके समक्ष अड़ी हुई !
जाने नहीं जहान ये, मेरी पीड़ा कहाँ पड़ी हुई !
अंतिम यही गुहार है, अंतिम 'शिवि'-पुकार है
वैचार्य-शून्य हो कर भी, प्रेम तज न पाया है !
निष्कर्ष चाहता नहीं, चाहे सफ़र हमेशा ही
अविराम स्वप्न के हित, संसार तज न पाया है !
चिर-शान्ति मनस् उपवन की, है युक्ति वहीं पड़ी हुई !
वो काव्य ही है पगले, वो काव्यमय सरित है
सांसारिक सभी दुखों की, है मुक्ति वहीं पड़ी हुई !-
मैं नदी की अविरल धारा हूँ,
जिसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत नहीं।
मैं कश्मीर की ठंडी हवा हूँ,
मैं रेगिस्तान की कड़कती धूप हूँ।
मैं कश्मीर का बर्फ नहीं,
मैं रेगिस्तान की रेत हूँ।
जहाँ सूखा भी हैं और जीवन भी,
जहाँ रेत भी हैं और पानी भी।
जहाँ जीवन - मृत्यु का समन्वय है,
जहाँ जीवन में संघर्ष और आनंद है।
मुझे सूरज सा तेज नहीं,
चाँद सा शीतल समझ लेना।
मुझे तेज तूफान नहीं,
धीमी शीतल हवा समझ लेना।
मैं करण हूँ, मैं प्रकाश हूँ,
मैं पंक्तियों के लेखन का प्यास हूँ।
मैं अमर नहीं, अपने लेखन को अमर करूँगा,
खुद को नाम से नहीं लेखन से परिचित करूँगा।
- Kᗩᖇᗩᑎ
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मैं अंतहीन सागर - परिचय
मैं हर रोज नया सा उठना चाहता हूं कुछ अलग सा! कुछ नयापन लिए हुए! शायद इसीलिए हर रोज की बातों को रात मे ही दफन कर,कुछ भुल कर,कुछ खुद को समझाकर,दिल को मनाकर,चलता हूँ ,गिरता भी हूँ,सम्भलता हूँ,फिर निकलता हूँ, रुकता नही हूं या यूं कहें अब कोई रोकने वाला भी नही है।
हां थोड़ा बेबाकी सा हूँ....कभी कभी बेतुका भी.…
या यूं कह लो थोड़ा मस्तीभरा भी हूं...!
पर समझता सभी को हूँ...
सभी कहते भी हैं...! थोड़ा विचित्र भी हूं मैं 😊
अक्सर लोगों को कहते सुना है कि अपने शब्दों में बैचैनी उगलता हूँ, पर क्या ही करु कुछ अनसुलझे ख्याल ही तो लिखता हूं।
यूं तो सभी ने नये-नये नाम दिये साथ ही खुद के बहुत से काम दिए ,जाने न जाने कितने आयाम दिये, की तुम मेरे नेत्रों में आने वाले कल की आशा लिख दो,अपनी उंगलियों से इमरोज से दहकते सीने पर अपने मौन से लफ्जों में मेरी ही परिभाषा लिख दो..
पर मैं ठहरा मैं विचित्र सा इंसान😊 ! उन लोगों को कौन बताएं किसी के कहने से कुछ लिखा नहीं जाता और जो कह कर लिख भी दिया तो वो अब हमसे सहा नहीं जाता।।
आपका अपना विचित्र सा मित्र
विनीत दुबे Aka 'अंतहीन सागर'-
"कलम" जिसकी शान है
"प्रभु" का दिया वरदान है
"चित्रगुप्त" के हम संतान है
"कायस्थ" हमारा नाम है।।
_ _ _ _ !!!
सम्पूर्ण कविता फिर कभी ❤
_मिस्टर_इम्पेर्फेक्ट_ 📑📝✍
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