यहीं तो थे वो हँसते - मुस्कुराते
हमको रुलाकर चले गए
कम्बल लिए थे ठंड में मैंने
वो सावन बनाके चले गए
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A boy just trying to decorate his expressions...
मेरे ज़ख्म हो गए हैं मुझसे ख़फ़ा
अब किस से श्रृंगार करूँ मैं
देखो हो गयी उसकी नाही
अब किस से प्यार करूँ मैं
अँगारे बंद रखे हैं हथेलियों में मैंने
गिन जख्मों का हिसाब करूँ मैं
मीलों - मील चलूँ अकेले
ये परायी खुशियाँ पार करूँ मैं
दो चार गिने थे हसरत मैंने
वो भी तेरे नाम करूँ मैं
लेलो मृत्यु अपनी आगोश में
गिर घुटनों में इजहार करूँ मैं
मेरे जख़्म हो गए हैं मुझसे ख़फ़ा
अब किससे श्रृंगार करूँ मैं-
प्यार से पेट नही भरता कमाने आज निकला हूँ
कुछ पूँजी जमा कि है छोटा-मोटा काम करता हूँ
ख्वाब देखे है तन्हा मैने आ तेरे साथ बाँट लूँ
बिके जो सुकून खरीदने आज निकला हूँ
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परत दर परत खुलते हैं
ये मुखौटे एक बार कहाँ हटते हैं
करें गैरों से शिकवा कितनी
एक रोज हम भी पहनते हैं
ख्वाबों में नही राज़ उनके
मुसलसल दिखते हैं बातों में
बदलें खुदको या उसको
जिसके बदले रंग आज है
मेरे अजीज की ख़्वाहिश
बदली अचानक या वो बदनाम है
या फिर यूँ कहें
अब ये बात भी आम है?
- Kαɾαɳ
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मेरे इंतेज़ार मे हो रात इतनी
कोई करामात फिर आज होगी
कोई तो बात होगी
बिस्तर पर लेटे निंदिया सुलाए
जगे नैन, होंठ मुस्काए लाल होगी
कोई तो बात होगी
जल्दी भी है सब्र भी है
इज़हार की छुपी ये शक्ल होगी
कोई तो बात होगी
सुनना है तुमको मगर
सुनाने इश्क तुमसे देरी होगी
कोई तो बात होगी
संयम को खोए
बाँहे फैलाये मुलाकात होगी
आज मोहब्बत की रात होगी
- Kαɾαɳ Sinha-
ये प्यार होंठों में दबे से हैं
खामोश है धकड़न तेरे सुकून से
मुसलसल इश्क़ के नज्म बिखरे से हैं
ख्वाबों में मेरे है सन्नाटा
है मदहोश मन का दरवाजा
स्वप्न मार्ग भटके से हैं
इत्र चौखट पर बिखरे से हैं
घोर अँधेरा शयन कक्ष में
विचलित ये मन तेरे स्मरण में
पल भर में सब बदले से हैं
ये प्यार होठों में दबे से हैं
- Kαɾαɳ-
ताउम्र छुपाया बात सबसे
देखो बह गया राज स्याही में
पलटो, पढ़ लो पन्ने सुस्ताए
देखो रात थक गया मुझे जगाये
शीर्षक मेरा दो शब्दों में
देखो "प्रेम" की ये रचनाएँ
करण पुष्प लयबद्ध सजा
देखो पर्याय तुम मुस्काए
जोड़ों को कहाँ ये नसीब सदा
देखो टूटता तारा आसमान
फिर करो इबादत हाथ जोड़ के
देखो दो सिर मिले लटकते पेड़ में
- Kαɾαɳ Sinha-
कोई मसला नही तुमसे मिलने में,
मेरे पैर छिल जाए तो दर्द तुम्हे ही होगा
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अवतरण दिवस की ढेर
__सारी शुभकामनाएँ भाई__
निकलता, चमकता, ढलता रोज
अमूल्य, जाने सब मूल्य तेरा
वक्त में आता सूरज
बदले मोल हर मौसम तेरा
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शायद सुना नही किसी ने चीखता
संघर्ष ने लेखक लाजवाब बनाया
पकड़ कलम भाव बहाया
दर्द जितना स्याही गाढ़ा और बनाया
सुनता नही कोई बातें ज़ुबानी
लफ्ज़ो को नशीला तुमने बनाया
-Kαɾαɳ-