साथी फिर - फिर साथ देना ...
( कैप्शन में )
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जन्मना कायस्थ:, धर्मणा ब्राह्मण: कर्मणा क्षत्रिय चास्मि !
"जिन सुंदरता... read more
शून्य - मन की सुरंग सुधियाँ
याद कर फिर हाथ देना
साथी फिर - फिर साथ देना-
उसके अश्क फ़रेब
और उसकी निगाह-ए-उल्फ़त फ़क़त दिलबरी होगी
ये बात और है कि
ए'जाज़ -ए- लम्स -ए- आश्ना से तबी'अत हरी होगी-
मिरे अश'आर को 'शिवि' अब नया इंतिसाब चाहिए
फ़िर से जी उठने को फ़क़त एक ख़्वाब चाहिए-
हुस्न - ए - अज़ल पे ये हिजाब कैसा
इश्क़ में जान-ए-जाँ ये निसाब कैसा-
उसकी हर इक अदा पे 'शिवि', बख़्त आज़माया न करो
ज़रा ठहरो, यूँ न फिसलो, इस क़दर ज़ब्त ज़ाया न करो-
दश्त-ए-दिल में आज तलक क्यों पैठा एक ख़्वाब
सराबी सी की नज़र थी याकि नज़र सी की सराब-
ख़्वाब-ए-सहर में ख़्वाहिश-ए-ज़ीस्त ले सोए
नीम - जाँ तेरा नाम ले - ले ज़ार - ज़ार रोए-
गर्मी, पंखा, घड़ा,
कागज-कलम,
धीमी-धीमी साँसें,
माथे पर ठहरे स्वेद-बिंदु,
और भी कुछ दिख रहा है?
मुस्कुराता चेहरा,
भरी हुई आँखें,
संतृप्त मस्तक पर
प्रेम-पोषित-प्रज्वलित इंदु,
शायद कुछ लिख रहा है !-
अधरों पे पहरा दे रहे स्याह दरबान जँचते ख़ूब हो
दुनिया से बचाते आ रहे मग़र मुझसे बचा पाओगे क्या ?
मेरी उल्फ़त चाहे नकार दो मेरे यत्न से इंकार लो
होठों पे उसके खेलती तबस्सुम को रोक पाओगे क्या ?-