यूं ही इक ख्याल आया...
ये जो विचार पढ़कर फिर अपने शब्दों में लपेट लेते हो, ये जो बात है न लेखन का समझ नहीं आता... इसे भी एक डब्बे में डालते जाओ, ये तुम्हारा है ही नहीं। इक ही परिपाटी को घिसे चले जा रहे, क्यों? मानकता और मौलिकता का अभाव स्पष्ट दिख रहा। कुछ हिंदी के भारी भरकम शब्दकोश लिए फिरते हो और वहीं बातें लेकर बैठ जाते हो।
अच्छा... कोई न लिखना अधिक ज़रूरी है और उससे भी अधिक ज़रूरी... प्रशंसा करना... अपनी नहीं, अपने लिए... सबकी।-
मेरे शब्दों को दे रहा कौन इतनी ऊँचाई
कहीं गुलज़ार लिख देता तो कहीं परसाई-
"जो नहीं है, उसे खोज लेना शोधकर्ता का काम है। काम जिस तरह होना चाहिए, उस तरह न होने देना विशेषज्ञ का काम है।जिस बीमारी से आदमी मर रहा है, उससे उसे न मरने देकर दूसरी बीमारी से मार डालना डॉक्टर का काम है.।अगर जनता सही रास्ते पर जा रही है, तो उसे ग़लत रास्ते पर ले जाना नेता का काम है। ऐसा पढ़ाना कि छात्र बाज़ार में सबसे अच्छे नोट्स की खोज में समर्थ हो जाए , प्रोफ़ेसर का काम है।"
#हरिशंकर_परसाई_के_तीर-
मार्क ट्वेन ने लिखा है,
"यदि आप भूखे मरते कुत्ते
को रोटी खिला दें तो वह
आपको नहीं काटेगा।"
कुत्ते में और आदमी में
यही मूल अन्तर है।
"हरिशंकर परसाई"-
दुनिया के पगले शुद्ध पगले होते हैं,
भारत के पगले आध्यात्मिक होते है ।
- हरिशंकर परसाई-
चंद पंक्तियाँ ज़ेहन में आई और वो लिखने लगे,
तो लिखते ही रहे............-
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गया ?
#हरिशंकर_परसाई-
धन अधिक होने पर धन की अकुलाहट बढ़ जाती है। लोगों में उसके प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और इस प्रदर्शन के फेर में लोग फूहड़पन की सीमा को पार कर देते हैं। परसाईं जी यह कहते हैं कि धन के आने पर फूहड़पन अपने आप बढ़ जाता है...!
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पेन किलर से हो रही
जग में ख़ूब हंसाई
तेरी मूर्ख सफ़ाई पर
हँसे शुक्ल परसाई
गज़ब का लिखा बहाना
जानता है ये ज़माना
ख़बर पढ़ने जब जाना
शराबी बन ना जाना
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