सनातन धर्म को न छोड़ा
कुर्सी के गद्दारो ने
आई थी एक घड़ी सुहानी
कालिख पोत दी
चाटुकारों ने
सदियों तक याद रहेगा
ये दगा दुनियावालों को.......-
माँ जैसा जमाने में कोई और न मिला
सहती हैं सितम क्योंकि
उसकी मुस्कुराहटों का, न हैं कोई फिक्रमंद यहाँ
वजूद मिटा दिया अपना,वजूद किसी का बनाने में
सोई न कई रातें वो,सबको सुलाने मे
अपने सपनों पर बिठा दिए उसने,तेरी चाहतों के पहरे
हर पल मरती रही वो,किसी की लंबी उम्र के लिए
दुआओं में उसकी,खुद का जिक्र न था
जिस घर को सजाने लगी थी, वो भी उसका न था
नीड हो गया वीराना और वो आस लगाए बैठी थी
सच में वो "माँ" ही थी, जो दर पर टकटकी लगाए बैठी थी।
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उजालों की,चांद की चांदनी और तारों की झिलमिलाहट की
कुछ अफसानों ,कुछ किस्सों की...-
मन की बाते ही होती हैं
जो अनकही अनसुलझी होती हैं
दिल को लगी तो कभी दिलग्गी होती हैं
ठहरे हुए मंजर में एक शोर सी होती हैं
हर अल्फाज़ दिल से जुड़ा हुआ
अनछुई एक कहानी होती हैं।-
कुछ अलहदा से शौक थे मेरे,
कुछ जिम्मेदारियों में दफ़न,
कुछ ने ओढ़ लिए खामोशियों के कफ़न ....-