सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर चिंता के सामूहिक स्वर की जगह पसंदीदा “स्लॉट” पर चेतना का जागना एक आम चलन बनता जा रहा है ।
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एक आसरा था कि पेट्रोल सस्ता हो जाएगा ,
वह तो हुआ नहीं ,
वाहन जरूर रिटायर हो गया ।
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उनके ना होने का एहसास तब ज्यादा होता है , जब हम उनकी जगह पर पहुँच जाते हैं । एक “बाप” के दिल और दिमाग अपने बच्चों के लिए कितने जतन करते हैं , यह समझ उस बच्चे को बाप बनने के बाद ही आती है । यह कहानी बहुत पुरानी जरुर है , लेकिन हर बार ठीक उसी तरह दोहराई जाती है ।
#HappyFathersDay-
उंगलियों के बीच जलती सिगरेट
उंगलियां नहीं जलाती
फेफड़े जलाती है ।
(भास्कर कविश)-
जिनकी कला से हमको अक्सर मुस्कराने की वजह मिल जाती है । जिनके व्यंग्यात्मक चित्रण से बहुत बड़ी बड़ी गंभीर समस्याएं भी अखबार के एक कोने में पूरी प्रखरता से सिमट आती हैं । जिनके सटीक निशाने देश और दुनिया के कद्दावर लोगों को भी मिठास के साथ घायल करते आए हैं । ऐसे ही चुनिंदा लोगों को World cartoonist day की एक प्यार भरी शुभकामना एवं बधाई तो बनती ही है ।
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सोशल मीडिया : इस बड़ी तस्वीर के एक कोने में छोटा सा अक्स हमारा भी है।
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बस यूँ ही चलते-चलते ......
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सोशल मीडिया ने अनजाने रिश्तों को पहचानने का एक मौका तो दिया है !
पर ....
जाने-पहचाने रिश्तों के दरमियाँ दूरियां कुछ बढ़ सी गई हैं !
जरा सोचिये ........
बस यूँ ही चलते-चलते ..................ख्याल आ गया !
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बस यूँ ही , चलते-चलते ......
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सोशल मीडिया पर जितनी आदर्शवादिता की सीख मै खुद पोस्ट करता हूँ ,
अगर उसकी आधी भी मै खुद अमल में ले आता ,
तो ......... अब तक “मैं” ,
“मैं” से निकल कर “आदमी” बन गया होता ! ! !
अरे अरे ..... आप नाराज़ मत होइए ,
यह मेरा निशाना 100% खुद पर ही है !
हम्म ...... बोले तो ..... ‘आत्मविश्लेषण’
बस यूँ ही चलते-चलते ..................ख्याल आ गया !
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काफी लोगों को दुनिया से विदा लेते वक्त एक अफसोस होगा , कि काश हमने बोल दिया होता । तो जनाब ! चुप मत रहिए , जो दिल में है , बोल भी दीजिए ।
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आखिर इंतजार किस बात का है ?
मसले खत्म होने का ?
अरे जनाब ! मसले खत्म नहीं होंगे ,
भले ही उम्र खत्म हो जाए।
तो उठिए , जी लीजिए जिंदगी ,
क्योंकि जिंदगी न मिलेगी दुबारा ।
बस यूं ही , चलते चलते ख्याल आ गया !-