आज ऋतुराज वसंत का आगमन हुआ !
अब कोयल की मीठी कूक
कानों में मधुरता घोलेगी ,
सरसों के पीले फूल
खेतों का सृंगार करेंगे ,
आमों के नए मंजर
भवरों को रिझायेंगे ,
प्रातः शुभ्र ऒस की बूंदें
हरे दूबों की मुकुट बनेंगी !
बसंती हवा की मखमली छुवन
रगों में सिहरन घोलेगी ,
कामदेव उन्मत्त होकर
सम्पूर्ण कलाओं सहित प्रस्तुत रहेंगे ,
प्रकृति सोलहों सृंगार करके
नवयौवना को चुनौती देगी ,
अलसाई पलकें सुबह होते ही
शाम का इंतजार करेंगी !
ऐसे में सभी खुश हैं, सभी मस्त हैं,
सभी उन्मत्त हैं, सभी जोश में हैं !
लेकिन
फुटपाथ पे रहने वाला "कलुआ" ?
-वो तो सबसे ज्यादा खुश है !
क्योंकि
अब उसकी पतली, फटी, घिंसी चादर
"नींद भरी रातें" तो लाएगी ,
जो पिछले तीन महीनों से ठिठुरा रही थी !
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