Bhavna   (Bhavna)
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मेरे अनुभव,
मेरे विचार...!
Joined 4 May 2021


मेरे अनुभव,
मेरे विचार...!
Joined 4 May 2021
18 APR AT 20:09

जिस ओर निहारूं,राधा ही राधा पाऊं।
अब तुम ही बताओ कन्हाई,ब्रज छोड़ कहां जाऊं।।

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16 APR AT 6:58

बसंत भी एक दिन पतझड़ होता है,
बसंत का आना प्रकृति है!
और पतझड़ हो जाना एक आपदा??

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15 APR AT 19:12

दोषी मैं ही हूं!
दण्ड की भागी भी मैं ही हूं!!
आपने तो महज़ शब्द कहे थे...
उन्हें भावों में पिरोकर,
कहानियां और कविताएं,
मैंने ही गढ़ ली है...
दोष सारा मेरा ही है!
उन कहानियों और कविताओं
की भी मैं दोषी हूं!
जो निर्थक हुईं लिखें जाने पर!!
जिनके साथ मैं कभी न्यायोचित
व्यवहार ना कर सकी!
मैं उनके प्रश्नों के समक्ष,
मौन साध लेती हूं,
मेरे पास कोई राह ही नहीं!
वो तो महज़ शब्द थे?
जिसका कोई अर्थ नहीं ।
और मेरे भाव ऐसे हैं कि
उनके लिए शब्द ही नहीं।।
सच कहूं.!तो उन भावों की भी
दोषी मैं ही हूं!
दण्ड की भागी भी मैं ही हूं.!!



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14 APR AT 7:53

सुनो प्रिय..!
तुम को असंख्य पत्र लिखें है, अपने एकांत में,अपनी मन की डायरी में!,
उसने वो सब कुछ समाहित कर लिया है मौन अधर से। वो सब सह लेती हैं जो मेरे अशांत मन को अपने हृदय पटल पर झेलती हैं! मैं तुम्हें, तुम्हारे नाम का एक भी पत्र नहीं सौंप पाऊंगी, परन्तु तुम यह मेरे हृदय से पूछना कि मैंने अपना सर्वस्व किस क़दर अर्पित किया है। जैसे देव चोखट पर करता है कोई पुष्प अर्पित...
मैं उस देव के लिए कोई खास नहीं, परन्तु उस पुष्प का स्वयं में शेष बचता कुछ भी नहीं....
मेरे बेनाम पत्र , जो केवल और केवल तुम्हारे नाम के लिए है। तुम्हारी यादों से है! जो मन की डायरी में है,

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2 APR AT 20:11

सुनो...!
ये आना - जाना तो लगा ही रहेगा!
तुम तो अपना जीवन जियो ना।
सबको अपने हिस्से का जीना होता है, जीवन।
फिर तुम क्यों शोक बनाते हो?
कभी कभी 'जाने देना' 'जिने देना '
जैसा भी होता है...
इसीलिए कह रही हूं, जाने दो...
तभी तो जीवन होगा।

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15 FEB AT 18:11

सुनो कन्हाई
अब तो विदाई की
घड़ी नजदीक आती प्रतीत होती है
ये बसंत मेरा नहीं है,
वो तो मैंने पहले ही
समर्पित कर दिया..!
सोचों, और याद करो।
मेरा वो संकल्पित हृदय...
जो मैंने केवल आपके लिए रखा...

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4 FEB AT 20:36

इस साल कोई नियम-कानून नहीं बांधूंगी!
हर बार स्वयं से ही जंग छेड़ी है,
हर बार स्वयं से ही हारी हूं,
हर नियम को पूरा करने के लिए
स्वयं को ही खो दिया।
हर कानून का पालन करने के लिए
स्वयं को ही तोड़ दिया।
ये अपनत्व की लड़ाई में,
मैं स्वयं को ही खपा चुकीं हूं अन्ततः
स्वयं को उस निराशा और अन्धकार तलें पाया।
जहां से जीवन जीना सहज कभी नहीं हुआ मेरे लिए..
इसीलिए सोचा इस साल कुछ नहीं।
जो है,जैसा है, वैसा ही।
सब प्रकृति के हाथ साथ!
जहां हवा जाएगी, वहीं बह जाऊंगी!
स्वयं को बहुत पीड़ित किया...
अब स्वयं को मुक्त रखूंगी।
अपने हृदय की विश्वास के लौ से
प्रकाशित स्वयं को करूंगी।
मुझे विश्वास है अपने अराध्य पर...
वो मुझे संभालने अवश्य आएंगे।

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2 FEB AT 11:33

मैंने बहुत कुछ सिखा है या यूं कहूं कि जीवन को जीना सीखा है...
प्रेम के मार्ग पर चलने चलने ही मैंने अपने जीवन को जीने की यात्रा की है...
मेरा सफ़र बहुत उलझनों भरा रहा है,
हजार झंझावात झेलें है इस हृदय पर,
स्वयं को उस स्थिति में पाया।
जहां मेरा सब कुछ बिखरा हुआ सा लगा, स्वयं को रिता पाया है,
परन्तु हार कर भी हारी नहीं, क्यों कि एक विश्वास की लौ ने मुझे जगमगा है,
मुझे मेरे आराध्य देव ने थाम लिया है,कहते हैं यदि प्रेम सच्चा और
पवित्र हृदय से किया जाएं तो उसे ईश्वर की मिलने आते हैं,
मैं भी उसी यात्रा पर हूं जहां से ये आत्मा परमात्मा में एकाकार हो जाएं ..
और जब तक इस तन में प्राण रहेंगे तब तक
ये यात्रा अनवरत जारी रहेगीऔर एक दिन ऐसा आएगा कि
इस तन से सांसों का आवागमन ही
प्रेममय हो , श्रीं में विलुप्त हो जाएगा..

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2 FEB AT 11:10

जब एक प्रेमी हृदय अपना सर्वस्व समर्पित
करने की अवस्था में आता है
तो वो अवस्था बहुत मार्मिक हो जाती है
उस स्थिति में होती है प्रेम की पराकाष्ठा।
जब एक प्रेमी हृदय अपनी सारी इच्छाएं त्याग,
अपने को प्रेम के प्रति करता है समर्पण,
वो स्थिति एवं अलौकिक ही होती है
जो हमें इस धरा से आर पार कर जाती है,
हम यहां के होकर भी नहीं रहते और
वहां ना होकर भी होते हैं...
सच कहूं तो प्रेम की अनुभूति,
ईश्वरीय वरदान है।
और प्रेम की पराकाष्ठा ही ,
ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग।

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2 FEB AT 10:57

यदि जीवन में प्रेम ना हो तो वह जीवन जीवन्त ही नहीं होता, उसमें एक निरसता, उदासीनता रहती है ना हर्ष रहता है मानों जीवन तो है परन्तु जीवित नहीं है।
मैंने महसूस किया है यदि किसी को प्रेम ना मिले तो वह असीम बेचैनियां से भर जाता है, और अन्दर ही अन्दर उस विरह से पीड़ित होता रहता है, यदि जीवन को जीना है तो उसे प्रेम के साथ जीना चाहिए क्योंकि प्रेम ही जीवन का आधार है, एकमात्र में से ही जीवन इस धरा पर टिका है।

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