ज़िंदगी है धूप -छांव तो होगी ही रंग बदलती है हर पल अपनों की तरहां ज़िंदगी भी कभी वक़्त के साथ कभी बहुत देर से मगर...🤔😔 मन पर निशां छोड़ जाती है ये परतें... बहुत ही गहरें...
कभी भरते नहीं, उसपर समय की परत जम जाती है गर, कभी कुरेदा जख्म फिर उभर आती है पीड़ा और भी बढ़ जाती है इंसान को अंदर ही अंदर को खाए जाती है लगा नहीं सकते मरहम बहुत गहरे होते हैं अंतर्मन के जख्म...
हौले-हौले जिन्दगी पर, इक परत चढ़ रही है । किस्मत नये सिरे से, कोई कहानी गढ़ रही है । दोनों ही अंजान है, नये जमाने के दौर से । मैं उसको पढ़ रहा हूँ, वो मुझको पढ़ रही है ।।