किसी अपूर्ण को पूर्ण करना प्रेम नहीं
किसी सम्पूर्ण को परिपूर्ण करना प्रेम है-
यूँ तो यादों के झोले में बहुत कुछ भर रखा है
फ़ुर्सत से बैठो तो बताएँ संजोकर क्या रखा है-
आज भी नम है तेरी मोहब्बत की मिट्टी
यादों के पाँव पड़ते ही धँस जाते हैं अंदर-
वो मुझमें रहकर मुझ पर नज़र रखता है
जाकर भी मुझमें अपना असर रखता है
कातिब मुझमें ख़ुद की इबारत लिख गया
हुनर में वो अपने ज़ेर-ओ-ज़बर रखता है
आज भी रातें गुज़रती हैं उसी के साथ मेरी
वो मुसलसल यादों में अपना बसर रखता है
वो ज़िंदगी में नहीं है फिर भी पुर-सुकूँ हूँ मैं
ज़िंदगी बनकर मेरी ख़ैर ओ ख़बर रखता है
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कई तस्वीरों का बोझ ढोया है, दिल-ओ-दीवार ने
क्यूँ ना कील निकाल कर अब ज़ख़्म भर दिया जाए-
पल भर की ख़ुशी में यूँ बावरा ना हो ए दिल
कभी देखा है लहरों को किनारे पे ठहरते हुए-
तू अपना ग़म रख दे मेरी हथेली पर
मैं बाँध के मुट्ठी जेब में रख लूँगा-
मोहब्बत ख़ूबसूरत है ये मैंने आज पहचाना
जब तेरी आँखों में ख़ुद को खिलखिलाते देखा-
काश कोई गंगा गुज़रती इस दिल से मेरे
तो मरे हुए ख़्वाबों को मोक्ष मिल जाता-