QUOTES ON #पत्रकार

#पत्रकार quotes

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2 MAY 2021 AT 10:12

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19 APR 2020 AT 18:24

कुछ पत्रकार शहेर गलियों में आते है..!
पूछते कुछ सवाल देश की जनता से..!!

फिर उस न्यूज़ को कुछ इस तरह से दिखते है..!!
हम उन खबरों को देखकर सब समझ जाते है..!!

हमारे पत्रकार हमें किस तरह भड़काते है..!
होती है उनसे भी बहुत सी गलतियां..!!

फिर भी हम चुप कर जाते हैं..!
शुरू हो जाती जब उल्टी गिनती..!!

तब वो माफी मांगने आते है..!
आइना कहते हम पत्रकारों को..!!

हम ही उन्हें आइना दिखाते है..!
ना बतलाओ ऐसी खबरे जनता को..!!

जो हिंदु मुस्लिम का बीज बो जाते है..!
इन बातों से नफरतें फैलती है..!

ये भोली देश की जनता है ..!
क्यूं आप इन्हें इस तरह से लड़ाते है..!!

_📝Razi

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12 JAN 2021 AT 0:18


तुम समाज बोलोगे, मैं रूढ़िवादी लिखूंगी
तुम लड़की बोलोगे,मैं आजादी लिखूंगी
तुम बेटी बोलोगे, मैं स्वभिमानी लिखूंगी
तुम लड़का बोलोगे, मैं रोने का हक लिखूंगी
तुम खुदा बोलोगे, मैं खुदगर्जी लिखूंगी
तुम इंसान बोलोगे, मैं इंसानियत लिखूंगी
तुम हिंदू मुसलमान बोलोगे, इसे तो मैं "पूरा हिंदुस्तान" लिखूंगी,
तुम गलत देखते हुए लोग बोलोगे, उन लोगो को मैं जर्दे- खाक लिखूंगी,
तुम धर्म के प्रचारक बोलोगे, उसे मैं पूरे "देश कि बर्बादी" लिखूंगी,
तुम पत्रकार बोलोगे, मैं उसे बिकाऊ लिखूंगी
तुम सरकार बोलोगे,उसे मैं कलाकार लिखूंगी
तुम हथियार बोलोगे, मैं "कलम" लिखूंगी
तुम दिल कि तमन्ना हजार बोलोगे, मैं तो बस "दो वक्त की रोटी" लिखूंगी,
तुम सब jaun Austen लिखो, मैं तो बस "प्रेमचंद" लिखूंगी....!!!

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2 AUG 2020 AT 6:24

लोग पत्रकार के झूठ को पचा सकते हैं
मगर कहानीकार का लिखा सच
जल्दी हज़म नहीं होता।

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23 AUG 2022 AT 22:08

रुस्तम 🕵️

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29 MAY 2017 AT 21:23

पत्रकार- "पड़ोसी मुल्क हमारा दुश्मन है, फिर आप उस से लोहा क्यों खरीदते हैं?"

मंत्री- "हमें दुश्मन से लोहा लेना चाहिये।"

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28 NOV 2018 AT 12:53

माज़ी, मुस्तक़बिल और हाल पूछते हो

अरे! काहे बेकार का सवाल पूछते हो।।

पत्रकार हूं, सरकार का मुखपत्र नहीं

तुम चुनाव पर भी मेरा ही ख़्याल पूछते हो।।

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30 MAY 2021 AT 9:58

अन्याय के खिलाफ
चुप रहना पाप है

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25 MAR 2017 AT 22:31

पत्रकार हूं, संवेदना लिखता हूं..
कभी दर्द तो कभी सच लिखता हूं..
फिर भी कई बार शोषित हो जाता हूं.
कई बार उलाहनाएं भी झेलता हूं..
पत्रकार हूं, संवेदना लिखता हूं..
तुम्हारी चाहत की कलम खिलाता हूं..
कभी रेसिपी तो,
कभी सुंदरता बटोरता हूं..
कभी आतंकियों तो,
कभी आंदोलनों से गुजरता हूं..
थप्पड़ तो कभी धक्के खाता हूं..
पत्रकार हूं, संवेदना लिखता हूं..
राजनीति लिखता हूं रणनीति बन जाता हूं..
सच की छलनी परोसता हूं..
कभी दस्तावेजों पे तो,
कभी चौराहे पे कुचला जाता हूं..
पत्रकार हूं, संवेदना लिखता हूं..

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29 MAY 2019 AT 19:24

आँखों में आँखें डाल कर बातें करती हो,

कही तुम पत्रकार तो नहीं हो गई।

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