धागा कहूं या मैं.. बंधी ही रहती हूं..
कभी खुद में.. कभी तुम में
धागा कहूं या रस्म.. बंधी ही रहती हूं..
कभी लाल से.. कभी काले से
धागा दे दो एक और..
बांध सके जो मेरी संवेदनाओं को,
चाह को,
सम्मान को...
फिर कहो उसे धागा मर्यादा का..
धागा कहूं या मैं.. बंधी ही रहती हूं..
कभी खुद में.. कभी तुम में
धागा वो मेरी जूती में सिल देना..
रोक सके जो मेरी राह को,
मंज़िल को,
ख्वाब की हवेली को...
बोलो बनाओगे ऐसा धागा..
धागा कहूं या मैं.. बंधी ही रहती हूं..
कभी खुद में.. कभी तुम में
वैसे है बहुत सस्ता..
हर घर... हर गली में
यूं हीं मिल जाता...
तुम्हारे आत्म सम्मान का धागा..
मेरी आहुति का धागा...
धागा कहूं या मैं.. बंधी ही रहती हूं..
कभी खुद में.. कभी तुम में
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Yoga trainer...
Art &
Music lover...oldies ❤❤❤
Social Worker.... read more
नुची ... कुरेदी
कचरे के ढ़ेर सरीखी.. दुर्गंध युक्त
कुछ तो देख के रूमाल दबाते..
जैसे आरक्षण के तहत निम्न हो गई..
ज़िंदा हुई.. ज़ज्बा भी तलख सा
जैसे
नमी को सुखा.. कचरा साफ किया
दुर्गंध, सुगंध हुई
निम्न नहीं.. अब मिसाल है अलख सी..-
सोच रही हूं ...
वो अपनी खुदगर्जियों के साथ आईने में कैसा दिखता होगा…
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हमें तो फूलों से मोहब्बत हुई,
पर एक दिन मुरझा गये,
और चले गये...
फिर कांटो से दोस्ती हुई,
चुभते जरुर हैं,
मगर ना तो मुरझाते हैं
ना छोड के जाते हैं...-
Hate me - As much As U Can...
I will Love - As much As I Can...
Because...
My Religion is To Be Kind...-
वो कहते हैं इतने दर्द भरे अल्फाज़ लाते कहां से हो...
और यहां तो इक सैलाब है जो छूटने को बाकी है...-
मैं, मेरा, मुझको, मेरे लिये, बहुत मशहूर है...
कभी दिल लगाने के लिये,
कभी दिल दुखाने के लिये...-
हम इसलिये नहीं रोते,
कि तेरे जाने का गम है...
बस हर बार कम्बख्त,
तेरी बेरुखी याद आ जाती है...-