पक्ष विपक्ष (Pro . Cons )की नज़र से देखने लगिए कोई चीज़ , कोई आदमी , कोई वाद , कोई प्रक्रिया अच्छी ही नहीं लगती । फिर वरियता ( priority) के अनुसार चुनना होता हैं या जो थे आप वही बने रहना होता है । वही बने रहेंगे तो अतिवादी, /कट्टर ,/ झुकाव के साथ तौले जायेंगे । लोग/ समाज कहेंगे इतना जड़ था की बदला ही नही । बदल जायेगे तो ये कहा जा सकता अच्छी बात समय के साथ परिवर्तन जरूरी है । नही पसंद आयेगा बदलना तो कहेंगे मौसम था बदल गया या गिरगिट की तरह रंग बदलता हैं ।
कुल मिला के लोग जीना दूसरे का नर्क करते पर चाहते उनका जीना आसान हो ।-
केवल रात जानती है
दिन के उजाले का पर्याय
और
गोधूलि छटपटाती है
अपने सीने पर रखे अँधेरे के
भार से
दिन के सुगबुगाहट पर
किसी की नजर नहीं है
जिससे ऋतुएँ कठघरे में हैं
'शायद' यह
कविता लिखते लोगों पर एक धब्बा है।— % &-
शाम होने को है
कई देवियाँ पांडालों में विराजमान होंगी
साथ ही साथ
मुकुट, छत्र, थाल भी
देवियों की आरती होने को है
सभी लोग श्रद्धा से सिर झुकाए
नहीं चाहिए धन और दौलत का राग
अलाप रहे होंगे
रात होने को है
आरती में गिरे पैसों का पाई-पाई
जोड़ा जा रहा होगा
और व्रतधारी लोग पकवान पर हाथ साफ
कर रहे होंगे
सुबह हो गयी है
मैंने देखा फुटपाथ पर एक बच्चा सिकुड़ गया है
पुनः शाम होने को है
क्रमशः वही दुहराया जा रहा है।-
आरोप-प्रत्यारोप निसंकोच जारी है,
विफलताओं का दौर अति भारी है।
पखापखी में घनघोर मची है खलबली,
दोषारोपण करने वाले कहते खुद को महाबली।
बेकसूर निरपराध करें त्राहि-त्राहि,
हुज़ूर ख़ुदरंग हो करें वाह-बड़ाई।
बैठा पक्ष करे पक्षपात वहाँ,
निस्तेज़ विपक्ष नज़र आए जहाँ।
मज़दूर, दरिद्र, बेघर, गरीब,
मृत्यु वरण के करीब-करीब।
करे शासन कोशिशें थोड़ी-थोड़ी,
पूछो प्रश्न तो करे सीनाज़ोरी।
चतुर्दिक मौन, छाया सन्नाटा,
मधुशाला बेंच कोरोना बांटा।
रक्षक लगा बाजी जान की रक्षण करें,
निठल्ले बेहूदगी दिखा भक्षण करें।
दुनिया एक हो नज़रबंद हो जाए,
कुछ दकियानूस संताप बढ़ाएं।
लोभ-लालच, मूर्खता हैं रोग बड़े,
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पहले इनसे लड़े।
नहीं बड़ा है कहर कोरोना,
सबसे बड़ा धर्म-जाति का रोना।-
मैं न किसी पक्ष का हूँ न ही मेरा कोई विपक्ष है।
मुझे एक ताज दिया गया है इन पक्षों को सुनने का।।
मेरा फैसला मुझे पक्ष के विपक्ष कर देता है और विपक्ष के पक्ष में।।-
यूँ आपस में कीचड़ उछालो ना यारों
ये मैली सियासत किसी की नहीं है,
तुम अपनी अपनी रोटी छुपा लो
ये खाने पे आए तो बचनी नहीं है,
दल ये बदलते हो कर के गिरगिट
ईमान में इनके बचा कुछ नहीं है,
तुम बस अपनी नियत संभालो
वादों में इनके रखा कुछ नहीं है,
शब्दों में मेरे ना ढूँढ़ो सियासत
मैं इसका नहीं हूँ, ये मेरी नहीं है..-
जनता तो शतरंज के मोहरों की तरह है,
सभी पिट रहे हैं पक्ष और विपक्ष के पालों में...!!-
पक्ष-विपक्ष सोचे बिना
न्याय-अन्याय देखे बिना
हानि-लाभ गिने बिना
अभी-कभी की बात बिना
तुझ पर विश्वास रखे जो
वही तेरा है
यह भी खुद से पूछ
ऐसे में तू किसका है?-
मेरी सोच गलत तुमको लगती,
और मुझे भी तुम्हारी लगती है;
गैरों को रोज जगाती दुनिया,
पर खुद कंहा कभी जगती है ?
मेरी इच्छा नहीं है की,
तुम हमेशा मेरे साथ रहो;
अपनी बात मैं कहता हूं,
तुम भी अपनी बात कहो।
तुम सही या मैं ग़लत
शायद यह हमारा भरम हो;
पर एक ही रहे उद्देश्य ,
राष्ट्र सेवा हमारा करम हो।
✍️निRbhay-