अनजान   (निRbhay)
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मैं पल दो पल का शायर हूं....
Joined 28 June 2019


मैं पल दो पल का शायर हूं....
Joined 28 June 2019
15 JUN 2022 AT 1:48

लोग महंगाई बेरोज़गारी से फेचकुर फेक रहल बा लेकिन खुश एह बात पर बा कि हमरा से ज्यादे हाउ दिक्कत में बाने...
फलाने के घर गीर गईल..
त चिलाने पर जांच बैठ गईल..
हमके का मिलल....ठेंगा👍

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21 FEB 2022 AT 11:33

नेता जी आएं, नेता जी आएं;
साथ में VIP गाड़ियाँ लाएँ,
गाँव के मुखिया दौड़े आ,
बाबू, बाबा, चौधरी भी लाएँ;
सभे उन्हें अपने दुआर बैठाए,
ताकि हमरो भौकाल बन जाए,
नेता जी सफेद कुर्ता जमाएँ,
सब लोगन से हाथ मिलाएँ,
जब तक नेता बिस्किट खांए,
तब तक नमकीन-चाय आ जाए,
बड़ी-बड़ी वो बात बतियाएँ,
अंदर-बाहर हाथ घुमाएँ,
महिना भर नेता जलवा दिखाएँ,
फिर सालों बदरा में गुम होइ जाएँ।— % &

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22 AUG 2021 AT 21:09

कल खो दिया आज के लिए,
आज खो दिए कल के लिए,
कभी जी ना सकें हम आज
आज के लिए,
बीत रही है जिंदगी कल आज और कल के लिए...

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1 AUG 2021 AT 20:07

दोस्ती का सफर शुरू हुआ था शिशु मंदिर बरहज से, फिर पी.पी.एस में बीते जिंदगी के सबसे खूबसूरत आठ वर्ष जिन यारों की दोस्ती आज भी सोचने पर कुछ पल के लिए भावुक कर ही देती है। फिर गांव के वो सारे यार दोस्त जिनके साथ मैच खेलने में कभी-कभी खूब लडाई-बहस भी हुएं, फिर गोरखपुर में मिलें शायद जिंदगी के सबसे बुरे अनुभव के बीच भी गुदगुदाकर हंसाते रहने वाले यार जहां ना हमसब पढ़े ना किसी को पढ़ने दिया। फिर आती है प्रयागराज की दोस्तों के साथ की कोचिंग लाइफ, आजाद पार्क की मौज-मस्ती,लॉज में की बकैती और शास्त्रर्थ करके अपने ज्ञान की पहुंच दिखाने की होड़,चाय पर देश की दिशा-दशा पर चर्चा🤭, रूम पार्टनर के साथ बर्तन धुलने से DBC बनाते जाने कब बीत गया 😊 फिर जिंदगी में एक मोड़ आया घर से बहुत दूर एक नया परिवार मिला वो RTC के यार-दोस्त-भैया लोग, पूरे 7 महिने खाना-पीना नहाना, दौड़ना,सजा काटना,सोना सब साथ था। इस सफर में सारे यार दोस्त छूटते गए कुछ से मिले सालों हो गए कुछ अब भी साथ हैं। पर तुम्हारी बहुत सी यादें आज भी साथ हैं और मैं खुशनसीब हूं जो तुम सब मुझे मिले। मैं चाहूंगा तुम सब जहां हो झंडा गाड़े रहो और भगवान मुझे भी इस काबिल बनाए की मैं मुश्किल वक्त में तुम्हारे साथ खड़ा मिलूं ❤️

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6 JUN 2021 AT 9:53

मैं बना रहा पत्थर वो सारे रो दिए,
जाते-जाते दर्द कैसा जेहन में बो दिए;
सूख गए हैं आंसु या टूट गई कलम,
या फिर है मैंने सारे शब्द खो दिए।

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10 MAY 2021 AT 21:46

उलझनें बहुत हैं फिर भी मुस्कुराता हूं,
इसकी आड़ में हर ग़म को छिपाता हूं;
तौलता जब ग़म अपने गैरों के ग़म से,
हर बार अपने ग़म को मैं कम ही पाता हूं।

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11 APR 2021 AT 10:23

सुबह का किस्सा शाम तक भुलाना पड़ता है,
हो कितने भी जख्म पर मुस्कराना पड़ता है;

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25 DEC 2020 AT 6:26

तुमसे ही सारी शायरी मेरी,
तुमसे ही सारे अर्थ हैं;
तुम ही तो हो शब्द मेरे,
तुम बिन सब व्यर्थ है।

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1 DEC 2020 AT 1:20

इस लंबे जीवन की यारो,
बस एक भली-सी कसरत है;
कि अहं ये सारा जला सकूँ,
ये अन्दर की इक हसरत है।

‌‌ © पियूष मिश्रा

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9 NOV 2020 AT 17:31

तेरे सारे गम मंजूर मुझे,
बस इतनी खुशी मेरे नाम हो;
मेरी बाहों में हो सुबह तेरी,
तेरी बाहों में मेरी शाम हो।

✍️ सूर्या

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