Pranav Vashistha   (©शून्य)
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Joined 20 October 2018


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Joined 20 October 2018
21 JUL AT 0:32

था आता मुझ को गीत बनाना
लफ्ज़ जोड़ना, पेज सजाना
हुनर तो पीछे छूट गया वो
कोई तारा जैसे टूट गया हो,

जब तारा टूटा, मांगा सब ने
इच्छाओं पर लगे परखने,
तारा ख़ोया, कुछ सब ने पाया
तारे ने इक तब खेल बनाया

नियम एक था, टूटना होगा
ज्यों ज्यों सब ही, छूटना होगा
फिर टूट टूट के बिखरा तारा
हासिल सब कुछ, ख़ुद को हारा..

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5 MAR AT 13:47

हमें बस रही अब हमारी कमी है,
बाक़ी तो सब कुछ पा लिया हमनें

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5 FEB AT 0:55

सारा मसअला ही यही है,
मेरे कई क़िरदार हैं
हर कहानी है निभानी,
अपना सब कुछ भूल कर।

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4 OCT 2023 AT 8:47

कभी यूं भी हो की मुस्कुराएं हम
हम भी रूठें किसी से, मनाएं कम
छांव देते देते शजर मर तो नही जाता
फ़िर भी आंच में उस को जलाएं कम
दब कर रहे क्यूं मन में हर सिसकी
कभी खुल कर भी आंसू बहाएं हम
शायद, शिकायत की रहें क्यूं ही चुप्पी
अपनी चीखों को भी कागज़ पे गाएं हम..

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5 AUG 2023 AT 5:56

एक खाली जिंदगी का पेपर पकड़ा दिया गया है
ना कोई आकार ही है
की समझा जा सके आख़िर
कितनी जगह को सुख भर पाएगा
कितना खालीपन दुख के हिस्से आएगा
कितना किसी की याद में बीतेगा
कितना हम खुद को ही दे पाएंगे
ये रिक्तों के प्रश्नों की संभावनाएं
ख़त्म होने का क्या प्रमाण है?
पीढ़ी दर पीढ़ी,
ये रिक्त स्थान बढ़ते ही जाते हैं
गुणोत्तर श्रेणी की तरह
और इन्हें हल करने का नही है कोई सूत्र
कोई भी क्रिया,
कोई भी जगह,
कोई भी शक्स
नही पूरा कर पाता इस पेपर को
कोई भी पूरा नहीं करता खालीपन को।

(अनुशीर्षक में पढ़ें..)

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23 JUN 2023 AT 23:20

अंगीठी में आंच का होना
सुबह का थोड़ा जल्दी होना
और तारों की छांव में सोना
नही था तब तक खेल सलोना।
थे भागते पहियों के संग
मोटर गाड़ी भले नही थीं
रहते थे बस जेब में सिक्के
तब तक कोई कमी नहीं थी।

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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3 MAY 2023 AT 23:31

सोचता था क्या करूंगा
मैं चालाकी सीख के
है देखना कब तक हूं चलता,
दोनों आंखें मीच के..

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12 JAN 2023 AT 22:25

है किसे परवाह भला की कोई शायर मर गया
दिल को बहलाने की ख़ातिर,
हैं लतीफे और भी..

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23 JUN 2020 AT 17:52

एक स्त्री का आँचल ज़बरन खींचने वाला
सोचो कितना नग्न था,
खुद को छुपाना चाहता था
महज़ एक कपड़े के टुकड़े से
ये जाने बगैर
की एक चिथड़ा नही ढकता
मन पर लगे दागों को।
इसी अज्ञानता की चिढ़ में
नोचे होंगे कितने ही देह
अपने मन में ही,
कर देने को सबको ही
अपने मन जैसा मैला
अपनी ही तरह नग्न
खुद को सामान्य साबित करने के लिए।

(अनुशीर्षक में पढ़ें..)

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3 JUN 2020 AT 16:44

एक जानवर है देखिए, बारूद खा के मर गया
अब ये आप सोचिये, की कौन आदमखोर है

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