Pranav Vashistha   (©शून्य)
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Joined 20 October 2018


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Joined 20 October 2018
4 OCT 2023 AT 8:47

कभी यूं भी हो की मुस्कुराएं हम
हम भी रूठें किसी से, मनाएं कम
छांव देते देते शजर मर तो नही जाता
फ़िर भी आंच में उस को जलाएं कम
दब कर रहे क्यूं मन में हर सिसकी
कभी खुल कर भी आंसू बहाएं हम
शायद, शिकायत की रहें क्यूं ही चुप्पी
अपनी चीखों को भी कागज़ पे गाएं हम..

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5 AUG 2023 AT 5:56

एक खाली जिंदगी का पेपर पकड़ा दिया गया है
ना कोई आकार ही है
की समझा जा सके आख़िर
कितनी जगह को सुख भर पाएगा
कितना खालीपन दुख के हिस्से आएगा
कितना किसी की याद में बीतेगा
कितना हम खुद को ही दे पाएंगे
ये रिक्तों के प्रश्नों की संभावनाएं
ख़त्म होने का क्या प्रमाण है?
पीढ़ी दर पीढ़ी,
ये रिक्त स्थान बढ़ते ही जाते हैं
गुणोत्तर श्रेणी की तरह
और इन्हें हल करने का नही है कोई सूत्र
कोई भी क्रिया,
कोई भी जगह,
कोई भी शक्स
नही पूरा कर पाता इस पेपर को
कोई भी पूरा नहीं करता खालीपन को।

(अनुशीर्षक में पढ़ें..)

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23 JUN 2023 AT 23:20

अंगीठी में आंच का होना
सुबह का थोड़ा जल्दी होना
और तारों की छांव में सोना
नही था तब तक खेल सलोना।
थे भागते पहियों के संग
मोटर गाड़ी भले नही थीं
रहते थे बस जेब में सिक्के
तब तक कोई कमी नहीं थी।

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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3 MAY 2023 AT 23:31

सोचता था क्या करूंगा
मैं चालाकी सीख के
है देखना कब तक हूं चलता,
दोनों आंखें मीच के..

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12 JAN 2023 AT 22:25

है किसे परवाह भला की कोई शायर मर गया
दिल को बहलाने की ख़ातिर,
हैं लतीफे और भी..

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15 AUG 2021 AT 22:57

ये तल्ख़ी मेरे मिज़ाज में नहीं थी
इक ज़माना लगा है गला घोटने में

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25 FEB 2021 AT 23:40

मैं किसी के भी किसी काम का नही था
ये शऊर भी मेरे बहुत काम आया

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23 FEB 2021 AT 19:47

इस समंदर के भी होंगे और भी साहिल कहीं
दिल फ़क़त क्यों ढूंढता है जो उसे हासिल नहीं

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25 NOV 2020 AT 1:03

चाहत किसी की चाहें हम किस लिए?
शजर ना थोड़ी किसी से छांव मांगते हैं

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26 OCT 2020 AT 14:07

मुझे मौत से जुड़ी हर लक़ीर से लगाव है
और इस लिहाज़ से हूँ ज़िन्दगी निभा रहा

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