था आता मुझ को गीत बनाना
लफ्ज़ जोड़ना, पेज सजाना
हुनर तो पीछे छूट गया वो
कोई तारा जैसे टूट गया हो,
जब तारा टूटा, मांगा सब ने
इच्छाओं पर लगे परखने,
तारा ख़ोया, कुछ सब ने पाया
तारे ने इक तब खेल बनाया
नियम एक था, टूटना होगा
ज्यों ज्यों सब ही, छूटना होगा
फिर टूट टूट के बिखरा तारा
हासिल सब कुछ, ख़ुद को हारा..-
मादरी ज़ुबान हिंदी है, हिंदुस्तानी और अंग्रेज़ी में भी ... read more
सारा मसअला ही यही है,
मेरे कई क़िरदार हैं
हर कहानी है निभानी,
अपना सब कुछ भूल कर।-
कभी यूं भी हो की मुस्कुराएं हम
हम भी रूठें किसी से, मनाएं कम
छांव देते देते शजर मर तो नही जाता
फ़िर भी आंच में उस को जलाएं कम
दब कर रहे क्यूं मन में हर सिसकी
कभी खुल कर भी आंसू बहाएं हम
शायद, शिकायत की रहें क्यूं ही चुप्पी
अपनी चीखों को भी कागज़ पे गाएं हम..-
एक खाली जिंदगी का पेपर पकड़ा दिया गया है
ना कोई आकार ही है
की समझा जा सके आख़िर
कितनी जगह को सुख भर पाएगा
कितना खालीपन दुख के हिस्से आएगा
कितना किसी की याद में बीतेगा
कितना हम खुद को ही दे पाएंगे
ये रिक्तों के प्रश्नों की संभावनाएं
ख़त्म होने का क्या प्रमाण है?
पीढ़ी दर पीढ़ी,
ये रिक्त स्थान बढ़ते ही जाते हैं
गुणोत्तर श्रेणी की तरह
और इन्हें हल करने का नही है कोई सूत्र
कोई भी क्रिया,
कोई भी जगह,
कोई भी शक्स
नही पूरा कर पाता इस पेपर को
कोई भी पूरा नहीं करता खालीपन को।
(अनुशीर्षक में पढ़ें..)-
अंगीठी में आंच का होना
सुबह का थोड़ा जल्दी होना
और तारों की छांव में सोना
नही था तब तक खेल सलोना।
थे भागते पहियों के संग
मोटर गाड़ी भले नही थीं
रहते थे बस जेब में सिक्के
तब तक कोई कमी नहीं थी।
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
सोचता था क्या करूंगा
मैं चालाकी सीख के
है देखना कब तक हूं चलता,
दोनों आंखें मीच के..-
है किसे परवाह भला की कोई शायर मर गया
दिल को बहलाने की ख़ातिर,
हैं लतीफे और भी..-
एक स्त्री का आँचल ज़बरन खींचने वाला
सोचो कितना नग्न था,
खुद को छुपाना चाहता था
महज़ एक कपड़े के टुकड़े से
ये जाने बगैर
की एक चिथड़ा नही ढकता
मन पर लगे दागों को।
इसी अज्ञानता की चिढ़ में
नोचे होंगे कितने ही देह
अपने मन में ही,
कर देने को सबको ही
अपने मन जैसा मैला
अपनी ही तरह नग्न
खुद को सामान्य साबित करने के लिए।
(अनुशीर्षक में पढ़ें..)-
एक जानवर है देखिए, बारूद खा के मर गया
अब ये आप सोचिये, की कौन आदमखोर है-