Prashant Singh   (Prashant Singh)
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Joined 22 October 2017


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Joined 22 October 2017
20 MAR AT 17:58

ये रिश्ता कागजी था
तय था टूट जाना
दिलों की घनिष्ठता
तोड़ देती
स्वाभिमान को।

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13 FEB AT 7:26

मुझसे ये उम्मीद न करो दिल्लगी दिखाऊं जमाने में।
तुम पसंद हो बस यही बचा है मेरे आशियाने में।।

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11 FEB AT 22:09

वो न बोलो जो खुद भी सुना न जा सके।
अगर जुबां मेरी और लहजा तुम्हारा हुआ,
जी तुम भी न पाओगे।।

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10 NOV 2024 AT 20:45

कौन किसके साथ रहें।
कौन किसे छोड़ जाएं।।
जिसकी जैसी संगत।
उसको वैसा भाएं।।
क्या सही क्या गलत।
इसमें क्यों उलझाए।।
जो दिल से उतर जाएं।
फिर आँखों को काहे भाएं।।
मैं सही तू गलत...
तू तू थू थू।
मैं मैं मय मय।।
ये वो सब बेकार।
धूमिल सब जो दृश्यमान।।
क्या सहूं क्या कहूं।
ये माया है माया मुझे भरमाएं।।

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15 OCT 2024 AT 22:07

चाँदनी उतर आई है आँगन में
पर हैरत है चांद नहीं लाया है
हां, हाँ चाँद,
उसको चंदा मामा कैसे बोल जाऊँ
उसको कभी महबूब बताया था।
हाँ तेरी संज्ञा किसी की विशेषता
मचलता मन खूब कूदता खेलता
जैसी मिट्टी काटती नदियाँ
उसको उड़ेलता धकेलता
मेरे ख्याल में कौन तुम
तुम क्या चाँद, चाँदनी?
तुम ख्याल, वजूद मेरा सच
जीवन की श्रेष्ठता.....

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11 OCT 2024 AT 9:02

It Is Almost Simplest Answer
Of Every Possible Question
Is Don't Know, Even You Know.
Because It Exhibit Wisdom,
You Choose Negligence Over Argument.

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2 OCT 2024 AT 12:56

लिखता रहूं।
मिटाता रहूं।।
तेरा झूठी वजूद बना।
तेरा सच छिपाता रहूं।।
खिलौना मैं प्यारा सा तेरा।
तू तोड़ता रहे मैं मुस्कुराता रहूं।।
बाहों में तेरे मैं रहूं,और आंखों में रेत तू डालता रहे।
तेरी आंखों से दुनिया देखूं और दिल को तू नकारता रहे।।
तू देख पैसे और खूबसूरती चाम की जा बदलता रहे बाहों को।
मुझे चाहने वाले को दरकिनार कर मैं पीछा करूं तेरे अरमानों का।।
तू कर नफरत सिद्दत से मुझे झूठा बोल नक्कार कह।
मै नफरतों को शब्दों में बदल लिखूं, तु मुझको अभागा कह बेचारा कह।।

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24 SEP 2024 AT 14:03

मेरे ख्वाब कोई और चुरा रहा।
मै किसी और का हकीकत जी रहा।
मेरे किस्से में मेरे हिस्से का कुछ भी नहीं।
मैं मैं में भी नही और मुझमें अब मैं भी नही।।

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26 AUG 2024 AT 11:42

खिलखिलाकर हँसने वाले
गम छुपाते दिखने वाले
शहद ले के घूमने वाले
छुरी घोपते मिलने वाले
घाव दिखा कर घायल करने वाले
सुख में अब मिलते है रोने वाले...

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26 AUG 2024 AT 11:37

दिल में शहद जुबां पे सच गुमान नहीं मसला है।
पूर्ण अच्छे कर्म और जेबें खाली अभिमान नहीं मसला है।

एक शहर में दो मकान मुकाम नही मसला है।
क्या क्या करूं ख्वाहिश नही मसला है।।

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