Prashant Singh   (Prashant Singh)
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Joined 22 October 2017


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Joined 22 October 2017
2 AUG AT 10:18

क्या खुदको तलाश पाए हो।
बड़ा दुनिया छोड़ के आए हो।

ऐसे साधे हो चुप्पी।
जैसे बर्फ से निकल के आए हो।

सबसे बंद कर ली बातें।
क्या अंदर से शांति पाए हो।।

ऐसे धरे बैठे हो हाथ पे हाथ।
जैसे जीवन में सब कुछ आजमाए हो।।

ऐसे हतोत्साहित हो बैठे तुम।
जैसे पहाड़ फतेह करना हो और उसी से हार आए हो।।

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27 JUL AT 15:56

मिलकर बैठे है महफिल में जुगनू सारे।
मुद्दा ये है सूरज को हटाना चाहिए।।
परियां चाहती है पंखों से ढक दे।
सागर चाहता है इसे पानी से बुझाना चाहिए।।

मेरे पास लफ्ज़ है, लोग है, सोच है।
सोचो कैसे चुप रहता हूँ तमाशा टालने के लिए।।
मुझे समझदार कहकर समझाया जाएगा।
मेरे हिस्से फिर समझौता आयेगा।।

दस्तूर वही हो जो मंजूरे दिल हो।
सच के सामने झूठ चकनाचूर होना चाहिए।।
आँखों के झुक जाने से दब जाने के आसार है।
मैं तो कहता हूँ सच्चे हो तो गुरूर होना चाहिए।।

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22 JUL AT 23:17

मेरे पास सुनाने को कुछ नहीं फहमी।
तुम्हें जो भी लगता तुम्हारी गलतफहमी।।
मुझे प्यार है हवा में है यह फहमी।
उसको मालूम है वो खड़ी ठिठुरी सहमी।।

कोई सुनता ही नहीं सुनाते है बहुत।
आईना है देखने को पर दिखाते है बहुत।।
ख़ारिज कर रहा हर बात में बहुत।
सब कुछ फीका पड़ रहा उसका असर है बहुत।।

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20 JUL AT 21:02

अपनी गलतियों पे, दूसरे पर इल्जाम लगाने वाले।
बेहतर होते है वो लोग,समय देखकर काम निकालने वाले।।

बहुत गलत होते है, हृदय में हृदय रखने वाले।
बहुत बुरे बन जाते है, काम से काम रखने वाले।।

बहुत गलत होते है नैतिकता, आदर्श रखने वाले।
बेहतर बन जाते है बुरे इरादे, मीठे जुबान रखने वाले।।

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20 JUL AT 10:26

मुझे सिर्फ तेरी ही तलब है।
और तुझे आवाज भी नहीं लगाना है।।
तुझे सबकुछ बताना है।
पर तुझसे बात भी नहीं कर पाना है।।
तू क्या है मेरा तुझे क्यों जानना है।
सिर्फ तू ही मेरा मुझे ये भी बतलाना है।।
तुझे मोहब्बत इकरार करवाना है।
पर मुझे मोहब्बत कर के भी दिखाना है।।

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18 JUL AT 20:31

कोई नितांत से परेशान है।
किसी को कोलाहल सताता है।।
कोई सच से घबराता है।
किसी को झूठ भाता है।।
कोई कुछ भी सोच नहीं सकता।
किसी को याद सताता है।।
कोई रिश्ता बनाता बिगाड़ता है।
किसी का शुरुआत में ही टूट जाता है।।
कोई दो कदम भी साथ नहीं चल पाता।
किसी को बहुत दूर जाना होता है।।

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16 JUL AT 21:51

अब तेरे हिस्से का मुझमें कुछ भी नहीं ।
अब यूं मुझपे हक न जताया कर ।।

तू रुठ जा, टूट जा, जा मिल कहीं ख़ाक से ।
न मिल किन्हीं रास्तें, न कभी आमने सामने ।।

तू संभाल तेरा झूठ, मैं संभाल अपना सच ।
चल निकल पड़े अपने अपने रास्ते ।।

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15 JUL AT 18:48

वो जो नजरों से गिरा है,
नजर भी मिलाता है।
वो ऐसा है...
जिस दरख़्त पर बैठता है,
उसको खोखला कर जाता है।
लोग जरूरत है,
वो काम निकालता है।
लोग को सीढ़ी बनाता है,
मंजिल पर पहुंच जाता है।

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15 JUL AT 16:37

ये मुझसे जलते है,
और मेरा वक्त भी चाहते है।
मेरा विरोध करते है,
और मुझसे हद भी चाहते है।।
ये दोनों ध्रुव पाना चाहते है,
पर कोई जरूरत भी नहीं करना चाहते है।
मेरी लिए रंजिशें रखने वाले,
मुझे खत्म करने के लिए मेरी मदद चाहते है।।

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9 JUL AT 16:42

ये हुस्न, ये दिखावा ये चंद लोग।
मुझे रास न आते है ये बनावटी लोग।।

मुझे मेरी हद को बताने वाले लोग।
खुद भूले भटके है ये रास्ता बताने वाले लोग।।

इस फलक उस फलक दिल लगाने वाले लोग।
मुझे नासूर है सबसे दिल्लगी निभाने वाले लोग।।

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