वक़्त से थोड़ा सा वक़्त छीनकर लाऊंगा,
वक़्त को उस वक़्त की कहानी सुनाऊंगा,
यूं उलझाकर वक़्त को वक़्त की बातोंमें,
मैं हर वक़्त की बात वक़्त से कह जाऊंगा !
देखना हर हाल में मैं हालात को रोक पाऊंगा,
हाल न रुके तो रुकने वाला हालात बनाऊंगा,
मैं हर हाल को हालात के जाल में फंसाकर,
ऐसे हाल का मैं हारने वाला हालात बनाऊंगा !
अब तो हमेशा खुदसे एक दौड़ मैं लगाऊंगा,
यूं दौड़ते हुए भागदौड़ को भी मैं थकाऊंगा,
वक़्त के साथ मैं दौड़ को दौड़ना सिखाऊंगा,
दौड़ते दौड़ते एक दिन दौड़ को भी हराऊंगा !-
ज़िन्दगी में दौड़ की तेज रफ्तार
में तुमने अपने ही खो दिए..
भले ही ज़िन्दगी में तुमने कितने ही संघर्ष
किये हो पर पलट कर ना देखा तुमने मुझे
ज़िन्दगी की दौड़ में....!!!!
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर तुम्हें पुकारा
पर अनसुना कर दिया तुमने मेरी
आवाज़ को जब भी एक पल के लिए
बात करने को कहा व्यस्त हूँ कह कर
टाल देते थे बात को......
ज़िन्दगी की दौड़ में...!!!!
ना जाने क्योँ कामयाबी के लालच ने
तुम्हे इतना दूर कर दिया कि तुम
अपनो को भूल गए.....
ज़िन्दगी की दौड़ में..!!!!
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देखते ही देखते पलक झपकते ही
मृत्यु की सीमा भी पार कर गई..,
कम्बख़त...
बहुत तेज़ दौड़ती थी यह "ज़िन्दगी"!-
इस ज़िंदगी की दौड़ में सब रिश्ते बिखर गए ,
कुछ घर से दूर ,कुछ अपनों से दूर निकल गए ,
मैं ठहरा ही था राह में ,इक साथी की तलाश में ,
मुझसे जीतने की होड़ में ,सब आगे निकल गए !
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जिसको देखा सफलता के पीछे भागता पाया
फिर देखा उन्हें इस दौड़ में सुकून भी चाहिए।-
किसे पकड़ना चाहते हो दौड़कर
उस पार भी हैं वही, जा रहे जिन्हें छोड़कर-
बचपन तो वहीं खड़ा इंतजार कर रहा है
तुम बुढ़ापे की ओर दौड़ रहे हो-
जिंदगी छिप गयी है किसी दीवार के पीछे
बेवजह दौड़ रहा मैं तेरे झूठे प्यार के पीछे
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इसमें नई बात क्या है..
आस्मां को छूने की चाह मे
जमीं से रिश्ता भूल जाने की...
और असलियत की दुनिया छोड़
मिराज के पीछे दौड़ लगाने की...
इंसान की पुरानी आदत है...
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क्यूँ दौडूँ किसी और मंज़िल के पीछे
जब पौधें हैं सिर्फ तेरे प्यार के सींचे
- साकेत गर्ग 'सागा'-