Swagatam Ratha   (© Swagatam Ratha ‘मुश्क’)
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Joined 12 November 2017


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Joined 12 November 2017
5 SEP AT 2:24

रिस्तेदारी और रास नहीं आ रही है,
ज़िन्दगी तुझसे मिठास नहीं आ रही हैं,

तमाशा झूठ का इतना देख चुके हैं के
कहीं से सच की बू-बास नहीं आ रही है,

यूँ डाल कर आँख में पट्टी कितना देखें
नज़र ऐसे भी कुछ खास नहीं आ रही है,

सब हैं शहर में मग़र सहरा सा लगता है
यहाँ की नियत देख प्यास नहीं आ रही है,

हवा में लोग यहाँ पर ज़हर घोल चुके हैं 
हाँ ‘मुश्क’अच्छे से साँस नहीं आ रही है !

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10 AUG AT 19:12

मैं बुरी आदतों का मारा हो गया हूँ,
यानी की बेहद नाकारा हो गया हूँ,

मुझे ये बात कहते हुए उसने छोड़ा
मैं अब से आज़ाद दुबारा हो गया हूँ,

दूरी बनाई जिसके लिए दोस्तों से
के वो अब ज़मीं, मैं सितारा हो गया हूँ,

मर जाती हैं उठ कर उम्मीद की लहरें
ऐ ज़िंदगी ! मैं बे-किनारा हो गया हूँ,

‛मुश्क’ वो थी और मैं खुश था, आबाद था
वो दूर गई, फिर आवारा हो गया हूँ !

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21 NOV 2024 AT 19:18

क्यों एक ही ख़याल रोज़ कुचलता है मुझे,
ये सन्नाटा अब हर पल निगलता है मुझे,

सुब्हो-शाम इस सोच में उलझा रहता हूँ
कौन है वो जो इस कदर बदलता है मुझे,

अधूरा रह जाता है सब कुछ तेरे बिना
तेरा न होना क्यों इतना खलता है मुझे,

जान जब भी अलमारी में कुछ ढूंढता हूँ
वहाँ तेरा दिया तोहफ़ा मिलता है मुझे,

हर इक शख़्स के अंदर पाता हूँ मैं तुझे
जिस पे भरोसा कर लूं वो छलता है मुझे !

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26 AUG 2024 AT 19:58

सुना है मुहब्बत के शहर में लोग यहाँ वहाँ रुकते हैं,
फिर न जाने क्यों हम यूँ देख के उसका चेहरा रुकते हैं,

‘मुश्क’ हम रुकते हैं इस तरह उसके पास क्या ही बताएं
जिस तरह राधा जी के पास जाकर कन्हैया रुकते हैं !

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22 AUG 2024 AT 19:00

क्यों एक ही ख़याल रोज़ कुचलता है मुझे,
ये सन्नाटा अब हर पल निगलता है मुझे,

सुब्हो-शाम इस सोच में उलझा रहता हूँ
कौन है वो जो इस कदर बदलता है मुझे,

अधूरा रह जाता है सब कुछ तेरे बिना
तेरा न होना क्यों इतना खलता है मुझे,

जान जब भी अलमारी में कुछ ढूंढता हूँ
वहाँ तेरा दिया तोहफ़ा मिलता है मुझे,

हर इक शख़्स के अंदर तुझे पाता हूँ मैं
जिस पे भरोसा कर लूं वो छलता है मुझे !

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16 NOV 2023 AT 19:45

हर काम देर होने के बाद कर रहा हूँ, 
क्यों मैं तुझे अब मुसलसल याद कर रहा हूँ,

मनाया है ख़ुद को तुझसे मिलने के लिए 
लगता है फिर से वही फ़साद कर रहा हूँ,

क्यों गिर कर घुटनों पे ख़ुदा के आगे रोज़
तू लौट आए बस ये मुराद कर रहा हूँ,

इल्म है मुझे मंज़र क्या होगा फिर भी मैं 
उलझ कर इसमें वक़्त बर्बाद कर रहा हूँ,

जां कोई नहीं है सुनने को हाल मेरा
इस हालत में तेरी फ़रियाद कर रहा हूँ !

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20 OCT 2023 AT 17:52

लग नहीं रहा प्यार फिर इक बार होगा,
होगा भी तो कहाँ वैसा प्यार होगा,

हाँ प्यार किया था हमने दिल्लगी नहीं
सोचिए कि उसका कैसा ख़ुमार होगा,

यादों को खरोचना क्या है मत पूछो
ये वो समझेगा जो समझदार होगा,

उससे मिलकर यार मैं बदल गया बहुत
इस अहसान का उम्र भर उधार होगा,

'मुश्क' तू फिर मत बोल भूलने को उसे
कोशिश कर के बस वक़्त बेकार होगा !

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25 JUL 2023 AT 18:50

निकल के इस जंगल से मैं अब किधर जाऊंगा,
भूल गया हूँ राह कैसे लौट कर जाऊंगा,

दबोच कर रक्खे हैं मुझे सारी बीती बातें
इस घुटन में रहूंगा तो शायद मर जाऊंगा ।

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26 JUN 2023 AT 13:53

हैं कुछ आदतें जो छोड़ पाना मुश्किल है,
यानी कि उसका मेरा बिछड़ना मुश्किल है,

ग़र हर कदम पर वो दे साथ मेरा तो मैं
कैसे बनूँ किसी का दीवाना मुश्किल है !

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7 JUN 2023 AT 4:33

जब देखा मैंने राह पर यूँ दो पेड़ों का गले लगना,
दिखा मुझे तेरा आना, माथे पर चूमना, गले लगना,

हर बार हम मिलते हैं जब एक बात ज़हन में चलती है
लगता है बच्चों सा लड़ना, झगड़ना, तेरा गले लगना,

अनबन बढ़ता देख मैं चेहरा देख के रुक जाता हूँ
भरी निगाहों से मुझे देखना,पास आना, गले लगना,

याद है क्या तुझको दोनो बातों में कितना खो गए थे
यूँ बातों में वक़्त गुज़र गया मैं भूल गया, गले लगना,

गर मुहब्बत क्या है समझना है तो इक काम करना 'मुश्क'
उसकी आँखों में इक बार डूब कर देखना , गले लगना !

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