ये कौन जानता था कि चरित्र उनका दोहरा था
वो थे एक खिलाड़ी और मैं सिर्फ एक मोहरा था
देख न सके हम अपने आस्तीन के साँपों को
अँधेरा नहीं था मगर वहाँ घना कोहरा था-
है ये “लफ़्ज़”
अहमियत मालूम बाक़ियों को कहाँ
अफ़साने यूँही भुलाए जाते सब
लिख कर दोहराये ना होते गर वहाँ
इस मायाजाल की नगरी में फँसा
हर शायर भी हो जाए गुमशुदा जहाँ
अर्ज़ ए नियाज़ काबिल बना रहा
नाक़िस रह जाता वरना आवारा यहाँ-
ये क्या हो रहा है ज़िन्दगी में
क्यों अतीत खुदको दोहरा रहा है ?
प्यार की अब कोई जगह नहीं दिल में
क्यों कोई फिर मेरी ज़िन्दगी में आ रहा है ?
जिसे छोड़ चुकी थी सालो पहले
क्यों वो लाल दुपट्टा फिर से मुझे बुला रहा है ?
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Na jaane Aaj Sabka dohra
Kirdaar kyu hai.
Log zaroorat se zyada
Hoshiyaar kyu hai.-
नफरत के शोलों में वो जल रहा है
खुद जैसे आग का गोला बन रहा है
महफिल में उसकी बातें तो सुनो जरा
सबके सामने कैसा भोला बन रहा है-
# दोहरा चरित्र #
कैसे ख़ुश रह लेते हैं ये दोहरे चरित्र वाले
सामने कुछ होते अपनों के और होते कुछ अपने मतलब के आगे
ख़ुद को पाक़ दिखाने को ना जाने कितनी क़सम अपनों की ही खाते
अपने झूठ को छुपाने में ना जाने किस हद से गुज़र ही जाते
यक़ीनन ये रूप उनका अपनों ने ना देखा होगा तभी तो
नादान और मासूम के ख़िताब से उन्हें नवाज़ा होगा
काश ! चरित्र उनका ये सामने सबके आए और झूठी क़समों का
ख़ामियाज़ा और कहीं नहीं इस जग में ही भुगतना पड़ जाए
किसी और को छलने का दुस्साहस फ़िर उनमे कभी ना होगा
अपनी शराफ़त का नक़ाब एक दफ़ा उतारना ही होगा 💞-
सुनो,
जो मैं तुम्हारा नाम बार-बार दोहरा रही हूँ
तो क्या आज कल तुम
हिचकियों के लहज़े में अपनी बात कह रहे हो।-
जिस पल को आप
बार बार दोहरा रहे हैं,
यकीन मानिए आप
उस पल के प्रेम में पड़ रहे हैं।-
दोहरा व्यक्तित्व, दोहरे मापदंड...
अच्छे लोगों को सन्यास की ओर मोड़ देते हैं!!-
एक को रुलाता हूं दूसरे को हंसाता हूं ,
अक्सर में अपनें जिस्म को दो टुकड़ों में सजाता हूं।-