हौले-हौले
दिल ने बढ़ा ली, चाहत
लगी बहकने, मोहब्बत की राहत
नज़दीकियों की, उठी आफ़त
कर कैसे देते, ना-नुकुर
हममें भी थी अपनाहत
💞-
Shikha_dil_se at Instagram
Shikha.Khurana at Instagram
ढूँढन... read more
, जो चाहें वो करो
होते कौन हम, दें तुमको हिदायत
दुनिया तुम्हारी, जो चाहें वो करो
दिल तुम्हारा, है ही रंगीन
तो हुलिया , जो चाहें वो धरो
बिजलियों की रौनक, चमकाती है महफ़िल
अरे रखो तशरीफ़ वहाँ, शमा से क्यों ही डरो
दिल तुम्हारा, अब क्यों धड़कता लिए हमारे
रोक लीं थीं जब साँसें किसी के लिए, अब इल्तिजा हमसे क्यों ही करो
दिल तुम्हारा, जो चाहें वो करो 💞
-
आज समझे हो क्या
ये तो कर रहीं थीं, कब से इशारा
नज़रअंदाज़, कर रहे थे क्या
आँखों की शरारत, है बड़ी क़ातिलाना
इनसे कभी, घायल हुए हो क्या
हैं बड़ी मदमस्त,
इनमें चाहते हो डूबना क्या
आँखों की शरारत, करती हैं आफ़त
सँभालने इनको, आते हो क्या
हँसी-ठिठोली, बन गई है संजीदा
आँखों की शरारत को, शराफ़त सिखाते हो क्या
💞
-
, समझा देर से
पर कोई बात नहीं, देर से आए दुरुस्त आए
कर लिया इस बात पर यक़ीन
सहना ग़लत है, समझा देर से, देखकर करते रहे अनदेखा
दिल के हाथों थे मजबूर, मुस्कुराते रहे, जबकि थे ग़मग़ीन
करते भी क्यों ना ऐसा, ख़ुद से ज़्यादा उन पर जो था यक़ीन
सहना ग़लत है, समझा देर से
उनके नक़ाब में थे शबाब, छुपाना आता था उन्हें बेहतरीन
करके दिल अपना पक्का, उतरवा दिया नक़ाब उनका, ख़ुद पर किया यकीन
सहना ग़लत है, समझा देर से
ना लगा अच्छा देखकर, अपनी वफ़ा की तौहीन
आते हैं वक़्त-बे-वक्त अब भी वो, कर दो माफ़, कर लो एक दफ़ा और यक़ीन
सहना ग़लत है, समझा देर से
पर परखे को ना है अब परखना, देखो कोई और ज़मीन
जो तोड़ सकता यक़ीन एक बार किसी का, बिके ज़मीर का कैसा यक़ीन 💞
-
अब दिलाएँ कैसे उनको, ये यक़ीन
बढ़ा लिए हैं क़दम हमने, देखा जब उनको करते, हमारे ज़ज़्बातों की तौहीन
💞
-
कितनी मासूम है ये
मेरी आँखों की ओस
हौले से गई सरक, देखा जब
ना सँभाल पाएँगी आँखें ये बोझ
💞-
पूछ बैठे हमारी हैसियत,
दिए मुस्कुरा हम, है तो ख़ैरियत
सरमाया दिल है हमारा, पर दे रहा है दिक्कत,
बस न है इससे ज़्यादा, हमारी खा़सियत
💞-
भी हुआ करता था, कभी चंचल
लग गई नज़र ना जाने किसकी,
कहता कभी इधर चल, तो कभी उधर चल
पूछा तो था हमने इससे, बंद क्यों है तेरी हलचल
दिया जवाब बड़ी मायूसी से, समझने में किसी को ये रहा विफ़ल
रे उदास मन, ये भी क्या हुई बात
ना पाया ग़र समझ उसको, तो आगे बढ़ चल
पर है कुछ ये नीरस सा, ना चाहता बहलाना ख़ुद को
सोचता रहता बस, बीता कल
ना पड़ते अब चक्कर में इसके,
ना तो सीख जाएँगे हम भी करना, इसकी नक़ल
अच्छा ही है, अब हो रहे हैं हम दूर इससे
ना तो उदास मन, कर देगा हमें बेअक़्ल
चल रे चल उदास मन ग़र हो सके तो देख, क्या कर ली अपनी शक्ल 💞
-