QUOTES ON #देव

#देव quotes

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17 JAN 2020 AT 10:20

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21 OCT 2020 AT 10:47

ओळखुनी स्वतःस,
मन इतरांचे ऐकावे....

न बोलता काही,
समजुनी समोरच्यानी घ्यावे....

टेकूनी माथा देवासमोर,
दिवा लावावा तिने सांजेला....

जसे असुनी दूर तिने,
स्पर्श करावा माझ्या मनाला....

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15 DEC 2021 AT 6:16

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22 JUL 2017 AT 20:32

पहाटे उमललेलं फूल जसे
निष्काम भावनेने अर्पिले जाते देवाला...
तसेच तेसुद्धा वाहून घेतात उभं आयुष्य
त्यांच्याच अंशाकडून वंशाचा उद्धार करायला...
आणि काय विडंबन...
दुसऱ्या दिवशी ते पवित्र फूल
निर्माल्य होऊन कचराकुंडीत
आणि ते अडगळ बनून
वृद्धाश्रमात पाठवले जातात...
निर्दयीपणे....

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2 NOV 2020 AT 18:26

हृदय का शुद्धतम तल
दे दिया मैंने अपने
ईश्वर को!

अशुद्धतम तल की ओट में मेरा छिप जाना गवारा न हुआ
मेरे देव को!

तभी दिया उसने मुझे प्रेम हृदय में संचित करने को
और
सदा से सदा तक के लिए शुद्धतम रहने को...

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7 OCT 2021 AT 4:21

देव ने ही देह दिया, और देह को दाह
पाप क्या और पुण्य क्या, समन्दर यह अथाह

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मुद्दतों बात मैंने उसे अपने सामने से गुजरता देखा था,
किस्मत अब भी बुरी निकली, मैंने फिर एक सपना देखा था

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24 JUN 2021 AT 17:51

किती सहज म्हणून जाता ना ..
सगळ काही देवाच्या हातात आहे,
विसरलात का??
त्याच देवाने तुम्हालाही दोन हात अन् त्यासोबत बुद्धी पण दिलीय.

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धूप से निकल कर छांव में जाने को जी करता है,
घुटन सी हो रही शहर में गांव जाने को जी करता है,
यूं तो तड़पता था मन कभी देखने को चकाचौंध रातों की,
लेकिन अब बस सरसो से भरे खेत देखने को जी करता है,
वो समय था जब पिज्जा बर्गर के नाम से जी ललचाता था,
अब साग से सना भात और चीनी लपेटी रोटी खाने को जी करता है,
ये गाड़ी, ये मोटर, ये एसी, ये रेफ्रिजरेटर अब नहीं भाते,
अब साईकिल पर घूमने और तालाब में नहाने को जी करता है,

एक अरसा बीता आम के बाग में बैठ सुनने को पिछली कहानियां,
उन निशानियों को दुहराने का जी करता है
इस मुसाफिर मन छोड़ कर सड़क की गलियां,
अब गांव जाने को जी करता है।

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ये शाम,ये रंगत, ये रौशनी, ये नजारा,
सब कुछ हैं, मगर तुम नहीं हो,

ये चंदा, ये सूरज, ये आसमां, ये सितारा,
सब कुछ हैं, मगर तुम नहीं हो।

पढ़ रहा था मैं तुम्हारी चिट्ठियां,
जिसमें अल्फ़ाज़ तुम्हारे हैं मगर नहीं तुम नहीं हो,

अब भी बाकी है मेरे शर्ट में तुम्हारे बदन की खुशबू,
मगर इसका महकना क्या, जब साथ तुम नहीं हो,

गिर रहे हैं आलमारी से तुम्हारे तोहफे एक-एक कर के
मैं कैसे इन्हें कैसे उठाता जब साथ तुम नहीं हो,

दर्द देता है ये चिराग मेरी आँखों को मगर,
मैं कैसे इसे बुझा के सो जाता जब तुम नहीं हो

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