राष्ट्रवादी अंकित देव अर्पण   (अंकित देव अर्पण)
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खामोश
नवोदयन
Law Student
Anchor
Writer
Poet
Politician
Joined 25 January 2019


खामोश
नवोदयन
Law Student
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Poet
Politician
Joined 25 January 2019

प्रेमिका के लिए मंगाए हैं उसने
इत्र लगे हुए महंगे गुलदस्ते बाज़ार से,
उसने भूख से तड़पती लड़की का
सस्ता गुलाब नहीं खरीदा,
देखो ना कितना गरीब है वो
उसने दुआ खरीदना नहीं सीखा...

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इससे ज्यादा और क्या कर सकते हैं किन्हीं के लिए
उन्हें आजाद कर सकते हैं हम उन्हीं के लिए

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गर कभी तुम मुझसे मिलने आना,
एक किताब, मुट्ठी पर गांव की मिट्टी,
थोड़ा वक्त और चंदन लेकर आना...
मैं इंतजार करूंगा

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गर मुनासिब लगे,
तो किसी शाम मिलने आना,
मुझे घंटों बैठ कर
चांद देखना है!— % &

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यूं बहुत कुछ लिखा इश्क़ पर,
लेकिन हर बार कलम रुकी,
जब-जब लिखना चाहा तुम पर!

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क्या हुआ? दुबारा वापस आए हो?

अच्छा बैठो! देखते हैं कब तक ठहरोगे तुम!

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मुद्दतों बाद निकल आया हूँ गिरफ्त से,
अब जुर्म भी करुंगा तो इश्क़ नहीं करूंगा।

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तुम अब मुझे नहीं पढ़ती,
इसलिए मैं अब नहीं लिखता,
तुम अब मुझे नहीं सुनती,
इसलिए मैं अब नहीं कहता,
अब तुम वापस मिलने आई हो?
सुनो मैं अब यहां नहीं रहता!!

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कुछ लोग मेरी शख्सियत का अंदाज़ा लगाने आये हैं,
जरा पता करो कि कौन सा पैमाना लेकर आये हैं!
वो नादान हैं बहुत, सोचते हैं मिटायेंगे हस्ती मेरी,
मुझे बेनकाब करने वाले, नकाब लगाए आये हैं!!

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मेरे पास अपने इश्क़ के वो पुराने किस्से मत सुनाओ,
मैं भी इसी आग का राख हूँ, सब धुआं-धुआं सा लगता है।

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