केश नयन अधर रंग रूप के नाम पर छली गई
तथाकथित सुन्दर लड़कियों ने प्रेम नहीं देखा...।
~वैशाली
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कहते हैं कि दुःख हमें मांजते हैं, लेकिन कुछ सूरतों में दुःख मांज- मांज कर हमारे हृदय की किरचें तक छील देते हैं।
हमें ज़िन्दगी से दो- दो हाथ करने जितना मज़बूत बनाने का झांसा देकर हमारे साथ कबड्डी खेलते- खेलते ये कब हमारी हिम्मत की ही रीढ़ तोड़ देते हैं शायद इन्हें भी उनका अंदाज़ा नहीं होता। सब समझाते हैं कि मुस्कुरा कर सब सहते रहो, खुशियों की तरह दुःख भी अधिक दिनों तक नहीं टिकता, लेकिन बाज़ दफा लगता है कि ये मुआं दुःख मुस्कुराहट को ही चुनौती समझ लेता है और तब तक नहीं जाना चाहता जब तक आदमी घुटने पर बैठ रहम की भीख ना मांग ले! सोचती हूं, अगर इंसान दुःख से हार जाये तब क्या किसी सिकन्दर की भांति विजयी दुःख मनुष्य को जीवनदान दे चला जाता है.... किसी नये शिकार की तलाश में? किसी अन्य की मुस्कान पर, इच्छाओं पर, आशाओं पर विजय प्राप्त करने?-
'प्रेम' आया केवल
प्रेमिकाओं के 'अंजन' के हिस्से मे.....
प्रेम समागम की
मधुर बेला मे
नेत्रों मे हर्षा गया.....
और वियोग मे
लुढ़क गया
विरहिणी के कपोलों पर|-
प्रेम तो बेचारी तथाकथित
कम सुंदर लड़कियों
ने भी नहीं देखा,
मैंने भी नहीं देखा...।-
हथेली पर मेरे नाम की लकीर न बना।
दुर्भाग्य हूँ मैं मुझे अपनी तक़दीर न बना।-
"दुःख या दुर्भाग्य?"
(✝☪卐ॐ)
है दुःख धरा का आज ये
क्यूँ बंट रहा समाज ये??
-(अनुशीर्षक में)-
इस दुनिया में मजलूम, मजदूर का कोई खैर-खबर नहीं।
जो जिन्दगी गुजार दिये दूसरे कि कोठीयाँ बनाने में,
दुर्भाग्य से उनके अपने कोई घर नहीं।😅-
ठगी सी रह गई, वो संध्या भी जिसे प्रेम था चाँद से उसकी चमक से,
जिस रोज़ वादा था मिलने का वो रात भी, अमावस्या की निकली ।
प्रेम तो इस इंतज़ार में ठहरी संध्या ने भी नहीं देखा ।-
प्रेम एक
अधूरी प्यास सा है मेरे लिए !
मैं इसे,
न तो पूर्ण रूप से कभी जी पाया..
और
न ही पूर्ण रूप से कभी भूल सका !!-
एक बार फिर मानव ने अपनी ,
शर्मनाक ओछी औकात दिखाई ..
क्यों है वो पशु से भी नीच कभी कभी ,
ये वाक्या , आज फिर से दोहराई ..
गर्भवती हथिनी ने अपने प्राण ,
इन संवेदनहीन मूर्खो के कारण गवाँई ..
बनाकर उस बेजुबान का तमाशा ,
हे मानव , तूने कैसी पीड़ा पहुँचाई ....
#कृष्णा 😐-