31 दिसम्बर 2020
प्रिय धानी,
साल बदल रहा हैं लेकिन अपने मन के उन्माद को शब्दों में घोल नहीं पाया। इस बात का अहसास मुझे तब हुआ जब मैं चन्द अच्छे लम्हों के लिए पीछे मुड़ा, मैंने पाया कि सब लोग आगे निकल गए और मैं सफ़र में हमेशा की तरह अकेला रह गया। जिन सपनों को बीते साल जीना चाहता था उनको भी अच्छे लम्हों में पिरो ना सका। वैसे तुम्हारें लिये मैंने ख्वाहिशों के झरोखों के साथ उम्मीदों की लौं जलाए रखा हैं। उस राह ग़म की छींटे बहुत आएगी, क्या तुम उनसे बचा कर मेरी जिन्दगी में नई दीप जलाना चाहोगी..? प्रिय धानी क्या तुम भी बीते साल की तरह बदलना चाहोगी..?
...PikU...
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