Arhat   (अर्हत)
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बेख़ुदी पर न ‘मीर’ की जाओ
तुमने देखा है और आलम में
—मीर
Joined 27 March 2020


बेख़ुदी पर न ‘मीर’ की जाओ
तुमने देखा है और आलम में
—मीर
Joined 27 March 2020
29 OCT 2023 AT 8:53

मेरी ख़ाक-ए-नुमू पे ज़रा सा पानी डाल
ऐ मिट्टी के देव मुझे पैकर में ढाल

दिल आँगन में खिला तेरी यादों का महर
आख़िर इस बदली में हुई कुछ धूप बहाल

सन्नाटों से गूँज रहा है ये शमशान
और शाने पर बैठ गया है इक बेताल

किसे ख़बर वो लोग वहाँ किस हाल में हैं
उस बस्ती के लोगों से अब बोल न चाल

कोई तमाशा है न तमाशाई ‘अर्हत’
दुनिया अब न रही बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल

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28 JUL 2023 AT 4:09

अब्र-सिफ़त लोगों कि न पूछो क्या वो सितम कर जाते हैं
एक निगह करते हैं इधर और आलम नम कर जाते हैं

कभी कभी आह-ओ-ज़ारी और कभी कभी बातें प्यारी
इन मोहमल कामों से ही हम कुछ काम अहम कर जाते हैं

हम हैं हिरन अपने जंगल के भीड़ नहीं भाती हम को
इसीलिए इन शहरों से हम अक्सर रम कर जाते हैं

अर्श से गर आ जाएँ फ़रिश्ते करने हमसे ख़िताबत-ए-चर्ख़
हम से आदम-ज़ाद उन्हों को भी आदम कर जाते हैं

‘अर्हत’ जी इन गलियों में अब चीख़ चीख़ रोते हैं और
एक तरह का सन्नाटा यहाँ कोई दम कर जाते हैं

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17 JUL 2023 AT 13:42

वेदों से पहले, तू था
वेदों के ईश्वर से पहले, तू था

पंच महाभूतों का देख विराट और विकराल रूप
तू व्यथित और व्याकुल हो रहा था,
और हाथ उठाकर कर रहा था याचना
यही याचना 'ऋचा' कहलाई

तमाम देवताओं के जन्मोत्सव, तूने ही मनाए
तूने ही सानंद मनाए पैग़ंबरों के जन्मदिन

हे मानव, तूने ही सूर्य को सूर्य कहा,
और सूर्य, 'सूर्य' हुआ
तूने ही कहा चांद को चांद, और चांद 'चांद' हुआ
सारे विश्व का नामकरण तू ने किया
और उसकी सारी चीजों को मान्य बनाया

हे प्रतिभाशील मानव,
तू ही सब कुछ है, और तेरी वजह से ही
यह संसार है, संजीव और सुंदर

–बाबूराव बागूल

हिंदी अनुवाद (मराठी से): अर्हत

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10 JUL 2023 AT 21:41

बिखरा हूँ अब जो शहर में मानिंद-ए-गर्द मैं
लौटा हुआ हूँ शब का, बयाबाँ-नवर्द मैं

पझ़मुर्दगी पज़ीर है आलम में हर नुमूद
होता हूँ ऐसे सब्ज़ कि होता हूँ ज़र्द मैं

उस चश्म-ए-गर्म-दीद की है मुझ को आरज़ू
वो देख ले इधर तो पिघल जाऊँ, सर्द मैं

यक-जाई-ए-बदन का भरम क्यूँ न टूट जाए
निकलूँ जो इस बदन से अभी फ़र्द फ़र्द मैं

‘अर्हत’ से दोस्ती है सो उसका है ये मआल
फिरता हूँ अब जो दर-ब-दर आवारागर्द मैं

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8 MAY 2023 AT 17:04

इक दीवार के गिर जाने से
कितने साए मर जाते हैं

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8 MAY 2023 AT 1:50

कैसा सियह और घना अंधेरा
चंद्र-ग्रहन है इन आँखों में

मंज़र मंज़र रिज़्क़ है इस का
एक दहन है इन आँखों में

आँसू हैं या कस्तूरी मृग
शहर-ए-ख़ुतन है इन आँखों में

बर्क़-फ़िशाँ हैं सारे मंज़र
और ख़िर्मन है इन आँखों में

आ टकरा ऐ बाद-ए-बहारी
एक चमन है इन आँखों में

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30 APR 2022 AT 10:57

दुनिया छोड़ के कभी न जाने वाला मैं
दुनिया को ही दश्त बनाने वाला मैं

इक लम्हे को तुझे ख़ुदा करने के लिए
अपनी ख़ुदी को सदा मिटाने वाला मैं

दिन ढलते घर लौट के आने वाला तू
और हर ताक़ पे शम्अ जलाने वाला मैं

शजर शजर घर अपना बनाने वाले परिंद
डगर डगर पर पेड़ उगाने वाला मैं

मुझको अपने साथ में रखने वाला तू
तेरे किसी भी काम न आने वाला मैं

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5 APR 2022 AT 8:15

होती रही है यूँ तो यहाँ पर सबों की सुब्ह
हूँ मुंतज़िर कि हो कभी मेरी शबों की सुब्ह

क्या भूल गए हैं इसे बेदारगान-ए-शब
होती ही नहीं दह्र में तीरा-शबों की सुब्ह

हो शब तो वो फक़त हो तेरे काकुलों की शब
हो सुब्ह तो वो सिर्फ़ हो तेरे लबों की सुब्ह

हम जाग रहे थे तो थी दुनिया के लिए रात
अब सो रहे हैं हम तो हुई है सबों की सुब्ह

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28 JAN 2022 AT 22:33

तुझ गुल को शबनम-ए-नम ने इस क़दर भिगोया
था सर-निगूँ बहुत दिन ख़ुर्शीद-ए-शो'ला-ज़न भी

تجھ گل کو شبنم نم نے اس قدر بھگویا
تھا سر نگوں بہت دیں خورشیدِ شعلہ زن بھی— % &

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20 DEC 2021 AT 22:23

तेरे दुख की दवा करनी है मुझको
सो देख अब इब्न-ए-मरियम हो रहा हूँ

ترے دکھ کی دوا كرنی ہی مجھ کو
سو دیکھ اب ابنِ مریم ہو رہا ہوں

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