मोहताज हो गई है देशभक्ति भी हमारी चंद तारीखों की,
जागती है ये बस कुछ खास कार्यक्रमो से,
बाकी दिनों में चाहे भले ही मर जाए सब,
ग़रीबी,भुखमरी और बेरोज़गारी से,
गर वाकई दिखानी है देशभक्ति तो हर रोज़ दिखाओ,
छोड़ते क्यों हो तुम हर बात सरकार पे,
कुछ कार्यों का बीड़ा तुम खुद भी उठाओ,
पर इतना सब हमने गर जो कर दिया,
तो शायद देश का विकास हो जाएगा,
और देश के कुछ तथाकथित लोगो का दायित्व जो छिन जाएगा,
उठेंगे कल फिर हम और कोसेंगे नेहरू को इसके लिए,
अब ज़िम्मेदारियों का बोझ है कहीं तो सरकाना पड़ेगा।-
स्त्रियांँ संभालती हैं
घर आंँगन परिवार
सहेजती हैं
और कभी
अपने आंँसूओं से
द्रवित भी कर देती हैं
निभाते हुए अपने कर्तव्य
बन जाती हैं
कभी दुर्गा..
और पुरुष
संभालते हुए
घर बाहर
निर्वहन करते हैं दायित्वों का
परंतु छिपा कर अपने आंँसू
अपनों से..
बन जाते हैं
कभी शिव..
शायद इसीलिए रुद्राक्ष दुर्लभ होते हैं...!!-
तुम राम कृष्ण के वंशज हो
मायावी को पहचानो तुम
साधु का रूप धरे कोई भी
रावण न अब बच पाए
कोई भूखा बन कर आए तो
माया से सीता न हर पाए
#किसनान्दोलनकीमाया-
वो जो हैं बन के मजबूर बैठे हुए
उन सियासी हुकूमत से जा कर कहो
चंद वोटों के खातिर न बेचे वतन
तेरे दायित्व हैं तुम हिफाजत करो
हाँ तुझे भी चुकानी है कीमत कोई
मुल्क की आबरू तुझ से भी है बड़ी
इस के दामन पे पंजे बढ़े फिर से तो
जंग होगा समझलो वही आखरी
फिर न कहना कि इंसान को क्या हुआ
फिर न हमको सुनाना जमहूरी ग़ज़ल
खाक होक निभाने हैं फिर फर्ज को
राख कर जाना है दुश्मनों का नसल-
रिश्तों को कभी नाम ना देना। नाम रिश्तों के आयाम निर्धारित करता है,आयाम सीमाओं को स्थापित करते हैं, सीमाएं अपेक्षा, कर्तव्य और दायित्व को चिन्हित करती हैं जिस से रिश्ते में एक ठहराव आता है और ठहराव से निर्जीविता और नीरसता पनपती है, वहीं बेनाम रिश्ते किसी सीमा में बंधे नही होते, चंचल और जीवट होते हैं इसलिए ऐसे रिश्ते सब से खूबसूरत रिश्ते होते हैं।
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कुछ अपनी भी सुध लो प्यारे,
बैठे क्यों हो विस्मित प्यारे..?
पल पल जीवन बीत रहा है,
पीड़ा का स्वर गीत रहा है..!
अब आशा के दीप जला रे.!
कुछ अपनी...
मनुज की पीड़ा ईश मिटायें,
जो श्रद्धा से शीश झुकाएं..!
शुद्ध हृदय से व्यथा सुना रे.!
कुछ अपनी...
जन्म का अवसर व्यर्थ न जाए,
सह अनुभूति का अर्थ न आए,
मानव का दायित्व निभा रे..!
कुछ अपनी...
सिद्धार्थ मिश्र
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कर्तव्य और दायित्व
अन्तर हैं दोनों मैं।
कर्तव्य समय, परिस्थिति और सम्बन्ध के अनुसार बदलते रहते हैं, लेकिन दायित्व कभी नही।-
जायदाद बेशक न दें,
उत्तम संस्कार दें!
हैं ये सबसे उपयुक्त निवेश,
वसीहत में
अपने बच्चों को ये उपहार दें!
राग, द्वेष से परे सदैव रहकर
परस्पर सामंजस्य
और प्रेम का परिवेश दें!
गीली मिट्टी सा कोमल बचपन,
जैसा चाहें वैसा आकार दें!
थोड़ी सी सख़्ती, थोड़ा दुलार दें!
सुघर कुम्हार बनकर,
उनको संवार दें!
आहार और विहार का,
सदैव ध्यान दें!
छोटे,बड़े के सम्मान का,
उचित ज्ञान दें!
इंसानियत से बढ़कर,
धर्म नही दूजा
सर्वश्रेष्ठ कर्म ही,है श्रेष्ठ पूजा!
लोभ मोह त्याग कर,
निष्ठा से जीवनयापन कर सके
वो मज़बूत आधार दें!
23.7.21-
ख़ुद ही मुकर गया वो अपने प्रभार से
मुझ पे है आरोप कि मैं वफादार न रहा !-
औरत...
उन्होंने कहा कमजोर है...
जिसपर सृजन का दायित्व हो,
वो भला कमजोर कहां....-