Vidya Shandilya  
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Joined 12 August 2019


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26 SEP 2024 AT 23:42

पॉज़ को सुन लिया जाना चाहिए
इससे पहले कि वह साइलेंट में तब्दील हो जाए

दे दिए जाने चाहिए कुछ सवालों के जवाब
इससे पहले कि वह ख़ामोशी अख़्तियार कर ले

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14 SEP 2024 AT 14:28



हिंदी... जितनी सुंदर सरल, उतनी ही गूढ़ , विस्तृत 
कितना कुछ जानने के बाद भी कितना कुछ शेष..!!

केवल एक दिन से नहीं, लाना होगा उपयोग नित दिन 
बचाना है भाषा को फिर, करना है कुछ विशेष..!!

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17 AUG 2024 AT 21:44

अब कुछ नियम अब नए बनाने होंगे
लड़कों को भी अब हद सिखाने होंगे

पाबंदी हो उन पर भी बेकाम, 
देर रात, आवारा भटकने पर

दो उनको भी संस्कार कुछ
अपनी बहन.. बेटियों सा

साझा करें बातें अपनी
अपने पिता, घर वालों से

ना बुरी कोई संगत करें 
ना नशा बुरा करें कोई !

अरे! लड़का है सब चलता है..
छोड़ दो अब ये दोगलापन  !!

अब कुछ कानून नए बनाने होंगे
लड़कों को भी अब हद सिखाने होंगे।

- विद्या भट्ट शांडिल्य 

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17 AUG 2024 AT 19:51

परिपक्वता उम्र से नहीं अनुभव से आती है
कुछ अपनों, कुछ परायों से आती है..!

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15 AUG 2024 AT 13:56

आज़ादी, किस आजादी की बात करते हो तुम!!?
जहां एक लड़की एक महिला बेखौफ होकर रह न सके
स्कूल हो दफ़्तर हो या हो राह चलते सरे बाज़ार!!
रात हो या दिन हो या हो घर हो या बाहर
कलीग ,रिश्तेदार हो या हो कोई पड़ोसवाला !!
कहांँ ? कहांँ सुरक्षित है,है कहांँ आजाद वह बतलाओ ज़रा!!
भय से व्याप्त है जग सारा और बात करते हो आज़ादी की !?
गुलाम है समाज, इंसान,आज भी सदियों पुराने वहशीपन का..
ना उसे शिक्षा बदल पाई ना आधुनिकता...।  

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23 JUN 2024 AT 11:01

अरे अरे... देखो देखो!!
ये ,आज मत चले आना वॉशरूम से
तौलिया लपेटे ..ये देखने कि
कौन आया है दरवाज़े पर..!!
अरे! आज जन्मदिन है आपका..
कुछ तो ख़याल करो.. दोस्तों का..!
ज़रा बन के संवर के,
बालों में कंघा करके आना
फिर बैठते हैं लेकर, प्याली चाय की..!

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19 JUN 2024 AT 20:18

पुरुष तुम...!!

जब भी लिखना चाहा तुम्हें..
तब तब लिखा प्रेम..
तब तब लिखा विरह..
लिखीं..भीगी पलकें,
लिखी हाथों  की लाल हरी चूड़ियांँ,
लिखा बच्चों के सिर पर छत..
लिखा बाबूजी का चश्मा..
लिखी मांँ के हाथों की छड़ी,
लिखा अर्धनारीश्वर..
लिखा संगी..सखा..मित्र

पुरुष तुम..!!

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4 JUN 2024 AT 21:07

होता है वफ़ादार वह अपनी कौम के लिए,
आतंकी बनने के लिए भी हिम्मत चाहिए,
सभी में कहांँ वह दम कि,
गोली खाने के लिए भी जिगर चाहिए..!!

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30 MAY 2024 AT 20:58

उग आता है कहीं भी
दीवारों पर..मकानों के,
खंडहरों में, कहीं कोने में,
कभी छतों पर,
कभी दहलीज पर, तो 
कभी बावड़ी के किनारे,
बस नमी मिलनी चाहिए,जैसे..
प्रेम हो मानो...!
पनप जाता है..
अपनेपन की हल्की सी नमी में..!
(BOTTOMUP POEMS)

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24 MAY 2024 AT 20:51

बुनियाद हिला दी थी दोस्ती की,
लड़की के एक रिजेक्शन ने..

कल तक जो लड़का दम भरता था,
हमेशा साथ देने का, आजकल गायब रहता है।

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