सहजता
जीवन में
सच्ची खुशियों का अभाव नहीं
क्यूंकि भौतिकता का अत्यधिक दबाव नहीं!
कम में
व्याकुलता बढ़े
अत्यधिक पाने की आतुरता रहे
इन दोनों के मध्य में पीसना मुझको स्वीकार नहीं!
जीवन के
दुर्लभ क्षण को
प्रतिक्षण में क्षीण करूं
क्षण की फिक्र क्षणिक न करूं
मर्म भांप कर अम्ल न करना ऐसा मेरा स्वभाव नहीं!
अंतर्मन में
कोलाहल भागम-भाग मची
जाने कैसी ये उलझन मन में ठहराव नहीं!
अनुशीर्षक में......-
अनुभूतियों की मोतियां
स्नेह के धा... read more
जा रहे हो
जा रहे हो जाओ पीछे से टोकूंगी नहीं,
मुड़- मुड़कर मत देखना रोकूंगी नही!
जा रहें हो पिया जो मुझे छोड़कर!
कोई अपनी मुझे निशानी तो दो!!
जिसमे प्रति पल मैं तुमको निहारा करूँ!
आंसूओं मे तुमको न ढूँढ़ा करूँ!!
दिल में मेरे तुम सम्मान बन के रहो!
साथ मेरे तुम इतनी वफा तो करो!!
प्यार को मेरे प्यार ही रहने दो!
दर्द दे कर इसे तुम न रूसवा करो!!
साथ 'मन'के रहो ज़िन्दगी की तरह!
जुदा होकर ना तन्हा करो!!-
टूटना शाख से टहनी,
खिले फूलों का मुरझाना!
दर्द कितना हुआ दरख़्त को,
नामुमकिन है समझ पाना!!
जब कोई अपना जुदा होता हैं,
वो पीर शब्दों में कहां बयां होता हैं !
टूट जाता हैं दिल खोकर उस शख़्स को,
जिसके होने से 'मन' ख़ुद के होने का गुमां होता हैं !!-
क्षति क्षीण करे मति
शून्य मन
भाव होते नम
सजल नयन हिय में सिहरन
हवाओं में तपन
रोम- रोम में झुलसन
अस्त-व्यस्त जीवन
अव्यक्त
मन: स्थिति
सम्हलती नहीं परिस्थिति
भुलाए नहीं
सुखद स्मृति
नजर आये भयावह आकृति
धीर
हो जीर्ण
पीर अति गंभीर
धुंधली लकीरें
अकल्पनीय अपठनीय तहरीरें
मन जिसको दे नहीं स्वीकृति-
अपने कर्म पथ से जो नहीं डिगा।
वक्त सदा उस पर होता हैं फिदा।।
अश्रु पीकर जो हंसा है इतिहास वो ही रचा है।
लड़कर हालात से भाग्य अपना ख़ुद लिखा है।।-
लाज़मी है मेरा ख़ुद से बेगानापन,
आइने में भी अक्स उसका दिखायी देता है।
कैसे बताऊं कि कितना करीब है वो मेरे,
उसका ख़्याल भी मुझको सुनाई देता है।-
बिछड़ना
नियति का
फैसला हो सकता है
लेकिन
आंसुओं का गिरना
व्यक्तिगत चुनाव है!
कोई
खुश है क्योंकि
वह जानता है फायदे
उसकी आँखों में उम्मीद है
और कोई
दुखी इस बात से कि
सब मिल भी जाये तो भी
खालीपन बरकार रहेगा.. ताउम्र!-
अक्सर
हम दूसरों की चंद कमियों को
इतना ज्यादा हाइलाइट कर देते है जिससे
उसकी बाकी की सारी खूबियां ढक जाती हैं।
विपरीत इसके
अपनी बहुत सारी
कमियों को स्वयं से ही छुपाएं रहते है
स्वयं को स्वयं से ही अनभिज्ञ बनाएं रहते है!
दृष्टि मात्र दूसरों के परीक्षण हेतु नही,
स्वयं के निरीक्षण हेतु भी होनी चाहिए !-