Anju Gupta   (अnju Gupता 'मन' ✍️)
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Joined 14 December 2019


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Joined 14 December 2019
4 JUN AT 8:47

प्रलय तभी आता है, जब लय टूट जाता है!

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3 JUN AT 22:13

ज्ञात नही कितनी है अवधि।
बनाएं मत रिश्तों में परिधि।।

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12 MAY AT 20:32

• वरदान बनी है माया •

स्वाभिमान
से मानव वंचित
देख परिस्थिति तनिक न चिंतित
बद से
बद्तर संकीर्ण विचार
नैतिक पतन जीवन मूल्यों का ह्रास
पर
पीड़ा पर होता हास्य
मानवता करती मौन विलाप
भौतिकता की
खूब मिलावट दिखती हैं हर रिश्तों में
बेमानी संबंध हुए अपनत्व बंट गया किश्तों में
कृत्य
पुरस्कृत होते नित्य
तिरस्कृत कर आत्मसम्मान
दिन-प्रतिदिन की ऊहापोह में
संभव नही मिलना निदान
बौने हुए
आदर्श सभी
विस्तृत हुआ दिखावा
अभिशाप बना नेमत-ए-ज़ीस्त चमक रही है काया
हल्का हुआ
व्यक्तित्व मनुज का
'मन' भारी हो गयी साया
अंतर्मन कुरूप हुआ वरदान बनी है माया

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9 MAY AT 20:47

मिला कर
मेरी रूह में रूह अपनी
मेरे होने का सबूत माँगते हो आप
अजीब हो ज़नाब परछाई से वजूद माँगते हो आप

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8 MAY AT 17:36

अंतर्मन
की निर्बलता
और आत्मबल की कमी
विवश कर देती है भीड़ का हिस्सा बनने पर
क्यूंकि,
भीड़ की ताकत
विवेक की अपेक्षा क्षणिक उन्माद पर टिकी होती हैं!

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7 MAY AT 23:20

•ज़िम्मेदारी रख•

बात-बात में
तुनक दिखाए
अपनी मन मर्ज़ी मनवाएं
जज़्बात न
समझें जो दिल के
उससे थोड़ी दूरी रख
ख़ुद को
इतना छोटा मत कर
कद की अपने ज़िम्मेदारी रख
आहत कर
आत्मसम्मान
औरों को खुश करना ज़रूरी
इतनी भी
मत मज़बूरी रख
इतनी भी
मत लाचारी रख
ख़ुद से 'मन'
ख़ुद की यारी रख
ख़ुद की ज़िम्मेदारी रख
7/5/25

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6 MAY AT 19:46

जीवन में उनका ही धन्यवाद मत कीजियेगा जिन्होंने आपकी प्रशंसा की हो बल्कि उनका भी हृदय से धन्यवाद कीजियेगा जिन्होंने निंदा कर करके आपको प्रशंसा के लायक बनाया हो।
क्योंकि प्रशंसा से पहले निंदा मिलती हैं जीवन में पर जो निंदा को सहन करके भी आगे बढ़ते रहते है और बेहतर करने की सोच रखतें हैं वहीं लोग आगे चल कर प्रशंसा पाते हैं ।

"निंदा शर्मिंदा नहीं अस्तित्व को ज़िंदा रखती हैं"

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4 MAY AT 21:36

अहमियत शब्द की
अहमियत तब समझ आती है,
जब ख़ुद से ज़्यादा किसी और को अहमियत दी जाती है!

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27 APR AT 22:50

मन अंतर्मन में शामिल हैं,
मन जीवन का हासिल है।
मन कहता है सुन मन मेरे,
तू ही मन का साहिल हैं।

नही ओर छोर जिसका कही,
तू मन के मन में विस्तारित है।
शब्दों में सिमट नही पाये,
तेरा अर्थ बृहद अपरिभाषित है।

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26 APR AT 20:31

जहां तुम्हारें कदम पड़े,
शुभता का वहां वास रहे।
"अभिषेक" नाम चरितार्थ हो,
सबके हृदय मध्य स्थान रहे।

देता हैं दिल हर पल ये दुआ,
खिला रहे यूँ ही फूल मेरा।
कड़ी धूप न लगे इसे,
शीतल छांव मिलें सदा।🙌🙌❤️

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