यक़ीन भी नहीं आता वो यूँ छोड़ जाएँगे
हो सकता है किसी के बहकाने पर आ गए
सच कहूँ तो परिंदे अपने ही थे बेनाम
बस वो ग़ैर की हथेली के दाने पर आ गए-
गरीबों को मोहताज अन्न के दाने हो रहे
घर में चूहे जले ज़माने हो रहे ..
बूढ़ी मां पानी पी-पीकर सोती है
छुटकी बिटिया भूख में
बिलख-बिलख कर रोती है
देखो ठेकेदारों के बड़े मयखाने हो रहेे ..
गरीबों को मोहताज़ अन्न के दाने हो रहे ...
( पूरी कविता कैप्शन में ...)👇
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चूमते हैं उसके डाले दाने....चुगने की जगह
ये कबूतर भी उसकी मोहब्बत में....मरेंगे एक दिन-
कैद भी एक वजह है पंछी की
कहावत है घर की मुर्गी दाल बराबर।
हर पंछी का मन होता है उड़ान का।-
कोई गुनगुनाने निकलते है
कोई साथ पाने निकलते है
प्यार के दाने बिखरे, जो यहां वहां
उन्हे अपना बनाने निकलते है.
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कहीं भूखा इंसा है
तो कहीं खाया गया मांस है,
कहीं दाने-दाने को तरसा इंसा है
तो किसी ने बहाया पूरा थाल है।-
परिंदे खिलाने वाले हाथों का
कभी "मज़हब" देखतें नहीं हैं
जो भी उनको प्यार से "दाना"
खिलाता हैं, वो ख़ुशीसे खाते हैं
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दाने बहुत हैं भूखे मुँह तक न पहुँचता होगा।
जिनका पेट है भरा उनकी कोठरी में घुटता होगा।
दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम,
अपने नाम तक पहुँचने को दाना झाँकता होगा।
अनाज की कोठरी में अजब सन्नाटा है,
चलो देखे वहाँ कोई तो बोलता होगा।
सब यहाँ परेशाँ हैं सब यहाँ बेचैन,
मौत की आहट कोई भूखा ही सुनता होगा।
सूखी नदी में उभर आए हैं रेत 'मोहन',
तपती धूप में मृगतृष्णा प्यास बुझाता होगा।-
मैं बन जाऊ चाय की पत्ती तुम बन जाना शक्कर के दाने,
कोई तो मिलायेगा 🤝हमें चाय पीने के बहाने ....💕😍🙊🙈😎🤷♀️-