P Kumar   (....बुलंद)
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Joined 14 June 2021


Joined 14 June 2021
30 JUN 2024 AT 10:05

चाहिए कुछ मसवरें अजीज़ दोस्तों से
गुजर रहे हैं आजकल हम बहुत उल्फतों से
जुड़ रहे हैं जिंदगी की किताब में किस्से नये-नये से
अब कैसे पलट दे वो पन्नें जहां रखे है फूल गुलाब के

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5 JUN 2024 AT 8:43

अहमियत दी तो खुद को कोहिनूर मानने लगे....
ये कांच के ‌टुकड़े भी क्या खूब वहम पालने लगे....

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11 MAY 2024 AT 14:49

क्या खूब मजबूरी है गमले में लगे पेड़ों की....
हरा भी रहना है और बढ़ना भी नहीं.....

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17 JAN 2024 AT 7:33

बिछड़ कर तेरी बाहों से कही खो गए हम
याद तेरी आई तो महफ़िलों में भी तन्हा हो गए हम
आंखों में कुछ गिरने का बहाना करके
आंखों में कुछ गिरने का बहाना करके
फूट-फूट कर रो गए हम
आई एक रात ऐसी भी
कि ख्वाब तेरे देखते देखते उम्रभर के लिए सो गए हम

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5 DEC 2023 AT 19:04

टूट कर चाहा था जिसे वहीं शख्स तोड़ गया है मुझे
करीब लाकर खुद के...खुद से बहुत दूर धकेला है मुझे
इंतजार, तसल्ली ये सब महज लफ़्ज़ों के फेर है
वक्त का बहाना देकर बेवक्त तन्हा छोड़ा गया है मुझे

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4 DEC 2023 AT 17:05

दिक्कतें तो बहुत होती होगी उसे
इतनी ठंड में दो चेहरे धुलने में

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3 DEC 2023 AT 7:25

किसी को छोड़ कर
भले ही चले जाना,
लेकिन किसी के मन में कोई
ऐसा प्रश्न छोड़ कर न जाना
जिसका उत्तर उसे सिर्फ़ तुम दे सकते थे।

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27 NOV 2023 AT 9:34

नहाना तुम इस नहान कुछ इस तरह से
धुल जाये सभी नामोनिशान कुछ इस तरह से
हम तो नहीं है अब, ना अब बाकी कोई यादें ही रहे
तुम लगाना गंगा में डुबकी कुछ इस तरह से

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17 NOV 2023 AT 19:44

जिस शख्स को दिल का अपने हमने खुदा किया
मजबूरियों की देकर तसल्ली वहीं जुदा हुआ
रूख अपना उसने बेवक्त कुछ यूं हमसे फेर लिया
लगता है जैसे मैं ही उसके पैर की जंजीर सा हुआ

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13 NOV 2023 AT 16:14

क्या गुजरी किसी पर ये जमाना क्या जाने
तन्हा रहने वाला ही तन्हाई का सितम जाने
रो-रोकर पुकारा हो जिसने महबूब को अपने
दर्द-ए-मोहब्बत उससे ज्यादा और कौन ही जाने

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