अक्षर से अक्षर बातें करते हैं।
अक्सर वो कभी रोते कभी हंसते हैं।
अक्षर से जैसे शब्द बना,
वैसे ही दंपति से परिवार बना।
अक्षरों से मिलकर वाक्य बना।
वैसे ही अपनों ने कुटुम्ब बनाया।
अक्षरों से मिलकर एक किताब बनीं।
जनजन के मिलने से समाज बना।
एक दूसरे से सुख दुःख की बातें करते हैं।
यह भी कभी रोते हैं, कभी हंसते हैं।
हम भी अक्सर, तुम भी अक्षर,बतियाते है।-
जय श्री कृष्ण।
सुप्रभातम।
आज का दिन हम सभी के लिए मंगलमय हो।
मनोहर लाल द्विवेदी
योग शिक्षक एवम् गीता प्रचारक।
योग करें। रोज़ करे।
गीता पढ़े, पढ़ाए और जीवन में लाए।
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जब कभी
विरह वेदना से भर उठती हूँ
पुकारती हूँ अपने कृष्ण को
रोती हूँ ज़ार-ज़ार
तब मुस्कुराता है मेरा कृष्ण
पुष्प बन बिखेरता है अपनी सुरभि,
हवा की सीलन बन
स्पर्श करता है मुझे
दिलाता है अहसास अपनी उपस्थिति का
कहता है यही
मैं तुमसे दूर ही कब था प्रिये ।-
परहित बस जिन्ह के मन माही। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कुछ नाही।
" जिनके मन में सदैव दूसरे का हित करने की अभिलाषा रहती है।
अथवा जो सदा दूसरों की सहायता करने में लगे रहते हैं,
उनके लिए संपूर्ण जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।।-
नए कार्य की शुरूआत अच्छी हो,
हर मनोकामना सच्ची हो,
गणेश जी का मन में वास रहे,
इस गणेश चतुर्थी आप अपनों के पास रहे।
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गणेश चतुर्थी पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
वक्र तुंड महाकाय, सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्न कुरू में देव, सर्व कार्येशु सर्वदा।।-
ज्यादा सोचने वाला इंसान एक दिन स्वयं को ही खत्म कर लेता है।
मस्त रहे। स्वस्थ रहे।
योग करें। गीता पढ़े।
स्वाध्याय ही मस्तिष्क का भोजन है।-
जय श्री कृष्ण
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी।
है नाथ नारायण वासुदेव।।-