मेरी क़लम हक़ीक़त बयां करती है
जब मैं लिखता हूं ना जाने कितने दर्दों से गुज़रता हूं-
कुछ सोचकर ही ख़ुदा ने जुदा की होंगी हमारी राहें,,
वो नहीं चाहता है तुझे हमसफ़र बना हम दर्दों से ताउम्र कराहें।।-
"क्या याद है तुमको"
मेरा हाथ थाम कर
जो वादा किया था तुमने
क्या याद है तुमको..?
मुझे अपने गले से लगा कर
मुझे अपना कहा था तुमने
क्या याद है तुमको..?
उस शाम इस्तिहां को सजा फूलों से
घुंटनो पर बैठ इजहार किया था तुमने
क्या याद है तुमको..?
इक शाम बारिश से भीगे मेरे बदन को
अपने रुमाल से पोछा था तुमने
क्या याद है तुमको..?
मेरे गालों को हाथों में भर कर
मेरे होठों को चूमा था तुमने
क्या याद है तुमको..?
उस रात इक ही चादर में जाना
जो मेरे दर्दों को तोला था तुमने
क्या याद है तुमको..?
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जाने क्यों अपने दर्दों का हिसाब लिये फिरता हूँ
मै क्या हूँ और क्या ख्वाब लिये फिरता हूँ
वफ़ा का सदी-सदियों तक कोई वास्ता नही है मुझसे
फ़िर भी क्यों झूठी हसरतों का अम्बार लिए फिरता हूँ।-
दर्दों के आलम कुछ इस कदर छाये हैं,,,,
जो भी अपने थे आज लगते पराये हैं....!!
भिड़ मे होते हुये भी अकेली हूँ कहीं,,,,
जो पहले थी अब वो मैं रही नहीं....!!-
तेर दिए दर्दों की दवाई कौन देगा,
तेरे दिए जख्मों की गवाही कौन देगा...
देकर मर्ज-ए-इश्क रहते हो गैरों संग,
भला मुझको ऐसी बेवफाई कौन देगा...!!-
सिर्फ़ अपने ही दर्दों को बड़ा कहने वाले।
दुनिया में ‘शाक’ और भी हैं लोग रहने वाले।-
दर्दों को इस क़दर बयान करूं
मैं ख़ामोश रहूं
तेरे पास जवाब ना हो,
जज़्बात कुछ ऐसे कहूं
आंखों में समंदर गेहरा हो
समझने को तेरे पास
एहसास ना हो।
खुशी हज़ारों छुपा
बस यूं मुस्कुराऊं
सांसों में ठहराव तेरे भी हो
पर दिल टूटा ना हो।
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इश्क़ के सताए हुए लोग हैं।
साहब दर्दो का सिलसिला लिखते है।
नासमझी में दिल लगा बैठे।
अब हालात ए दिल कागज पर बायां करते हैं-
लेके शगुन दर्दों का साथ आती है,
जैसे बिना मांगे ही खैरात आती है,
वो मेरी छत पे आके नाचती नचारों की तरह,
कुछ ऐसे तेरी यादों की बारात आती है|
😌😌
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