शशांक पाण्डेय   (शशांक ‘शाक’ पाण्डेय)
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Unbearable Pains always remain Unspoken
Joined 3 June 2019


Unbearable Pains always remain Unspoken
Joined 3 June 2019

इस कलयुग में…
ना किसी पार्वती को,
महादेव का वैराग्य पसंद आयेगा।
ना किसी सीता को,
राम का वनवास पसंद आयेगा।
और…
ना ही किसी राधा को,
कृष्ण का साँवलापन पसंद आयेगा।

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कुछ ना बचा खराब मुझ में
बस एक मेरे अलावा…
मैंने सब बदल डाला मुझ में
बस एक मेरे अलावा।

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हमने सादगी छोड़ी, भरोसा छोड़ा,
छोड़ी मोहब्बत, शहर छोड़ा तेरा…

हमने क्या कुछ छोड़ा नई?

बस एक तेरा ग़म था,
जो चाह कर भी हमसे छूटा नई!

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बड़ी बेअदबी से की उनसे मिलने की रस्म अदायगी हमने।
बड़े बेआबरू हो जिनसे किया गया था इंतज़ार हमारा।

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इस पीढ़ी के पर्याप्त पुरुषों ने अपना प्रेम खो दिया है,
कि अगली पीढ़ी की स्त्रियों को,

“पापा नहीं मानेंगे”

वाले बहाने की इजाज़त नहीं मिलेगी।
और उन्हें किसी नए बहाने का ईजाद करना होगा…
प्रेम छोड़ कर दौलत का दामन थामने के लिए।

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अब के यूँ नहीं, के तुझसे हसीन कोई भी नहीं।
मसला-ए-ज़िंदगी बस इतना है, ना तुझसे जुड़े रहे…
और तुझसे जुदा भी नहीं।

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तेरे इश्क़ ने हमको ऐसे मारा…
जैसे तू पक्का मुसलमाँ और हम सच्चे काफ़िर।

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नाशुक्री सी इस दुनिया में एहसास लाए हो...
बड़े नादान हो दोस्त!!!
पत्थर से लगाने को दिल लाए हो।

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हर कोई मुक़द्दर चढ़ बैठा है, हर कोई सिकंदर बन बैठा है।
हर कोई तमन्ना रखे जीने की, हर कोई मन की करना चाहे।
हर कोई दबाना चाहे सबको, हर कोई ना किसी से दबना चाहे।
हर कोई विभाजित हो बैठा, हर कोई किसी से जुड़ बैठा है।
हर कोई भेदता कई तीर यहाँ, हर कोई चलाये कई तीर बैठा है।
हर कोई चाहे तानाशाही अपनी, हर कोई विरोध में अड़ बैठा है।
हर कोई मुक़द्दर चढ़ बैठा है, हर कोई सिकंदर बन बैठा है।

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पापा की शक्ति, बच्चों का सुकून माँ से है।
ईश्वर सुनता सभी दुआएँ माँ से है।
मकान हुआ घर माँ से है।

हैं इतने कर्ज़ इस माँ के हम पर…
कभी कभी लगता है गलत ये औलाद इस माँ के है।

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