Dear mine Happy anniversary ❤️❤️
"तेरा मिलना"
★★★★★★★★★
तेरा मिलना ज़िंदगी के बिखरे पृष्ठों का किताब बन जाना,
बिखरी यायावर रौशनियों का आफ़ताब बन जाना।
विक्षिप्त शरीर के चीथड़ों का सुंदर जीवन बन जाना।
अस्त-व्यस्त सुरों का एक दिलकश गीत बन जाना।
बिखरे फूलों का जैसे कस्तूरी बन जाना,
लंबी स्याह शाम के बाद एक प्यारी सुबह का आना।
ठंडे ज़िस्म में जैसे गर्म सांसों का घुल जाना,
तेरा मिलना ऐसे जैसे शिव का मिल जाना।
इस मृत्युलोक के भय से निर्भय हो जाना,
छोड़ इस पोशाक का मोह आत्मा का परमात्मा हो जाना।
©®सुधा जोशी पाण्डेय"रजनी"-
हम पहाड़ी पूरी दुनिया से न्यारा।
मडुवॉक रॉट लासणक नूण हम खानु,
... read more
देवभूमि उत्तराखण्ड"
★★★★★★★★★★
म्योर रंगीलो उत्तराखण्ड....
नीको नीको उत्तराखण्ड.…...
ठंडी-ठंडी हाव छ जाँ,,
ठंडो छन पाणी....
गोलज्यूक न्याय छ जाँ,,
राजै की छन बाणी...//
जाँ ईजा का कोखिमा,,
वीर च्याल हुनि.....
म्योर नीको रंगीलो उत्तराखण्ड,,
यौ छ देवूं की भूमि......//
बदरी-केदारनाथा सुणौनी,,
शिवज्यू की गाथा....
लिण चानूँ मि जनम बार-बारा,,
म्योर छबिलो उत्तराखण्ड मा.....//
म्योर रंगीलो उत्तराखण्ड...
म्योर छबिलो उत्तराखण्ड...
पांडुखोली-दूनागिरी औ मंसूरी,,
उत्तरकाशी-नैनीताल औ मुनस्यारी....
जै- जै देवूं की भूमि,,
तेरी महिमा छ न्यारी.....//
स्यारा हरी- भरी याँ,,
हूं छ खेति अपारा....
घर-घर बटि निकलि याँ,,
देबि गंगा की धारा....//
बुरुंश खिली जंगोवा,,
प्योली प्यारी -प्यारी.....
डाना-खाना घुघुति -कफुवा कि,,
बोलि न्यारी- न्यारी....//
म्योर रंगीलो उत्तराखण्ड....
म्योर छबिलो उत्तराखण्ड...
■■■■■■◆◆◆◆◆◆■■■
सुधा जोशी पाण्डेय"पहाड़ी च्येली"-
"फ़क़त ख़ुद के प्रति ही जवाबदेह होता है
"इसमें राजा भी हम और प्रजा भी हम,
ख़ुशी भी हमारी और हमारा ही ग़म।
हम ही सफ़र और मंज़िल भी हम,
हम ही बंजारे और रहबर भी हम।
-
एक हिस्सा ज़िन्दगी थी माँ के हिस्से मिरी,
एक हिस्सा ज़िन्दगी आई हिस्से मिरे,
एक हिस्सा जिंदगी आई मिरी हिस्से तिरे,
जब मिरी ज़ीस्त का पन्ना जुड़ गया तिरी ज़ीस्त के पन्ने से,
देख ना शिव ने हमारी अधूरी क़िताब पूरी कर दी,
जो मुद्दतों से तलाश रही थी एक-दूजे को,
तलाश रही थी ज़मी पर- फ़लक पर,
और ना जाने कहाँ-कहाँ पर.....
फिर तुम्हारा मिलना ऐसा हुआ जैसे बरसों की प्यासी ज़मी को बादल मिलना,
जैसे पत्थरों में फूलों का खिलना....
यूँ कहूँ तो जीने की वज़ह मिल गयी मुझे,
शायद तुम मेरे किन्ही सत्कर्मों का परिणाम हो,
छाया भी तुम्ही हो और तुम्ही घाम हो।
यूँ कहूँ तो तुम मेरे जीवन की अमूल्य निधि हो।-
स्वागत है एक लंबी स्याह शब के बाद आया है नववर्ष,
जीवन की इक नूतन उम्मीद लाया है नववर्ष।
छोड़ वो सूखा पतझड़ बहार नई लाया है नववर्ष,
विषाद सबके दूर कर देने आया है नवहर्ष ।
उत्तम स्वास्थ्य सबका लेकर आया है नववर्ष,
गीत मानवता का गाने आया है नववर्ष।
-
ज़िन्दगी का शज़र सूख जाता जब-जब तुम मुझसे दूर होते हो,
उदासियों के बादल मेरे चेहरे को घेर लेते हैं जब-जब तुम मुझसे दूर होते हो।
मैं अपने प्यार की सीमा तो नहीं बता सकती तुम्हें मेरी जान,
पर सच कहूँ मन बिल्कुल भी नहीं लगता जब-जब तुम मुझसे दूर होते हो।
मन एक अजीब खालीपने से भर जाता है जब-जब तुम मुझसे दूर होते हो,
आँखे अनायास ही बहने लगती हैं जब-जब तुम मुझसे दूर होते हो।-
" क्योंकि वो ज़िद्दी स्त्री है"
***********************
जिन स्त्रियों ने अपनी शर्तों पर जीवन जीना जिया या जीना चाहा,
कहलाई वो ज़िद्दी स्त्रियाँ,
ज़िद्दी ही नहीं.....
चंचल,दुष्चरित्र,बदज़ुबान.....
क्योंकि घर की पुरुष मानसिकता में जकड़ी उनकी सासों को,
नहीं भाया उनका अल्हड़पन,
उनकी मस्तानी चाल, उनका बेबाक़ अंदाज़, उनकी सोच का खुलापन,
क्योंकि वो नहीं पड़ी रहना चाहती माहवारी के दिनों में कमरे के एक अंधेरे कोने में,
वो नहीं डालती अपनी ब्रा-पेंटी को कपड़ों के नीचे छिपाकर,
वो नहीं करती फ़ालतू का दिखावा, ना ही मानती है वो पुरुषवादी रुढ़िवादी सोच को,
वो ज़िद्दी है क्योंकि वो
अपने अस्तित्व की मालिक स्वयं बनना चाहती है,
वो लीक की दीवार को तोड़ रही है,
जो पोषित है सदियों से डरपोक औरतों द्वारा,
अक़्सर ही जब वो बोलती है अपने लिए,
तो उस पर भूत के,चुड़ैलों के साये घोषित कर दिए जाते हैं,
उसे ज़बरन ही तथाकथित पीर, औलियों, स्वांगि लोभी मैय्याओं,या धर्म के ठेकेदारों के हवाले कर दिया जाता है,
और फिर ख़त्म होती है पागलपन,शोषण की हदें,
उसके विश्वास को चकनाचूर करने की हदें,
पर वो डिगेगी नहीं,और करेगी अंत तक अपने लिए संघर्ष,
और मटियामेट कर देगी उन पुरुषवादी नियमों को, व्यवस्थाओं को जो बनी हैं युगों से फ़क़त स्त्री के लिए....
©सुधा जोशी पाण्डेय "रजनी"
चोरगलिया (उत्तराखण्ड)-
हमें लगता था शायद हम भी एक दुनिया बसाएंगे एक दिन,
पर यहाँ तो पहले से ही एक दुनिया है।-
माना कि नाकाम हूँ मैं, पर असफ़ल नहीं,
चुप हूँ अभी बेशक़ मगर बेवकूफ़ बेअकल नहीं।
मेरे हिस्से का ज़वाब सदा मेरा रहबर देता है,
मेरे अश्क़ों को वो ही अपनी आँखों में लेता है।
माना समझती है दुनिया मुझे फ़क़त एक पागल,
पर देख लेना लिख रही हूँ मै ही आने वाला कल।
देख लेना तुम कल का सवेरा मेरा होगा,
जिसको समझे हो जागीर अपनी वो डेरा मेरा होगा।
हार मान लूँ ये फ़ितरत नहीं अपनी,
हर इमारत यहाँ मेरी ख़ाक पर ही है बनी।
माना अभी पैदल हूँ पर अपाहिज़ नहीं,
थककर बैठ जाऊँ ये मुझे गवारा हरगिज़ नहीं।
-