QUOTES ON #दरीचा

#दरीचा quotes

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6 MAR 2019 AT 17:10

यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है

- दुष्यंत कुमार


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जिसका अर्थ होता है - खिड़की, window

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8 DEC 2021 AT 20:27

मन का दरिचा खुला है,
फूलों सा खिला खिला है
मिलो ना तुम भी वहीं पर,
सब मिले हैं पर....
ये मन तुमसे कहां मिला है??

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15 JUN 2018 AT 23:10


बड़ी हसरत से ताकते हैं, लोग तेरे दरीचे को,
चाँद निकल आया, तुम भी आओ तो ईद हो..

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5 APR 2021 AT 16:22

दरीचा/دریچہ
window/खिड़की

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14 JAN 2019 AT 22:09

गुमसुम दो आँखें, दरीचों से झांकती है रात भर
आसमां का चाँद छोड़, दूजा तलाशती है रात भर

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13 JUL 2017 AT 22:09

ख़ामोश लोगों का इक शहर देखा है
भीड़ में भी सुनसान मंज़र देखा है

हैवान का डर नहीं लगता अब मुझे
कुछ रोज़ मैंने इंसानी कहर देखा है

बेइंतहा नफ़रत, नापाक इरादे लिए
रूह तक फैलता इक जहर देखा है

महज़ कौम के नाम गले काट दे जो
बाज़ार में मुफ़्त है, वो खंज़र देखा है

जिसे दरीचों के लुत्फ़ का शौक है
उस शख्श को फेंकते पत्थर देखा है

बहोत तड़पती हैं राख होके रूहें
मैंने लाशों के गले लग कर देखा है

मेरा ज़मीर अब चिल्ला के रोता है
हां मैंने झांक के अपने अंदर देखा है।।

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19 JUL 2020 AT 17:53

वो जो दरीचे पर परिंदा आकर बैठा
एक खत उसका मिरे नाम छोड़ गया

आसमान का मिज़ाज देख कर भी वो
मिरे दरीचे पर एक फूलदान छोड़ गया

अब तो अब्र भी नाराज हो गया मुझसे
बारिश में भी एक रेगिस्तान छोड़ गया

जिनकी दीवानी हुआ करती थी रौनकें
वो ही हमारा जहां सुनसान छोड़ गया

कि अब के बरस तो सावन भी ना आया
बरसा हर तरफ मेरा ही मकान छोड़ गया

वो जो हर पल साथ निभाता था परिंदा
कई दिनों से मिरा रोशनदान छोड़ गया

अब के जो बिछड़े तो फिर ना मिलेंगे
मेरा भेजा हुआ हर सामान छोड़ गया।।



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8 NOV 2020 AT 1:52

वो दरीचा इमारत से झाँकता हुआ सा,
गर्द हवा दिन रात फाँकता हुआ सा,
याद करता है अपने दादा की कहानी,
था घर वो छोटा पर ज़िन्दगी थी सुहानी,
परिंदों की जोड़ी से आबाद थे वो,
कुनबे के रंगों से पुर-शाद थे वो,
अब हवा के ज़हर से परिंदे गुम हैं,
है कहने को घर पर बाशिंदे गुम हैं,
अब दिखता नहीं वो नदी का किनारा,
इमारत, इमारत बस इमारत का नज़ारा,
सुबह रौशनी भी ठीक से आती नहीं है,
रात चाँदनी भी रस्ता दिखाती नहीं है,
बारिशों की रिम-झिम है ख़्वाबों की बातें,
दरख़्तों के पत्ते सराबों की बातें,
ख़ुदा से लगाता गुहार वो अक़्सर,
लौटा दो वो दुनिया भले छोटा सा हो घर।

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7 NOV 2020 AT 19:42

मेरे घर का दरीचा खुलता है उसके घर के सामने

आंखें बंद हो या हो खुली ,सामने नजर वो ही आता है ...!

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