Rishabh   (ऋषि 'फ़क़त')
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Joined 24 May 2020


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3 JUN 2023 AT 21:40

दिया जो जल के बुझा है तो कोई बात नहीं,
जो होना था वो हुआ है तो कोई बात नहीं।

यही बहुत है कि तुम हाल पूछने आई,
हमारा हाल बुरा है तो कोई बात नहीं।

रक़ीब की ज़रा सी चोट गहरी बात है और,
जो मेरा ज़ख़्म हरा है तो कोई बात नहीं।

तेरे दुखों के तवे पे सिकी सुख़न ने कहा,
कि दुख जो तुमसे मिला है तो कोई बात नहीं।

न जाने कितनी ही बातें थीं जब वो दूर था और,
वो आज पास खड़ा है तो कोई बात नहीं।
-ऋषि 'फ़क़त'

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7 MAY 2023 AT 0:44

भले जीना पड़े मजबूर हो के,
जिऊँगा मैं तेरा सिन्दूर हो के।

तुम्हारे ख़्वाब शीशे की तरह हैं,
बहुत चुभते हैं चकनाचूर हो के।

मैं उसका रस्ता हूँ, मंज़िल नहीं हूँ,
मुझे भूलेगा वो मशहूर हो के।

कहानी बनती उसके पास रह कर,
ग़ज़ल बनती है उससे दूर हो के।

तेरे जाने का ग़म क्या जा सकेगा,
भरेगा ज़ख़्म क्या नासूर हो के।

-ऋषि 'फ़क़त'

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6 MAY 2023 AT 16:38

जाने कैसे, लोगों को लत लगती है,
मुझको इक आदत भी ज़हमत लगती है।

कितने आँसू हम बहाएँ यादों में,
फ़ासलों की कितनी कीमत लगती है।

पैदा होने वाले दिन से मरने तक,
आदमी को रोज़ औरत लगती है।

नौकरी पाना ही बस मुश्किल नहीं,
उसको करने में भी क़ुव्वत लगती है।

डूबने की चाह कश्ती की थी और,
लोगों को लहरों की हरकत लगती है।

-ऋषि 'फ़क़त'

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27 MAR 2023 AT 22:49

मैं बाहर आ चुका हूँ दायरे से,
मैं अब देखूँगा दुनिया कायदे से।

तेरा इग्नोर करना मारता है,
मुझे ठुकरा दे आकर सामने से।

जिन्हें मैं ख़ून वाले जानता था,
वो रिश्ते बस जुड़े थे फ़ायदे से।

बहोगी कब तलक तन्हा नदी सी,
इलाहाबाद आओ आगरे से।

मेरे डर ने था मारा शौक़ मेरा,
मुझे प्यारे थे घुँघरू नाचने से।

नहीं भाता मुझे होटल का खाना,
चली आओ न जल्दी मायके से।
- ऋषि 'फ़क़त'













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7 MAR 2023 AT 1:11

मुहब्बत में ज़रा तकरार भी है,
जहाँ है गुल वहाँ पे ख़ार भी है।

कहानी लिख रहा हूँ मैं कि जिसमें,
तेरे काजल का इक किरदार भी है।

जिएँ क्यूँ हम भला आसान लम्हे,
हमारी ज़ीस्त का मेआर भी है।

मैं हूँ इस आस में मसरूफ़ छे दिन,
चलो वीकेंड में इतवार भी है।

'फ़क़त' रूमानियत ही मत समझना,
मेरी चिट्ठी मेरी ललकार भी है।

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5 MAR 2023 AT 10:34

वफ़ा के बिन बिखर जाऊँगा मैं भी,
गया जो मोतबर जाऊँगा मैं भी।

ख़ुदा का नाम लिख कर मुझको फेंको
समंदर में उभर जाऊँगा मैं भी।

अगर ख़लते हैं तुमको जाने वाले,
तो फिर तुमको अख़र जाऊँगा मैं भी।

कटेंगे वन तो पंछी जान देंगे,
बिना पेड़ों के मर जाऊँगा मैं भी।

रह-ए-अंजाम पे तन्हा नहीं तुम,
कयामत की डगर जाऊँगा मैं भी।

अगर अब तुमने मेरा साथ छोड़ा,
तो वादे से मुकर जाऊँगा मैं भी।

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25 FEB 2023 AT 10:16

दूरियाँ दो किनारों सी थी क्या,
दरमियाँ दोनों के नदी थी क्या।

राख़ और धुंध की तमन्ना में,
कोई सिगरेट जल रही थी क्या।

जिसने ओढ़ा है लम्स तेरा उसे,
लग रहा सर्द जनवरी थी क्या।

शब उसे देख सुब्ह सब ने कहा,
कल अमावस में चाँदनी थी क्या।

क्यों मुझे मौत जीनी पड़ रही है,
इक वही लड़की ज़िन्दगी थी क्या।

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19 FEB 2023 AT 10:19

आँसू तेरी यादों में बहाने के तजुर्बे,
हम कैसे बताएँ न बताने के तजुर्बे।

क्यूँ चार सूँ फ़ैला है तेरे जाने का मंज़र,
क्यूँ मुझसे खफ़ा हैं तेरे आने के तजुर्बे।

मैं छोड़ चुका प्यार को नाकामी की हद पे,
मुझको है बहुत नाव डुबाने के तजुर्बे।

लाज़िम है उसे चैन की नींदें हों मयस्सर,
उसको है कई नींद चुराने के तजुर्बे।

अब जिनके तख़य्युल में तेरा साथ नहीं है,
वो ले रहे बेकार ज़माने के तजुर्बे।
ऋषि 'फ़क़त'


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18 FEB 2023 AT 22:15

अगर नींद में है सितारा तुम्हारा,
तो जारी रहेगा ख़सारा तुम्हारा।

उड़ान-ए-तमन्ना निकालो न दिल से,
है डोरी तुम्हारी गुबारा तुम्हारा।

मैं करता रहा कोशिशें जोड़ने की,
वो करता रहा बस हमारा तुम्हारा।

नहीं मर्ज़-ए-दिल की दवा और कोई,
इसे चाहिए सिर्फ़ चारा तुम्हारा।

हुआ इश्क जब से लिया नाम दिल ने,
तुम्हारा तुम्हारा तुम्हारा तुम्हारा।
-ऋषि 'फ़क़त'

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13 FEB 2023 AT 23:26

अजनबी धुन में रची अपनी ही सरगम सी थी,
ज़िन्दगी डोर थी और डोर वो रेशम सी थी।

मुझको ये ग़म नहीं के मुझको ख़ुशी मिल न सकी,
पर तअ'ज्जुब तो है क्यूँ मेरी ख़ुशी ग़म सी थी।

उसका इक दिल ही तो बस मेरा न हो पाया था,
हाँ वो मेरी थी मगर पूरे से कुछ कम सी थी।

उसके पाज़ेब की झंकार सा रोना उसका,
उसके हर आँसू की आवाज़ तो छमछम सी थी।

इक कमी ज़्यादा थी हम में सो हमें लगता था,
वो कमी हम में नहीं वो कमी तो हम सी थी।
-ऋषि 'फ़क़त'

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