Rishabh   (ऋषि 'फ़क़त')
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Joined 24 May 2020


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16 AUG AT 16:17

तुम्हारे ग़म से किनारा करने का मुझमें अब हौसला नहीं है,
मुझे बचालो अगरचे मुझमें कहीं भी कुछ भी बचा नहीं है।

तुम्हें अगर है कोई शिकायत तो बोल दो ना यूँ चुप रहो ना,
हमें है शिकवा तुम्हारी चुप से वगरना कोई गिला नहीं है।

अजीब है के तुम्हारे दिल में जगह नहीं है हमारी ख़ातिर,
कमाल है के ख़ुदा की दुनिया में अब कहीं भी ख़ुदा नहीं है।

हमारी ज़िद्द है तुम्हारा होना जो जान जाए तो जान जाए,
हमें पता है तुम्हारी निस्बत है ख़ुदकुशी हादसा नहीं है।

मैं उसके होने न होने के दरमियाँ कहीं पे भटक रहा हूँ,
कोई मुझे कम से कम बता दे वुजूद उसका है या नहीं है।

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23 JUL AT 17:41

मैं चाहता हूँ राब्ता मन की तरफ़ से हो,
तुमको भले पसंद बदन की तरफ़ से हो।

काँटे अगर हैं बाग़ में ख़ुशबू की ओर से,
मुमकिन है फिर गुलाब चुभन की तरफ़ से हो।

आख़िर चुराएगा कोई बहरूपिया तुम्हें,
पहला फ़रेब चाहे हिरन की तरफ़ से हो।

आसान चापलूसी का रस्ता है पर ज़मीर,
कहता है हमको हक़ अदा फ़न की तरफ़ से हो।

मय की तरफ़ कभी नहीं जाता जो पहले से,
नश्शे में धुत सरापा सुख़न की तरफ़ से हो।
-ऋषि 'फ़क़त'

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4 JUN AT 8:51

वस्ल की गर्मी न थी वाबस्तगी में,
इसलिए हूँ हिज्र के ज्वालामुखी में।

कैसे होगी मुझको दोबारा मुहब्बत,
कैसे आएगी कमी उसकी कमी में।

जाते-जाते तो बताती जा मुझे ये,
ज़िन्दगी तू क्यूँ न थी इस ज़िन्दगी में।

मिल गई हर शय जहाँ की आपको पर,
आप ख़ुद को मिल न पाए आप ही में।

आग बाकी है तो कर लो शौक पूरे,
आग लग जानी है इक दिन तिश्नगी में।
-ऋषि 'फ़कत'

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20 MAY AT 0:15

जिसने जाना नहीं है तरीका मेरा,
बस उसी ने किया है भरोसा मेरा।

रब्त की ख़ुदकुशी का ज़री'आ थे हम,
था दुपट्टा तेरा और पंखा मेरा।

आरज़ू के दिये तू अकेला नहीं,
तू बुझेगा, उठेगा जनाज़ा मेरा।

एक झुरमुट में रहने को मजबूर हूँ,
जिस्म फ़िलहाल है आशियाना मेरा।

क्यों 'फ़क़त' तीरगी ने है देखा मुझे,
क्यों ख़मोशी ही करती है चर्चा मेरा।

-ऋषि 'फ़क़त'

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11 MAY AT 9:24

निकला हूँ उसके इश्क़ से आगे की खोज में,
इस आशिक़ी के बाद के धोखे की खोज में।

मैं तुझसे पहले खोए हुए दिल को खोज लूँ,
मैं रहमतों से पहले हूँ कासे की खोज में।

उस क़ौम ने किया है तरक़्क़ी से खुद को दूर,
जिसने दिया है वोट बताशे की खोज में।

यूँ ही हमारी साँस को बे-सम्त मत कहो,
ये चल रही है आख़िरी लम्हे की खोज में।

अक्सर नहीं मिलेगा वहाँ मस'अले का हल,
रहते जहाँ हैं लोग तमाशे की खोज में।

-ऋषि 'फ़क़त'

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2 NOV 2024 AT 17:50

सेज पर शमशान की आबिर अकेला रह गया,
भीड़ का पर्याय भी आख़िर अकेला रह गया।

तालियाँ जब बे-सलीकों की तरफ बढ़ने लगीं,
बे-हुनर बढ़ने लगे माहिर अकेला रह गया।

आपको प्रेमी से ज़्यादा थी पुजारी की तलब,
इसलिए ये आपका काफ़िर अकेला रह गया।

दुख नहीं है के जवानी फिर से महफ़िल पा गयी,
दुख मगर है के बुढापा फिर अकेला रह गया।

क्या बताएँ बे-ख़ता किरदार सारे मर गये,
और कहें कैसे 'फ़क़त' शातिर अकेला रह गया।

-ऋषि 'फ़क़त'

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24 OCT 2024 AT 20:50

लाखों जतन के बाद भी अच्छी नहीं बनी,
दुन्या हमारे ख़्वाब के जैसी नहीं बनी।

माना मैं तेरे प्यार में जोगी नहीं बना,
तू भी तो मेरे वास्ते देवी नहीं बनी।

बरसों से जायदाद में हिस्सा नहीं मिला,
बरसों से फिर भी बेटी तो बाग़ी नहीं बनी।

सब लोग कह रहे थे कि मेहनत से बनती है,
हैरत है मेरी ज़िन्दगी फिर भी नहीं बनी।

वो साथ था तो बन रहे थे मेरे दो जहाँ,
वो क्या गया दो जून की रोटी नहीं बनी।
-ऋषि 'फ़क़त'



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12 OCT 2024 AT 9:28

बहुत सा धन है सीने में हमारे,
कि अपनापन है सीने में हमारे।

सहूलत मिल रही रोने में हमको,
कोई बिरहन है सीने में हमारे।

उधर पायल ख़रीदी भर है उसने,
इधर छन-छन है सीने में हमारे।

नए अंदाज़ से हम हँस रहे हैं,
नई टेंशन है सीने में हमारे।

भला कैसे कोई छीनेगा उसको,
जो क़ानूनन है सीने में हमारे।

बिना सोचे भी तुमको सोचते हैं,
ये भी इक फ़न है सीने में हमारे।

जहाँ पे आती है सुख-दुख की गाड़ी,
वो स्टेशन है सीने में हमारे।
-ऋषि 'फ़क़त'

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7 OCT 2024 AT 8:14

जिसके बग़ैर ज़ीस्त से रंजिश है शायरी,
उसके बग़ैर जीने की कोशिश है शायरी।

उसने दुखों के बोझ से सल्फास खा लिया,
मेरे लिए दुखों की नवाज़िश है शायरी।

मन की तपन से जो बने वो अब्र हैं ख़याल,
उनसे जो हो रही है वो बारिश है शायरी।

मुझको रदीफ़ क़ाफ़िया अब कर रहे हैं क़ैद,
मेरे ख़िलाफ़ कर रही साज़िश है शायरी।

फाँसी से पहले आख़िरी ख़्वाहिश की बात पर,
मैने कहा कि आख़िरी ख़्वाहिश है शायरी।
-ऋषि 'फ़क़त'


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14 SEP 2024 AT 22:27

इक अजनबी ख़याल के जानिब चला गया,
मन हिज्र से विसाल के जानिब चला गया।

आज़ादगी भी कैद है ये जानने के बाद,
ख़ुद ही शिकार जाल के जानिब चला गया।

जिस पल लगा कि सीना धड़कने लगेगा अब,
ये जिस्म इंतिक़ाल के जानिब चला गया।

जब से शिकस्त मिलने लगी पूरी चाल से,
घोड़ा अढ़ाई चाल के जानिब चला गया।

ये सुनते ही कि जाता है प्यासा कुँए के पास,
आँसू मेरा रुमाल के जानिब चला गया।
ऋषि 'फ़क़त'

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