जब-जब दरबार में तेरे शीश झुकाती हूंँ
खुद में एक बेहतरीन परिवर्तन पाती हूंँ !!-
जब एक माँ
भूखी होगी माँ के
ही दरबार में ...
तो माँ दुर्गा क्या
खुश होंगी ?
इंसा तेरे
संसार में ...-
दफ़्न होने दे मेरे रूह को सन्नाटे की कब्र में,
की मेरा जिस्म मेरे शोर को बाहर निकलने नही देता,
कैद होने दे अब मेरी ताकत को खुदा के दरबार में,
की अब मेरा मन और लड़ने की गवाही नही देता!-
हम उनके ही दरबार में फ़रियादी थे,
कल तलक जो खुद हमारे आदी थे।
शिक़वा-शिक़ायत उनसे ही कर बैठे,
जो ख़ुद वज़ह-ए-बर्बादी थे।
- साकेत गर्ग-
2122 1122 1122 112
घूम कर जिसमें मिले चैन वो बाजार नहीं
कोई अच्छी सी ख़बर पढ़ने को अख़बार नहीं।1
प्यास भी ऐसी मेरी बुझ न सकी जो हमदम
पास दरिया के कोई मुझसा भी लाचार नहीं।2
लोग कहते हैं मुहब्बत का नहीं कोई सिला
है कहीं इससे बड़ा कोई भी आजार नहीं।3
सबका इक जैसा हुआ हाल यहाँ पर देखो
है सुनाने को नया कोई समाचार नहीं।4
गाँव से शह्र तो आए थे तरक्की के लिए
एक भी ऐसा मिला शख़्स, जो बीमार नहीं।5
दिल के टुकड़े भी समेटे हैं बड़ी मुश्किल से
दिल मेरा अब किसी भी बात पे तैयार नहीं।6
हर तरफ ग़म ने ही डाला हुआ अपना डेरा
आज खुशियों का कहीं लगता ही दरबार नहीं।7
जिसकी ख़ातिर था कभी दिल बड़ा बेसब्र "रिया"
आज के दौर में फुर्सत का वो इतवार नहीं।8-
माँ तेरे दर पे आया हूँ
खाली हाथ मैं आया हूँ
शीश झुका तेरे चरणों में
तेरी शरण में आया हूँ
हे अम्बे!हे गौरी माता
तू शक्ति संसार की माता
सदा हाथ अपना तू रखना
साथ हमेशा बनाये रखना
शत शत नमन मैं करता हूँ
तेरे दर्शन का प्यासा हूँ
नाम तेरा ले लेकर मैं
माँ तुझे बुलाता हूँ।
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"अब खुश देखता हूँ पिताजी को सपनों में
उनकी चाहतों को परवान जो चढ़ा रहा हूँ
अब बेशक़ सुकून से होंगे रब के दरबार में
उनकी मन्नतों का अब मान जो बढ़ा रहा हूँ"
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इस मुकम्मल जहाँ में कुछ
भी असंभव नहीं होता
और कुछ भी असंभव हो
उस खुदा के दरबार में
ऐसा कुछ संभव नहीं होता..-
सज धज के है तैयार , मेरे बाबा भोले का दरबार ,
की इस सावन , मैं बाबा की शरण मे रहूँगा हर सोमवार....-
दूध से नहाने वालों वालों को
हमने उनके आँगन में पानी भरते हुए देखा है-