पीयूष परमार   (पीयूष)
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Joined 1 August 2020


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Joined 1 August 2020
10 SEP 2020 AT 19:13

Boht Shukriyah Roobi Sahiba💜🙏😊

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20 MAR 2021 AT 21:38

वक्त के किसी फेर में फँसा हुआ मुसाफ़िर सा लगता हूँ
मुसलमानों के शहर में किसी काफ़िर सा लगता हूँ

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19 MAR 2021 AT 17:30

जब गमज़दा होते हैं,
तो थम जाता है
खुशनुमा होते हैं,
तो रिस जाता है

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18 MAR 2021 AT 22:16

जवाबों की हुकूमत में,
मैं ख़ुद को सवालों से घिरा पाता हूँ
उरूज़ों के इस समाँ में,
ज़वालों से घिरा पाता हूँ

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18 MAR 2021 AT 21:48

बारिश के मौसमों में,
तरबूज़ों से प्यास बुझाता हूँ|
मंदिर के आईनों में,
मैं ख़ुद को ख़ुदा-नुमा सा पाता हूँ|

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17 MAR 2021 AT 21:51

हमारी सोहबतों का असर कुछ यूँ हुआ आसमानों पर
कि वे अब रोते नहीं हैं....

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17 MAR 2021 AT 21:39

मेरे अश्कों का क्या है,सूख कर उड़ जाँएगे
मगर फिज़ाएं गमगीन हो जाएँगी,
गुन-गुनाकर देखना हमें फ़कत एक बार दुआ में
तुम्हारी दुआएँ नमकीन हो जाएँगी....

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साज़िशों का ख़्वाहिशों से जब वस्ल होता है,
यही खेल तो हर नस्ल दर नस्ल होता है|
'ख़्वाबीदा' से इस जहाँ में उनसे टूट कर टूटना किसी वहम सा मालूम जान पड़ता है,
मगर जब ये होता है,
तो यही मंज़र-ए-अस्ल होता है|

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16 MAR 2021 AT 14:22


तेरे लबों के चबूतरे पर जो तिल है न
बस वहीं तो मेरा दिल आया है,
मोहब्बत के "मासिक इम्तेहान" में सौ के बट्टे में निल आया है...

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16 MAR 2021 AT 13:49


तेरी रूह के ताबूत में मेरा अक्स अभी ज़िंदा दिखाई पड़ता है,
ज़मीन पर रक्खा है तो काई लग गई है....

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