यूं तो उखड़े उखड़े हैं सब
इस तबाहगार तूफ़ान से मगर,
दो आंखें हैं जो खुश हुई हैं
इस बवंडर को देख कर।
आया नहीं कभी जो
लाख बुलाने पर भी,
आज घर को लौटा है वो,
इस तूफ़ान से डर कर।
कहती है वो कि क्या हुआ जो
घर की छत लूट ली इस तूफ़ान ने आकर,
अरसे बाद मुस्कुराहट देखी है आइने में आज,
जो बंजर कर गई थी चेहरा, बस आंसूओं के
निशान छोड़ कर
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