Akash Vishwakarma   ("आकाश विश्वकर्मा "✍️)
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Joined 2 January 2020


Joined 2 January 2020
14 MAR 2022 AT 9:54

गुलाल का समय तो फ़िर से आ गया,
मलाल इस बात का है।
कि उसपे रंग किसी और का चढ़ा है।

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12 MAR 2022 AT 18:27

आँधी चले या तूफ़ान
या हो जाए जिंदगी कुर्बान।

साथ छूटेगा नहीं दोस्तों का,
दोस्तों में बसती है मेरी जान।

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11 MAR 2022 AT 11:29

तोड़ेंगे गुरूर उसका इस क़दर सुधार देंगे,
आस्तीन के साँपों को कुचल के मार देंगे।

भीड़ में आयेगा जो मुझसे सिकंदर बनने,
उसी की भीड़ में हम उसको उजाड़ देंगे।

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2 MAR 2022 AT 18:36

भगवान भी साथ छोड़ दे तो भी
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता,
मेरे पिता ने मेरा हाथ थाम रखा है।

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8 FEB 2022 AT 2:10

रात भर जो बहा आँखों से वो पानी नहीं है,
मेरी कहीं उस बातों मे कोई नादानी नहीं है।

कुछ दिन, महीने, साल जो कुर्बान किए हैं,
तुम्हीं बताओ क्या वो मेरी जिन्दगानी नहीं है।

मेरे हर एक कदम की तो पहचान है तुमको,
फ़िर भी राह में पाँव की कोई निशानी नहीं है।

हिम्मत बड़ी जुटा के दिल की बात भी हुई,
मोहब्बत सच है मेरी य़े झूठी कहानी नहीं है।

दर्द में रात बीत जाए ग़म में चाहे बीते दिन,
अब दर्द ही दवा है कोई दवाई खानी नहीं है।

"आकाश" के नज़र में बस आफताब हो तुम्हीं ,
इक चांद के लिए चांद ज़मी पर लानी नहीं है।
आकाश विश्वकर्मा ✍️




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26 JAN 2022 AT 21:48

यहाँ मज़हब की कोई बात नहीं
हम सबका एक ईमान है।

हम सब है हिंदुस्तानी,
य़े हम सबका हिन्दुस्तान है।

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1 MAY 2021 AT 14:27

न लकड़ी शमशान मे न अब कब्र है कोई,
कतारों मे अब यूँ जिंदगी कर सब्र है सोयी।

इंसान भी इंसानियत का चोला उतार दिया,
न साथ दिए भगवान न अब ख़ुदा है कोई।

मजबूरी में लोगों से अब तीन का तेरा हो रहा,
शासन प्रशासन भी अब अपनी डगर है खोई।

इक साँस के लिए इक साँस की माँग उजड़ गई,
पर सत्ता सत्ते के बिस्तर लगा बेख़बर है सोयी।

खुद को यहाँ खुद ही अब बचा लो"आकाश",
न साँस के लिए अब हवा रहीं न शजर है कोई।
आकाश विश्वकर्मा ✍️

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3 JAN 2022 AT 21:39

मिट रहा वज़ूद मेरा मोहब्बत में जल जाने से,
याद मिटी नहीं उसकी युं साल बदल जाने से।

बुरा प्रभाव पड़ा है किसी का इस क़दर मुझपे,
बस साल गुज़र रहा मेरा जाते-आते मैख़ाने से।

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27 DEC 2021 AT 0:39

उसके ईशारे पे ग़र ना चला होता,
तो आज अच्छा ख़ासा मैं भला होता।

य़े जितने दर्द ग़म पनाह मे है मेरे,
य़े सब हादसा होने से टला होता।

हर मुसीबत दूर रहते रस्ते से मेरे,
काश "आकाश" अकेले चला होता।
आकाश विश्वकर्मा ✍️


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26 DEC 2021 AT 23:16

मन करता है उसे कुछ यूँ बेदखल कर दूँ,
उसमे उलझे हुये ख़ुद को मैं सरल कर दूँ।

हर महफ़िल में चर्चा होती रहे सदा उसकी,
चलो उसके नाम अपनी हर ग़ज़ल कर दूँ।

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